Thursday, July 16, 2015

क्या याकूब मेमन मुसलमानों का रोल माॅडल है?

1993 के मुंबई बम कांड के आरोपी याकूब मेनन को फांसी देने के बारे में उस विस्फोट में जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों की राय की तो खबर नहीं लेकिन राज्यसभा सांसद मजीद मेमन कह रहे हैं कि मुसलमान होने की वजह से याकूब मेमन को फांसी दी जा रही है। मेनन को फांसी दी गई तो मुसलमानों में गलत संदेश जाएगा। उनकी बात से समाजवादी पार्टी के बड़े नेता अबु आसिम आजमी भी सहमत हैं। आजमी भी इस फांसी का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि याकूब की गलती इतनी बड़ी नहीं है कि उसे फांसी दी जाए। प्रश्न है कि क्या वाकई याकूब मेमन मुसलमानों के रोल माॅडल हैं? हमें तो ऐसा नहीं दिखाई देता। तो फिर दोनों नेता यह साबित करने की कोशिशें क्यों कर रहे हैं कि मुसलमानों (दुनिया के किसी भी हिस्से में रह रहे ऐसे मुसलमान जिनका ईमान मुसलसल) का समर्थन याकूब जैसे लोगों के साथ हो सकता है?
क्या आतंकी को सजा देने से ज्यादा यह देखा जाना अहम् है कि उसकी जाति क्या है? यदि इस तरह से एक पक्ष जाति देखेगा तो दूसरे पक्ष को जाति देखने से कैसे रोका जा सकेगा? दोनों ही मामलों में देश का हित नहीं है। आम आदमी, चाहे वह मुसलमान हो या हिन्दू या ईसाई, उसका हित नहीं है। जब आतंक यह नहीं देखता कि उसके हमले में मरने वाले की जाति क्या है तो राजनीति यह क्यों देखती है कि जिसे सजा मिल रही है, उसकी जाति क्या है?
महात्मा गांधी ने कहा था कि अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं। यहां अगर अपराध से घृणा करने की बात होती तो दोनों मुस्लिम नेताओं काजमी और मजीद मेमन की बात का समर्थन किया जा सकता था लेकिन दोनों का अंदाज इस मामले पर संवेदनाओं को क्षति पहुंचाने का ही है। हम भारतीयों की न्याय में बहुत आस्था है, फिर चाहे वह न्याय कानूनी अदालत में हो या ऊपर वाले की अदालत में। कहते भी है, ऊपर वाले के यहां देर है, अंधेर नहीं। हम तो यह भी मानते हैं कि ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती है। हम तो न्याय की आस में पूरी उम्र गुजार देते हैं। फिर, मुंबई बमकांड में मारे गए 257 लोगों के परिवारों को तो दोषियों की सजा का इंतजार करते हुए अभी 22 साल ही हुए हैं। उनके पास इंतजार करने के लिए अलावा और क्या चारा है, लेेकिन इस मामले पर राजनीति चमका रहे नेताओं के पास राजनीति करने के लिए बहुत से मौके हैं। राजनेताओं की हमदर्दी किसी अपराधी के साथ हो सकती है लेकिन आम लोगों की जान ऐसे लोगों के हाथों का खिलौना होती है। बेहतर होगा कि राजनेता कानून को अपना काम करने दें और आंतकियों व नक्सलियों को कड़ा संदेश जाने दें कि बंटवारे का हर कदम माफ करने लायक नहीं है।

याद दिल दूं कि …
शुक्रवार, 12 मार्च 1993 को एक के बाद एक मुंबई की 12 जगहों पर सीरियल ब्लास्ट हुए थे। इन ब्लास्ट से मुंबई के साथ पूरा देश दहल उठा था। इसमें 257 लोगों की मौत हुई थी और 750 से अधिक लोग घायल हुए थे। यह पहला मौका था, जब देश ने सीरियल बम ब्लास्ट की भयानक तस्वीर देखी थी। इसी दिन बॉम्बे स्टॉक एक्सेंज (बीएसई) की 28 मंजिला बिल्डिंग के बेसमेंट में भी ब्लास्ट हुआ था, जिसमें 50 लोगों की मौत हुई थी।