
कांग्रेस पार्टी सम्भवतया अपने
सबसे निराशाजनक दौर से गुजर रही है और यही कारण है कि पार्टी के सम्भावित
मुखिया राहुल गांधी के हर सकारात्मक प्रयत्न पर कांग्रेस हितैषी कार्यकर्ता
के मन में पार्टी के सुदृढ़ होने की उम्मीदें पल्लवित होने लगती हैं।
पार्टी में तमाम वरिष्ठ नेताओं के होने के बाद भी बार-बार नेतृत्व के लिए
आस राहुल गांधी पर ही जा कर टिकती है लेकिन अब तक राहुल गांधी का हर
राजनीतिक प्रयोग असफल होने की हद तक ही कारगर रहा है। ऐसे में 56 दिनों के
अवकाश के बाद राहुल गांधी की सक्रियता अब रेखांकित होने लगी है। वे सदन से
लेकर सड़क तक अपनी खास उपस्थिति दर्ज करवा रहे हैं। ऐसे में सोशल मीडिया पर
राहुल गांधी का अवतरित होना भी एक खास मौका बन गया। वैसे यह कम अचरज भरा
नहीं है कि पिछले लोकसभा सहित विभिन्न विधानसभा चुनावों में जब भाजपा और आम
आदमी पार्टी सोशल मीडिया के मंच पर ताकत से उभरे हैं उसी मंच से कांग्रेस
के युवा सूत्रधार राहुल गांधी अब तक गायब रहे। वे युवाओं को साथ लेकर
पार्टी से लेकर दुनिया तक को बदलने का सपना देख रहे हैं लेकिन युवाओं के
संवाद के तंत्र सोशल मीडिया से गायब हैं, जबकि दूसरे दल सोशल मीडिया को
राजनीतिक अस्त्र बना कर कांग्रेस को धूल चटा चुके हैं। ऐसे परिदृश्य में
अचानक राहुल गांधी ट्विटर पर अवतरित हुए। वास्तव में ट्विटर पर राहुल नहीं
आए बल्कि उनका आॅफिस आया जो राहुल की गतिविधियों की जानकारी दे रहा है।
यहां भी बहुत कुछ छिपाया जा रहा है, तीन ट्वीट में केवल तीन सूचनाएं दी गई
हैं। इसके बाद भी शुरुआती 24-26 घंटों में 40 हजार से अधिक लोगों ने राहुल
गांधी के इस ट्विटर अकाउंट को फालो करना शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि
प्रधानमंत्री होने के बाद भी नरेंद्र मोदी फर्स्ट पर्सन में सारी बातें
सोशल मीडिया पर स्वयं रखते हैं जबकि राहुल गांधी के लिए यह काम कोई ओर कर
रहा है। इसके बाद भी राहुल गांधी के आॅफिस के सोशल मीडिया अकाउंट को मिली
इस लोकप्रियता के कई मायने हैं। यह कांग्रेस के बेहतर भविष्य का संकेत है।
यदि राहुल जन उम्मीदों को सम्भाल पाए तो कांग्रेस का खोया आधार लौटने में
वक्त नहीं लगेगा। दूसरी तरफ, भाजपा और उसके जरिए पीएम मोदी के लिए सोशल
मीडिया की नाराजगी चिंतन का विषय है। सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया त्वरित और
तात्कालिक भले ही होती है लेकिन सभी जानते हैं कि यह मंच असरदार आवाज रखता
है। पिछले कुछ उपचुनावों में भाजपा की हार और अब राहुल गांधी का इस तरह
स्वागत माहौल को पढ़ने के लिए काफी होना चाहिए। राहुल के तेवर और समर्थकों
का अंदाज पार्टी का हौंसला बढ़ाने वाले है लेकिन भविष्य इस बात पर निर्भर
करेगा कि राहुल इसे किस तरह साधते और इस रूप में कायम रहते हैं।