वे दो भाई हैं और दोनों चुने गए जन प्रतिनिधि । एक को जनता ने संसद में अपना प्रतिनिधित्व करने भेजा है तो दूसरा आंध्र प्रदेश की विधान सभा में जनता का प्रतिनिधि है। मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) पार्टी के प्रमुख सांसद असादुद्दीन ओवैसी और उनका छोटा भाई अकबरूद्दीन ओवैसी उन नेताओं में शुमार हैं जो धर्म के नाम पर लोगों को भड़का कर अपनी राजनीति कर रहे हैं। इतना संगीन आरोप लगाने की अकेली वजह 24 दिसंबर को अदिलाबाद में आयोजित एक सभा में विधायक अकबरूद्दीन ओवैसी का वह भाषण नहीं है जिसकी भाषा को अदालत ने भी नफरत फैलाने वाली मान कर मामला दर्ज करने को कहा है। इतिहास गवाह है कि ओवैसी भाइयों ने इसे पहले भी नफरत फैलाने वाली ऐसी ही भाषा का इस्तेमाल किया है। यकीन न आए तो कुछ उदाहरण देख लें।
18 अप्रैल 2009 को हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ सरकारी कर्मचारी को धमकी देने का मामला दर्ज किया गया था। ओवैसी राज्य के पुलिस महानिदेशक मतदान के दौरान हैदराबाद संसदीय क्षेत्र में पक्षपात करने आरोप लगाते समय भाषा का संयम खो बैठे थे। उन्होंने डीजीपी को 'विकृत दिमाग का आदमी" करार दिया था।
इसके पहले इन्हीं असदुद्दीन ओवैसी ने बाबरी मस्जिद की बरसी पर आयोजित कार्यक्रम में पिछले माह कहा था कि मुसलमान अयोध्या में ढहाई गई बाबरी मस्जिद की एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेंगे। बड़े भाई जब भड़काऊ भाषण देने में आगे हैं तो छोटे भाई कहां पीछे रहने वाले हैं।
मजलिस पार्टी के विधायक दल के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने 2012 में मांग की थी कि प्रशासन हैदराबाद में राम नवमी के अवसर पर निकलने वाली शोभा यात्रा को अनुमति ना दे। उनका कहना था कि ईद मिलाद-उन-नबी का उत्सव होली के त्यौहार के आसपास ही है और उसी के कुछ दिन के बाद ही राम नवमी का उत्सव है जिससे शहर में दंगों की स्थिति पैदा हो सकती है।
यही विधायक ओवैसी एक बार फिर अपने भाषण के कारण चर्चा में हैं। इन्होंने आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद के निर्मल इलाके में एक जनसभा के दौरान कहा कि 'अगर भारत से पुलिस को हटा लिया जाए तो 15 मिनट के अंदर यहां के 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं का खात्मा कर सकते हैं।"ओवैसी ने मोदी की तुलना मुंबई हमले में फांसी पर चढ़ाए गए पाक आतंकी अजमल कसाब से करते हुए कहा- 'अजमल कसाब को फांसी पर लटका दिया गया, ठीक है। उसने दो सौ बेकसूर लोगों की जान ली थी लेकिन, गुजरात में दो हजार मुसलमानों की हत्या के गुनहगार नरेंद्र मोदी को फांसी क्यों नहीं दी? एक पाकिस्तानी को हिंदुस्तानियों को मारने पर फांसी दे दिया। हिंदुस्तानी है तो हिंदुस्तानी को मारने पर देश की गद्दी।" ओवैसी के भाषण की भाषा ऐसी है कि उसे दोहराया नहीं जाना चाहिए लेकिन यू ट्यूब पर यह भाषण मौजूद है और धड़ल्ले से देखा-सुना जा रहा है।
अच्छी बात यह है कि कानून ने अपनी ताकत दिखलाई तो संगठनों ने भी ओवैसी की मुखालफत की। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना यासूब अब्बास ने कहा है कि ओवैसी कोई इस्लाम के हीरो नहीं हैं। बल्कि वो इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं। ऐसे लोगों की वजह से ही मुसलमान आतंकवाद की ओर जा रहे हैं।
सवाल यह है कि क्या यह इतनी सी बात इन दोनों भाइयों या इन जैसे उन तमाम नेताओं को समझ में नहीं आ रही है कि वे देश को तोड़ने का काम कर रहे हैं? दरअसल वे भी यह बखूबी जानते हैं लेकिन वे फिर भी भड़काऊ भाषा बोलते हैं क्योंकि उन्हें वोट इसी भाषा के कारण मिलत हैं विकास की जुबान से नहीं। मजेे की बात है कि यहां कटु बयान पर बवाल मचा हुआ है, दो-दो एफआईआर दर्ज हो रही है और आरोपी विधायक ओवैसी लंदन चला गया है।
इन जैसे तमाम नेता दोहरा रूप जीते हैं। आम जनता के सामने अलग चेहरा और व्यक्तिगत रूप से अलग चेहरा। एक चेहरा वो है जो भाषा, धर्म और जाति के नाम पर लोगों को लड़ाता है और दूसरा चेहरा वह है जो लंदन में जा कर सोफिस्टोकेटेड बर्ताव करता है। यही चेहरा महाराष्ट्र में भी उजागर होता है और यही चेहरा दक्षिण में भी दिखलाई देता है। ऐसे सारे नेता जनता के बीच में खूब नौटंकी करना जानते हैं। जो रूप ये सार्वजनिक जीवन में दिखलाते हैं निजी जीवन उसका ठीक उलट होता है। वास्तव में तो जनता को समझना होगा कि जिनकी बातों में आ कर वे दंगें करने को आमादा हैं वे छिपने के लिए भी विदेशों का रूख करते हैं। बांटना उनकी चाल हैं वरना उनकी राजनीति को तरक्की की कसौटी पर परखा जाने लगेगा। अगले साल 9 राज्यों में चुनाव होना है और लोकसभा चुनाव भी करीब है। दंगों की ऐसी भूमिकाएं लिखने वाले और भी हैं। ऐसे नेता जब किराए के गुंडों के हाथों में हथियार-पत्थर थमाएं तो उनसे सवाल पूछे जाना चाहिए कि उन्होंने सदन में जनता की समस्या को कितनी बार और कैसे उठाया। यही उनके 'दंगा बम" का जवाब होगा।
18 अप्रैल 2009 को हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ सरकारी कर्मचारी को धमकी देने का मामला दर्ज किया गया था। ओवैसी राज्य के पुलिस महानिदेशक मतदान के दौरान हैदराबाद संसदीय क्षेत्र में पक्षपात करने आरोप लगाते समय भाषा का संयम खो बैठे थे। उन्होंने डीजीपी को 'विकृत दिमाग का आदमी" करार दिया था।
इसके पहले इन्हीं असदुद्दीन ओवैसी ने बाबरी मस्जिद की बरसी पर आयोजित कार्यक्रम में पिछले माह कहा था कि मुसलमान अयोध्या में ढहाई गई बाबरी मस्जिद की एक इंच भी जमीन नहीं छोड़ेंगे। बड़े भाई जब भड़काऊ भाषण देने में आगे हैं तो छोटे भाई कहां पीछे रहने वाले हैं।
मजलिस पार्टी के विधायक दल के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने 2012 में मांग की थी कि प्रशासन हैदराबाद में राम नवमी के अवसर पर निकलने वाली शोभा यात्रा को अनुमति ना दे। उनका कहना था कि ईद मिलाद-उन-नबी का उत्सव होली के त्यौहार के आसपास ही है और उसी के कुछ दिन के बाद ही राम नवमी का उत्सव है जिससे शहर में दंगों की स्थिति पैदा हो सकती है।
यही विधायक ओवैसी एक बार फिर अपने भाषण के कारण चर्चा में हैं। इन्होंने आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद के निर्मल इलाके में एक जनसभा के दौरान कहा कि 'अगर भारत से पुलिस को हटा लिया जाए तो 15 मिनट के अंदर यहां के 25 करोड़ मुसलमान 100 करोड़ हिंदुओं का खात्मा कर सकते हैं।"ओवैसी ने मोदी की तुलना मुंबई हमले में फांसी पर चढ़ाए गए पाक आतंकी अजमल कसाब से करते हुए कहा- 'अजमल कसाब को फांसी पर लटका दिया गया, ठीक है। उसने दो सौ बेकसूर लोगों की जान ली थी लेकिन, गुजरात में दो हजार मुसलमानों की हत्या के गुनहगार नरेंद्र मोदी को फांसी क्यों नहीं दी? एक पाकिस्तानी को हिंदुस्तानियों को मारने पर फांसी दे दिया। हिंदुस्तानी है तो हिंदुस्तानी को मारने पर देश की गद्दी।" ओवैसी के भाषण की भाषा ऐसी है कि उसे दोहराया नहीं जाना चाहिए लेकिन यू ट्यूब पर यह भाषण मौजूद है और धड़ल्ले से देखा-सुना जा रहा है।
अच्छी बात यह है कि कानून ने अपनी ताकत दिखलाई तो संगठनों ने भी ओवैसी की मुखालफत की। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना यासूब अब्बास ने कहा है कि ओवैसी कोई इस्लाम के हीरो नहीं हैं। बल्कि वो इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं। ऐसे लोगों की वजह से ही मुसलमान आतंकवाद की ओर जा रहे हैं।
सवाल यह है कि क्या यह इतनी सी बात इन दोनों भाइयों या इन जैसे उन तमाम नेताओं को समझ में नहीं आ रही है कि वे देश को तोड़ने का काम कर रहे हैं? दरअसल वे भी यह बखूबी जानते हैं लेकिन वे फिर भी भड़काऊ भाषा बोलते हैं क्योंकि उन्हें वोट इसी भाषा के कारण मिलत हैं विकास की जुबान से नहीं। मजेे की बात है कि यहां कटु बयान पर बवाल मचा हुआ है, दो-दो एफआईआर दर्ज हो रही है और आरोपी विधायक ओवैसी लंदन चला गया है।
इन जैसे तमाम नेता दोहरा रूप जीते हैं। आम जनता के सामने अलग चेहरा और व्यक्तिगत रूप से अलग चेहरा। एक चेहरा वो है जो भाषा, धर्म और जाति के नाम पर लोगों को लड़ाता है और दूसरा चेहरा वह है जो लंदन में जा कर सोफिस्टोकेटेड बर्ताव करता है। यही चेहरा महाराष्ट्र में भी उजागर होता है और यही चेहरा दक्षिण में भी दिखलाई देता है। ऐसे सारे नेता जनता के बीच में खूब नौटंकी करना जानते हैं। जो रूप ये सार्वजनिक जीवन में दिखलाते हैं निजी जीवन उसका ठीक उलट होता है। वास्तव में तो जनता को समझना होगा कि जिनकी बातों में आ कर वे दंगें करने को आमादा हैं वे छिपने के लिए भी विदेशों का रूख करते हैं। बांटना उनकी चाल हैं वरना उनकी राजनीति को तरक्की की कसौटी पर परखा जाने लगेगा। अगले साल 9 राज्यों में चुनाव होना है और लोकसभा चुनाव भी करीब है। दंगों की ऐसी भूमिकाएं लिखने वाले और भी हैं। ऐसे नेता जब किराए के गुंडों के हाथों में हथियार-पत्थर थमाएं तो उनसे सवाल पूछे जाना चाहिए कि उन्होंने सदन में जनता की समस्या को कितनी बार और कैसे उठाया। यही उनके 'दंगा बम" का जवाब होगा।