Friday, May 8, 2015

मंदिर की दीवारों पर चांदी हो या भक्तों के पेट में निवाला?


चाहे बाबा महाकाल हो या ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग या मंदसौर में पशुपतिनाथ का मंदिर। ये तीर्थ केवल हमारी आस्थाओं के केन्द्र ही नहीं है बल्कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के कारण राज्य की धरोहर भी हैं। यही कारण है कि यहां स्थापित प्रतिमाओं और ज्योतिर्लिंगों के क्षरण की जानकारियों ने न केवल प्रशासन और श्रद्धालुओं बल्कि पुरातत्वेत्ताओं को भी चिंतित कर दिया था। इस क्षरण के बाद ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग को कांच के आवरण में सुरक्षित किया गया। यही योजना पशुपतिनाथ मंदिर के लिए भी बनी। महाकाल ज्योतिर्लिंग के परिप्रेक्ष्य में भी यही चिंताएं है लेकिन यहां सिंहस्थ 2016 को भव्य रूप देने की कोशिशों में महाकाल के गर्भगृह की दीवारों पर चांदी चढ़ाने का काम शुरू कर दिया गया है। इस कार्य में 2 करोड़ की चांदी का उपयोग होगा और मजदूरी पर 20 लाख रुपए अतिरिक्त खर्च होंगे। गर्भगृह की दीवारों पर 450 किलो चांदी लगेगी। देशभर के यजमानों द्वारा इस कार्य हेतु चांदी दान दी जा रही है। अब तक 130 किलो चांदी एकत्र हुई है। सवाल यह है कि मंदिर की दीवारों को चांदीमय बनाने का क्या औचित्य? भोलेनाथ को कैलाशवासी हैं। पौराणिक कथाओं ने ही हमें बताया है कि माता पार्वती के कहने पर सोने की लंका बनवाई जरूर लेकिन फिर वही लंका अपने भक्त रावण को दान में दे दी थी। यानी भोले को आडंबर और महलों ने कहां प्रसन्न किया है? तो फिर यह मंदिर की दीवारों को चांदीयुक्त करने का आडंबर क्यों? समवेत स्वर में यह संकल्प बुलंद होना चाहिए कि इस राशि का उपयोग मंदिर परिसर को अधिक सहज और अवरोध मुक्त बनाने ज्योतिर्लिंग का क्षरण रोकने के उपाय करने और सिंहस्थ में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा-सुविधा के लिए खर्च होना चाहिए। मंदिरों के कर्ताधर्ता पूजारियों-बाबाओं के हितों को ध्यान में न रख यह खर्च ईश दर्शन और भक्तों के बीच की दूरियों को मिटाने में हो। जिस तरह बीच में मांग उठी थी कि मंदिरों में चढ़ा कर दूध को नालियों में बहाने से बेहतर है कि उसे जीवित भगवान यानी बच्चों और निर्धनों को दिया जाए। ऐसी पहल काशी के प्रख्यात विश्वनाथ मंदिर से की गई थी। करीब दो साल पहले योजना बनी थी कि विश्वनाथ मंदिर से दूध महिला चिकित्सालयों में भर्ती प्रसूताओं, मानसिक अस्पताल के रोगियों, कैदियों में वितरित किया जाए। ऐसे प्रस्तावों पर पोंगापंथी श्रद्धालु कभी सहमत नहीं होंगे लेकिन सोचिये ऐसा कर हम दूध, शनि मंदिरों में चढ़ाया जाने वाला तेल और अन्य नाना पदार्थ का सदुपयोग कर सकते हैं।