Wednesday, December 10, 2008
।। हकीकत ।।
वे सख्त होते हैं
थोड़े बदमिजाज भी
छोटे-छोटे प्यारे बच्चों
से बेरहमी से पेश आते हैं ।
स्कूल बस या आटो रिक्शा
चालकों के बारे में
यही धारणा थी मेरी ।
पर, उस दिन
जावरा फाटक की बन्द
रेल्वे क्रासिंग पर क्या देखता हूँ-
एक स्कूली रिक्शा का चालक
बच्चों की फरमाइश पूरी कर रहा है ।
पास बैठी महिला से
जाम या बेर खरीद कर
बच्चों को खिला रहा है ।
कई बार अपनी मान्यताओं
और सुनी गई बातों के विपरीत
हकीकत यूँ आ धमकती है
और हमें करना ही
होता है यकीं।
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अपने काव्य संग्रह ‘सपनों के आसपास’ से
।। अवसर ।।
कभी हम परखते उसे
अपनी कसौटी पर ।
कभी लगती मरुभूमि
और हम भटकते मुसाफिर से
कभी ठण्डे झोंके की तरह
और हम महसूसते उसका अस्तित्व
पकड़ने की चाहत में
हाथ से फिसलती जिन्दगी
और हम ठगे से तकते उसे
करीब से गुजरते हुए ।
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अपने काव्य संग्रह ‘सपनों के आसपास’ से
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