कुछ अपनी
Monday, September 13, 2010
तुम बुला लेती हो झील
आकाश आनंद
का चित्र और अपनी कविता
झील,
तुम बुला लेती हो रोज।
तुम्हारे किनारे जमती है
महफिल अपनी
काँटा पकड़े घंटों
तुम्हारे पहलू में बैठा मैं
कब अकेला रहता हूँ?
लहरें तुम्हारी बतियाती हैं
कितना,
जैसे घंटों कहकहे लगाता है
यार अपना।
झील, तुम्हारे होते
कब अकेला रहता हूँ मैं भला?
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