विश्व की सबसे ब़ड़ी औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैसकांड को हुए 25 बरस हो गए हैं। आधी रात हुए इस हादसे में 15 हजार लोगों की मौत हो गई जबकि 5 लाख से ज्यादा लोगों का जीवन दूभर कर दिया है। हालात यह है कि अब तक गैस के दुष्प्रभाव का सटीक आकलन तक नहीं किया जा सका है। 20बस्तियाँ जहरीला पानी पीने को मजबूर है और कई लोग इलाज के लिए भटक रहे हैं।
25 साल। इतने बरस में एक पीढ़ी जवान हो जाती है। लेकिन भोपाल की एक पीढ़ी इतने बरसों तक दमघोंटू तकलीफ में जिंदा रही है। यहाँ पीड़ा केवल अपनों को खोने की नहीं थी...उस रात के बाद से एक ऐसे दर्द से नाता जुड़ गया कि तकलीफ खत्म ही नहीं होती। कभी फेफड़ों ने जवाब दिया तो कभी कैंसर ने आ दबोचा। इलाज के नाम पर वादा मिला और वादे टूटते रहे।
इन 25 सालों में शहर की सूरत बदली है। िफर भी एक कोना है जो नहीं बदला। वहाँ आज भी गैस कांड की कड़वी यादें जिंदा हैं। वहाँ हर रात वही हादसा करवट लेता है और हर करवट के साथ उस रात का मंजर ताजा हो उठता है-
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25 साल पहले
आज ही की रात
गहरी नींद में था कि
मौत की धुंध् छा गई
25 सालों में िफर नहीं सोया वैसा कभी।
अपने ही दर्द से बेखबर भाइयों की तरह
मेरे दो हिस्से-
नया भोपाल सोता रहा बेपरवाह
और पुराना भागता रहा बदहवास।
पैरों तले कुचलती रही
घुटती, तड़पती रही जिंदगी।
सुबह जब जागा तो कई लोग नहीं जागे
मेरे साथ
जैसे रोज जागा करते थे
और जाया करते थे काम पर
25 सालों में िफर नहीं गया काम पर वैसा कभी।
कहते है वक्त हर दर्द का मरहम होता
मुझे नहीं मिला वह मरहम।
आज तक हरा है मेरा घाव
साँस लेता हूँ तो दम घुटता है
चलता हूँ तो लड़खड़ाता हूँ
देखता हूँ तो बिखर जाता हूँ
इन 25 सालों में
हर रोज दर्द पता पूछता रहा
और मैं बताता रहा
अपने एक-एक अंग का ठिकाना