भोपाल में बिनायक के लिए जन समूह इकट्ठा हुआ था। इस कार्यक्रम की पड़ताल करने आए आईबी के लोग पड़ताल करते नजर आए कि बिनायक किस पार्टी से जुड़े हैं?
उन नासमझो का यह सवाल इसलिए था कि वहाँ सरकार के खिलाफ नारे लग रहे थे और नारे लगाने वाले वे चेहरे थे जो जनसंघर्ष की पतवार थामते हैं। हम, मैं और जिनसे सवाल पूछा गया था सचिन जैन, एक पल असमंजस में रहे कि क्या जवाब दें? क्या बताएँ कि बिनायक किस पार्टी के हैं?
क्या आप जानते हैं, बिनायक सेन कौन है? बिनायक सेन...राजद्रोही या जनसेवी? अगर इस सवाल पर विचार नहीं किया तो सच मानिये समय आपका भी अपराध्ा लिख रहा है। क्यों? भारतेन्दुजी कह गए है-'समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र। जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध्ा।" अपराध्ा इस बात का नहीं होगा कि हमने बिनायक सेन का साथ क्यों न दिया, अपराध्ा तो यह है कि हमने बिनायक के 'अपराध्ा" को जानने तक की तकलीफ नहीं उठाई।
बिनायक की बात करने के पहले आपको एक किस्सा सुना चाहता हूँ। किस्सा कुछ यूँ हैं कि गुरू गोविंद सिंह के भाई घनैयाजी संघर्ष के दिनों में गुरू सेना को पानी पिलाया करते थे। इस दौरान जब विरोधी सेना का प्यासा सिपाही मिल जाता तो वे उसे भी पानी पिला देते थे। गुरू गोविंदसिंह से शिकायत हुई तो भाई घनैयाजी ने जवाब दिया मुझे तो केवल प्यासा दिखाई देता है। अपने या दुश्मन में भेद कैसे करूँ?
इस नजीर को ध्यान में रख कर मेरी बात सुनियेगा, जानियेगा और फिर बताईयेगा कि क्या बिनायक दोषी हैं?
बिनायक सेन को छत्तीसगढ़ के ट्रायल-कोर्ट द्वारा उम्रकैद की सजा देना इसलिये नही चौंकाता है कि हमें राजसत्ता से उनके लिये रियायत की उम्मीद है। अचरज और डर तो इस बात का है कि न्याय का मंदिर सवालों के घेरे में आ गया। आम आदमी की क्या मजाल कि वह न्यायपालिका पर सवाल उठाए, ये सवाल तो न्यायपालिका के पूर्व अगुआ भी उठा रहे हैं।
बिनायक के काम को करीब से देखने वाले जानते हैं कि वे गरीबों की चिकित्सा, उनके स्वास्थ्य हालातों को बदलने में विश्वास करते थे। गुस्सा इसलिए भी है कि एक सैन्य अफसर का बेटा, गोल्ड मेडलिस्ट छात्र पूंजीपति सत्ता का चारण न बन कर जन संवेदनाओं का वाहक बना और बदले में उसे भी सत्ता का वही आचरण झेलना पड़ा जो लोकतंत्र के तमाम समर्थकों को पूरे विश्व में झेलना पड़ता है। बहुत ज्यादा को थोड़े में बताने की जो समस्या हमारे समक्ष होती है वैसी उलझन इस वक्त मेरे सामने बिनायक के काम को बताने को ले कर है। कुछ लफ्जों में कहूँ तो बिनायक ने उन बच्चों की परवाह की जिन्हें सरकार ने मरने के छोड़ दिया था।
बिनायक का जुर्म इतना कि आदिवासियों के लिए काम करते हुए उनके अधिकारों की बात की।
सत्ता की मंशा बिनायक को खत्म करना नहीं है। वो तो बिनायक को कैद रख, न्याय की प्रक्रिया पूरी कर, दंड दे कर असल में जन श्रद्धा को तोड़ना चाहती है।