एक सरकारी टाइप बयान-
फिर पेट्रोल के दाम बढ़े और आप लगे चिल्लाने। ये क्या बात हुई? आपको लगता है, सरकार के पास और कोई काम नहीं रह गया है जो वह हर माह-पन्द्रह दिन में पेट्रोल के दाम बढ़ाने लगती है। जनाब, गाड़ी आप चलाएँ, ईधन आप फूँकें और दाम बढ़े तो सरकार को कोसें। यह तो ठीक नहीं है। भले आप सोचते रहें कि केन्द्र सरकार के करोड़पति मंत्रियों को गरीबों की फिक्र नहीं है। सरकार को केवल तेल कम्पनियों के घाटे को ही कम नहीं करना आता बल्कि वह आम आदमी की चिंता भी करती है, तभी तो जब भी कीमतें बढ़ती है कोई जिम्मेदार व्यक्ति चिंता जताने जरूर सामने आता है। उनकी फिक्र उनके बयान से ज्यादा चेहरे पर झलकती है। फिर क्या दोष अगर यह चिंता काम में नहीं दिखती।
फिर आप भी दोष तो केवल केन्द्र सरकार को देते हैं, कभी राज्य सरकार से भी तो पूछिए। केवल हम ही थोड़े हैं जिसके खजाने में दाम बढ़ते ही पहले से ज्यादा कर आता है। राज्य सरकारें भी बैठे-ठाले मलाई खाती हैं। ईधन का दाम बढ़ा कर कोप हम झेलें और विपक्षी पार्टी की राज्य सरकारें हमारे खिलाफ पलट वार भी करें।
वाह, भई वाह। यह क्या बात है? थोड़ी नाराजी उधर भी तो जाहिर कीजिए।
फिर हमें तो देश चलाना है। आप को क्या पता, यूरोपीय देशों में क्या हो रहा है। हमारी हिम्मत देखिए कि हम मँहगाई रोकने की चिंता तो जताते हैं। आखिर हम भी कम तक घाटा सहें? क्या कहा, इतनी रकम तो घोटालों में स्वाहा हो जाती है। देखिए, अभी आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। अगर हुए तो हम कोशिश करेंगे कि यह राशि लौटा दी जाए।
आप भी तो अपना आकलन कीजिए। सेहत बनाने को पैदल चलेंगे। जिम में घंटों वॉकर पर दौड़ेगे। साइकिलिंग करेंगे, लेकिन ईधन बचाने कभी पैदल नहीं चलेंगे। ये क्या,आपको सुविधा मिली तो रोज गाड़ी चलाने लगे। कभी पैदल भी जाइए। देशहित और जेब हित में पेट्रोल बचाइए।
फिर पेट्रोल के दाम बढ़े और आप लगे चिल्लाने। ये क्या बात हुई? आपको लगता है, सरकार के पास और कोई काम नहीं रह गया है जो वह हर माह-पन्द्रह दिन में पेट्रोल के दाम बढ़ाने लगती है। जनाब, गाड़ी आप चलाएँ, ईधन आप फूँकें और दाम बढ़े तो सरकार को कोसें। यह तो ठीक नहीं है। भले आप सोचते रहें कि केन्द्र सरकार के करोड़पति मंत्रियों को गरीबों की फिक्र नहीं है। सरकार को केवल तेल कम्पनियों के घाटे को ही कम नहीं करना आता बल्कि वह आम आदमी की चिंता भी करती है, तभी तो जब भी कीमतें बढ़ती है कोई जिम्मेदार व्यक्ति चिंता जताने जरूर सामने आता है। उनकी फिक्र उनके बयान से ज्यादा चेहरे पर झलकती है। फिर क्या दोष अगर यह चिंता काम में नहीं दिखती।
फिर आप भी दोष तो केवल केन्द्र सरकार को देते हैं, कभी राज्य सरकार से भी तो पूछिए। केवल हम ही थोड़े हैं जिसके खजाने में दाम बढ़ते ही पहले से ज्यादा कर आता है। राज्य सरकारें भी बैठे-ठाले मलाई खाती हैं। ईधन का दाम बढ़ा कर कोप हम झेलें और विपक्षी पार्टी की राज्य सरकारें हमारे खिलाफ पलट वार भी करें।
वाह, भई वाह। यह क्या बात है? थोड़ी नाराजी उधर भी तो जाहिर कीजिए।
फिर हमें तो देश चलाना है। आप को क्या पता, यूरोपीय देशों में क्या हो रहा है। हमारी हिम्मत देखिए कि हम मँहगाई रोकने की चिंता तो जताते हैं। आखिर हम भी कम तक घाटा सहें? क्या कहा, इतनी रकम तो घोटालों में स्वाहा हो जाती है। देखिए, अभी आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं। अगर हुए तो हम कोशिश करेंगे कि यह राशि लौटा दी जाए।
आप भी तो अपना आकलन कीजिए। सेहत बनाने को पैदल चलेंगे। जिम में घंटों वॉकर पर दौड़ेगे। साइकिलिंग करेंगे, लेकिन ईधन बचाने कभी पैदल नहीं चलेंगे। ये क्या,आपको सुविधा मिली तो रोज गाड़ी चलाने लगे। कभी पैदल भी जाइए। देशहित और जेब हित में पेट्रोल बचाइए।
याद रखिए, हमसे सवाल मत कीजिए।
हमें याद है, हम जनता के सेवक है। तभी तो उसकी फिक्र में मँहगाई के पर कतरने की बातें करते हैं। हम पर भरोसा रखिए। एक बार घाटा कम हो जाए, कीमतें जरूर घटेंगी।
हमें याद है, हम जनता के सेवक है। तभी तो उसकी फिक्र में मँहगाई के पर कतरने की बातें करते हैं। हम पर भरोसा रखिए। एक बार घाटा कम हो जाए, कीमतें जरूर घटेंगी।