Monday, June 5, 2023

विश्‍व पर्यावरण दिवस: प्‍लास्टिक प्रदूषण से हमें एक ही शक्ति बचा सकती है

दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्‍ट हो या हमारे रक्‍त का हिस्‍सा वह सर्वशक्तिमान ही होना चाहिए जो सर्वाधिक ऊंचाई और सबसे सूक्ष्‍म रूप में विद्यमान होगा. ऐसा ही सर्वशक्तिमान है प्‍लास्टिक जो दुनिया को संवार नहीं बल्कि खत्‍म कर रहा है. सर्वविनाशक साबित हो रहा है. और यही कारण है कि दैनिक उपयोग में सबसे बड़ा सहायक प्‍लास्टिक आज पर्यावरण और सेहत के लिए उतना ही बड़ा और व्‍यापक खतरा बन कर डरा रहा है. इसी घातक ताकत के कारण दुनिया ने आह्वान किया है कि सब मिलकर इस प्‍लास्टिक से पृथ्‍वी को बचाएं.

कितना आसान होता है, किसी पॉलीथिन, किसी प्‍लास्टिक के टुकड़े को गुड़ीमुड़ी कर झट से फेंक देना. कितना आसान होता है, कोल्‍ड ड्रिंक और पानी की बोतल, किसी पैकिंग का प्‍लास्टिक रैपर को यहां-वहां फेंक देना. यहां-वहां मतलब माउंट एवरेस्‍ट जैसे गगनचुंबी पहाड़ पर तो समुद्र की तलहटी जैसी गहराई पर. अपने आसपास भी, नदी और पहाड़ पर भी. खेत में, चलती ट्रेन से, जहां मन किया वहां. क्‍या आपने सोचा है, कि बड़े प्‍लास्टिक के कचरे को तो चलो कोई साफ कर भी देगा मगर बोतल के ढक्‍कन को बंद करने के लिए लगाई गई सील या उससे भी छोटे प्‍लास्टिक के टुकड़े को हम जो फेंक देते हैं, लापरवाही से, उसे कोई उठाने आने वाला नहीं है. वह तो जमीन में, पानी में, पहाड़ पर, खाई में, जंगल में पड़ा रहेगा, बरसों बरस और धरती को, इसके पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता रहेगा. वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि इसी तरह चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब खेत में हल चला कर मिट्टी की पलटी करने पर पॉलीथिन भी निकला करेगा. यह तो साबित ही हो चुका है कि हमारे द्वारा फेंका गया प्‍लास्टिक का कूड़ा शहरों में सीवेज को जाम कर जलभराव का कारण बनता है.

यही कारण है कि गुजरात के अहमदाबाद में प्लास्टिक के साथ ही कागज के कप में चाय-काफी परोसने पर रोक लगा दी गई है क्‍योंकि वहां एक दिन में 20 लाख से ज्यादा प्लास्टिक और पेपर कप कचरे में फेंके जाते हैं. चंडीगढ़ में प्‍लास्टिक की तमाम तरह की पैकिंग पर भी रोक है. सरकार सिंगल यूज प्‍लास्टिक को प्रतिबंधित कर ही चुकी है. इसके बाद भी हालात क्‍या हैं, यह जानना बेहद जरूरी है.

हाल ही में एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था इसमें बताया गया था कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवेरेस्ट असल में ‘कूड़े के पहाड़’ बन रहा है. बेस कैंप के पास सैकड़ों खाली पड़े फूड कंटेनर, ऑक्‍सीजन टैंक, रैपर बिखरे नजर आ रहे हैं. 29 मई 2053 को तेनजिंग नोर्गे और एडमंड हिलेरी ने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचकर दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ को विजय किया था. इस घटना के सत्‍तर साल बाद आज उस चोटी पर कचरे का पहाड़ हमारी लापरवाही का सबूत है. पहाड़ पर चढ़ कर रिकार्ड अपने नाम करने वाले पर्वतारोह उस पहाड़ के पर्यावरण को लेकर बिल्कुल सतर्क नहीं हैं. नेशनल ज्योग्राफिक का अनुमान है हक एवरेस्ट पर जाने वाला हर पर्वतारोही लगभग आठ किलोग्राम कचरा पैदा करता है. इनमें फूड कंटेनर, टेंट और खाली ऑक्सीजन टैंक शामिल होते हैं. वे कचरा साथ नहीं लाते और इसकी सफाई के लिए सरकारों को अलग से पैसा खर्च करना पड़ता है. जबकि कितना बेहतर हो कि जो सामान ले जा रहा है वही कचरा अपने साथ लाए भी? लेकिन ऐसा होता कहां है?

चिंता का कारण यह कि सूक्ष्‍म रूप में प्‍लास्टिक ध्रुवों पर जलचर के रक्‍त में भी पहुंच चुका है. यह प्‍लास्टिक हमारे रक्‍त में भी है. यह समय उन चेतावनियों को याद करने का भी है जब शोध बताते हैं कि प्‍लास्टिक खाद्य सामग्री के साथ हमारे पेट में जा रहा है.

आज जब प्‍लास्टिक के समाधान की चिंता और आह्वान के साथ विश्‍व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है तो हमारे लिए यह जान लेना भी आवश्‍यक है कि दुनिया फिलहाल हर साल 35 करोड़ टन प्लास्टिक का कचरा फैला रही है. यह कचरा जैवविविधता, हमारी सेहत और खेती यानी हमारे आहार के लिए खतरा बन चुका है. जब हम प्‍लास्टिक के इन खतरों की बात करते हैं तो कुछ आविष्‍कार याद आते हैं. जैसे वह एंजाइम जो सदियों में नष्‍ट होने वाले प्‍लास्टिक को चंद घंटों में खत्‍म कर सकता है. मगर यह एंजाइम भी प्‍लास्टिक के बेतहाशा उपयोग की छूट नहीं देता है क्‍योंकि हमारी लापरवाही तब भी भारी है.

प्‍लास्टिक के इन्‍हीं खतरों को देखते हुए संयुक्‍त राष्‍ट्र के पर्यावरण कार्यक्रम ने एक रोडमैप तैयार किया है. बीते सप्‍ताह जारी हुई यह रिपोर्ट 2040 तक दुनिया भर में प्लास्टिक प्रदूषण को 80 प्रतिशत तक कम करने का आह्वान करती है. इसमें कहा गया है कि सबसे पहले प्‍लास्टिक के कचरे का कम करना होगा. इसके लिए प्‍लास्टिक के फिर से उपयोग, रीसाइकल करना और उत्पादों में विविधता लाने के सुझाव दिए गए हैं. आकलन है कि फिर से उपयोग के प्‍लास्टिक को बढ़ावा देकर 2040 तक 30 प्रतिशत प्लास्टिक प्रदूषण को कम किया जा सकता है. प्लास्टिक रैपर, पाउच और पै‍क आइटम जैसे उत्पादों में प्‍लास्टिक के बदले अन्य सामग्रियों को अपनाने से प्लास्टिक प्रदूषण में 17 प्रतिशत की कमी लाई जा सकती है. चुनौती यह है कि यदि प्लास्टिक उत्पादन पर लगाम लगाने में पांच साल की देरी होती है तो 2040 तक 80 मिलियन मीट्रिक टन प्लास्टिक प्रदूषण बढ़ सकता है.

इसी आह्वान के बीच ग्रीनपीस ने चेताया है कि रीसाइक्लिंग प्लास्टिक प्रदूषण का रामबाण इलाज नहीं है. इसपर हुआ अध्ययन बताता है कि रीसाइकिल करने से वास्तव में प्लास्टिक का जहरीलापन बढ़ जाता है. ‘फॉरएवर टॉक्सिक: द साइंस ऑन हेल्थ थ्रेट्स फ्रॉम प्लास्टिक रीसाइक्लिंग’ बताती है कि खतरे से निपटना है तो प्लास्टिक उत्पादन को सीमित और कम करने के ही प्रयास होने चाहिए. यह रिपोर्ट बताती है कि प्लास्टिक में 13,000 से अधिक केमिकल्स होते हैं जिनमें से 3,200 इंसानी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माने जाते हैं. रीसायकल प्लास्टिक में बहुत ज्यादा मात्रा में केमिकल होते हैं जो लोगों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं.

ये सभी रिपोर्ट हमें आगाह कर रही हैं कि प्‍लास्टिक के उपयोग को कम करने को लेकर हमने बड़े कदम नहीं उठाए तो 2060 तक प्लास्टिक उत्पादन तिगुना करना पड़ेगा और इतना प्‍लास्टिक कितना नुकसान पहुंचाएगा, समझा जा सकता है. हमें यह समझ लेना होगा कि फिलहाल ऐसी कोई शक्ति नहीं है जो प्‍लास्टिक को खत्‍म कर दे या उसके नुकसान से हमें बचा ले. यह ताकत हमारे पास ही हैं कि हम खुद अपनी सुरक्षा करें और प्‍लास्टिक के प्रति बेपरवाही का व्‍यवहार छोड़ें. ऐसे मनाएंगे तो पर्यावरण दिवस तो हमारी पृथ्‍वी और मन का पर्यावरण अच्‍छा बना रहेगा.




(न्‍यूज 18 में प्रकाशित ब्‍लॉग)