उनका नाम ही मकबूल है। कहने को आसमान में हजारों सितारे हैं लेकिन कथक के संसार की वह इकलौती चाँद हैं!
हो सकता है कि उन्हें देखे बगैर इन पंक्तियों में अतिश्योक्ति नजर आ जाए लेकिन सच तो यह है कि जो भी शख्स सितारा देवी से मिल लेता है, वह बिना झिझक इस बात को स्वीकार कर लेता है कि उनके जैसा कोई नहीं है। वे 90 वर्ष की हैं लेकिन कथक के प्रति उनका जोश किसी युवा से कम नहीं है। 77 वर्ष की उम्र जब अधिकांश लोग मौत की राह तकते हैं, पलंग पर गुजर-बसर करते हैं, वे भोपाल में 4 घंटे तक कथक से दर्शकों को हतप्रभ करती हैं और जब अगली बार 13 साल बाद 21 अगस्त 2010 को भोपाल आती हैं तो भले नृत्य नहीं करती है लेकिन मंच पर गायन के साथ ऐसी भावमुद्रा बनाती हैं कि सभागार में बैठा कला समाज भौंचक देखता रहता है।
यह जिक्र उस कलाकार का है जिसका नाम धनलक्ष्मी रखा गया था। 1920 की दीपावली की पूर्व संध्या पर जन्म लेने के कारण भी संभव है कि यह नाम रखा गया हो। बाद में जब मंच पर इस नन्हीं कलाकार ने अपने हुनर का मुजाहिरा किया तो 'सितारा" नाम मुफीद समझा गया। यही सितारा देवी 21 अगस्त को भोपाल में थी। मुझे कुछ पल उनके संग रहने और उनके आभा मंडल को जानने का मौका मिला। मैंने पाया कि 90 वर्ष की उम्र में उनकी देह थकी है लेकिन नृत्य के प्रति आग्रह और उत्साह जरा कम नहीं हुआ और न ही उनके स्वाभिमान की ठसक कम हुई है। मकबूल नृत्यांगना सितारा देवी से बात करते समय मानो एक स्वर्णिम दौर जीवंत हो उठता है। वे हर व्यक्ति से आत्मीय से बात करती हैं। उनकी इस भोपाल यात्रा मैं भी उन्हें गुनगुनाते, नृत्य की भाव मुद्रा बनाते देख लोगों को 16 साल पहले की वह शाम याद आ गई जब भारत भवन में उन्हें कालिदास सम्मान प्रदान किया गया था। तब 77 वर्षीय सितारा देवी ने तुलसीदासजी की विनय पत्रिका की ख्यात पंक्तियों 'ठुमकत चलत रामचन्द्र बाजत पैजनियाँ" पर चमत्कृत कर देने वाली प्रस्तुति दी थी। उन्हें 1975 में पद्मश्री दिया गया लेकिन बाद में पद्मभूषण लेने से इंकार कर दिया। जब सम्मान की बात चली तो उन्होंने कहा कि भारत रत्न से कम कोई सम्मान मंजूर नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार मेरेे योगदान को नहीं जानती। ऐसे सम्मान का क्या मतलब। भोपाल में मधुवन द्वारा दिए गए सम्मान पर उन्होंने कहा कि यह सुरेश तांतेड़ जैसे साधक के श्रम की संस्था है। ऐसी संस्थाओं से मिला सम्मान स्वीकार हैं क्योंकि यह प्रशंसकों के ोह का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि नए नर्तकों में लगन और साधना की कमी दिखलाई देती है। वो दौर और था जब बरसों ने अभ्यास के बाद भी मंच नहीं मिलता था। अब तो गुरू फटकार दे तो शिष्य अगले दिन आना बंद कर देते हैं। कला के लिए यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है।
उम्र का इजहार आम तौर पर महिलाओं की कमजोरी मानी जाती है। इसलिए भरसक प्रयास किया जाता है कि इसे छुपाया जा सके लेकिन 90 वर्षींय महिला मंच से घोषित उम्र की सत्यता जाँचने का प्रयास करें तो इसे क्या कहेंगे? जी हाँ, रवीन्द्र भवन में जब उनके परिचय के साथ उम्र को उल्लेख किया गया तो उन्होंने उद्घोषक को पास बुला कर स्पष्ट जाना कि क्या उम्र बताई गई है। यह उनके परफेक्शन का एक नमूना है। सोचिए जब वे मंच पर होती होंगी तब नृत्य के साथ कितनी सम्पूर्णता रखती होंगी।
इसीलिए वे सितारा हैं।