Monday, February 6, 2023

कवि प्रदीप: जब एक लाइन ने अंग्रेज सरकार को कर दिया था असहाय


कवि प्रदीप… यह नाम सुनते ही हमारे ख्‍याल में एक साथ कई गीत बज उठते हैं. ‘ ऐ मेरे वतन के लोगों’, ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालो, हिंदुस्‍तान हमारा है’, ‘चल चल रे नौजवान’, ‘हम लाए हैं तूफान से कश्‍ती निकाल कर’, ‘दूसरा का दुखड़ा दूर करने वाले’, ‘टूट गई है माला’. एक के बाद एक बेहद लोकप्रिय गीतों की शृंखला याद हो आती हैं. ऐसे भी गीत जो टैग लाइन बन गए हैं. जैसे फेरी वाला जब ऊंची आवाज में कहता है, चने जोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार, तब उसे कहां याद रहता है कि इन पंक्तियों को कवि प्रदीप ने लिखा है. हमारे समय में मानवता के पतन से दु:खी हो कर जब हम कहते हैं कि कितना बदल गया इंसान तब बरबस कवि प्रदीप याद हो आते हैं. वहीं प्रदीप जिनके लिखे गीत को गा कर इंदिरा गांधी अपने बचपन की ‘वानर सेना’ में जोश भरती थी. प्रदीप का लिखा ‘आओ बच्‍चों तुम्‍हें दिखाएं झांकी हिंदुस्‍तान की’ बाल सभाओं में सबसे ज्‍यादा गाए जाने वाले गीतों में से एक है. बरसों तक इन्‍हीं के भजनों से जाने कितने घरों में सुबह रोशन हुआ करती थी. कवि प्रदीप का एक परिचय देशभक्ति का संचार करने वाले गीत हैं तो दूसरा परिचय वे भजन हैं जिन्‍होंने हमें समय के पहले सचेत किया.

आज उन्‍हीं कवि प्रदीप की जयंती है. 6 फरवरी 1915 में मध्य प्रदेश के उज्जैन के बड़नगर में एक बाल का जन्‍म हुआ जिसे नाम मिला रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी. घर में रामचंद्र को रामू कहा जाता था. बड़े भाई कृष्‍ण वल्‍लभ द्विवेदी अनुवादक, लेखक, कवि थे. उनकी विद्वता का असर छोटे भाई रामू पर भी हुआ. बड़े भाई गद्य के मनीषी थे तो छोटे भाई रामचंद्र ने काव्‍य को चुना. प्रदीप के नाम से लेखन शुरू किया और शुरुआती लेखन से ही श्रोताओं को मंत्रमुग्‍ध कर दिया. 15-16 बरस की उम्र में ही स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए. अंग्रेजों की लाठियां खाईं. महीनों अस्पताल में भर्ती रहे. यहीं से देशभक्ति के गीतों का लेखन शुरू हुआ.

सुधीर निगम द्वारा लिखी गई जीवनी में कवि प्रदीप के जीवन के बारे में विस्‍तार से बताया गया है. इसके अनुसार अहमदाबाद में काव्‍य पाठ के बाद एक परिचित के साथ मुंबई जाना हुआ और संयोग ऐसा बना कि कवि प्रदीप प्रख्‍यात फिल्‍मकार हिमांशु राय से उनके दफ्तर में मिले. उस समय वहां देविका रानी, अशोक कुमार, लीला चिटनिस, निर्देशक फ्रेंज आस्टिन, शषधर मुकर्जी और अमिय चक्रवर्ती जैसी हस्तियां मौजूद थीं. हिमांशु राय ने प्रदीप से एक गीत सुनाने के लिए कहा. यह फिल्मों में उनकी प्रवेश परीक्षा थी. प्रदीप ने गाया-

तुम हो कहो, कौन?

अब तो खुलो, प्राण, मुंदकर रहो यों न! 

प्रदीप का काव्‍य और स्वर जादू कर गया. हिमांशु राय ने फिल्‍म निर्माण कंपनी बाम्बे टॉकीज में गीतकार की नौकरी की पेशकश कर दी. मासिक वेतन पर मामला अटक गया. लोग हैरत में थे कि किशोर प्रदीप कैसे दिग्‍गज हिमांशु राय को इंकार कर रहे हैं. असल में प्रदीप को दो डर थे. एक तो यह कि वे हिमांशु राय के मन का चाहा लिख पाएंगे या नहीं और दूसरा, उन्‍हें लग रहा था कि वेतन के रूप में 60-70 रुपए मिलेंगे. मगर हिमांशु राय ने 200 रुपए वेतन तय किया तो वे हैरान रह गए. इतना वेतन तो बड़े बड़े अभिनेताओं का भी नहीं था. राजकपूर का भी मासिक वेतन 170 रुपए था.

इस तरह कवि प्रदीप का फिल्‍मों में लेखन आरंभ हुआ. 1940 में आई शषधर मुकर्जी की फिल्म ‘बंधन’ (1940) में सभी 12 गीत प्रदीप ने लिखे थे. इस फिल्म का एक गीत उस समय चर्चित हुआ जो आज भी प्रेरणादायी बना हुआ है. वह गीत यूं है:

दूर तेरा गांव

और थके पांव

फिर भी तू हरदम

आगे बढ़ा कदम

रुकना तेरा काम नहीं

चलना तेरी शान

चल-चल रे नौजवान

चल-चल रे नौजवान.

देश के नवयुवकों को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने के लिए लिखा गया यह गीत इतना पसंद किया गया कि हर जगह गाया जाने लगा. यह गीत जन जागरण के लिए प्रभात फेरियों का मंत्र बन गया. सिंध और पंजाब की विधान सभाओं ने इस गीत को राष्ट्रीय गीत की मान्यता दी. बीबीसी. लंदन में कार्यरत बलराज साहनी ने गीत को कई बार प्रसारित किया. अहमदाबाद में महादेव भाई ने इस गीत की उपमा  ‘चरैवेति चरैवेति’ मंत्र से की. कई सिनेमा घरों में दर्शकों की मांग पर इस गीत को दोबारा दिखाना पड़ता था. संदर्भ बताते हैं कि पं. जवाहर लाल नेहरू ने प्रदीप को बताया था, अपनी किशोरावस्‍था  में इंदिरा प्रभात फेरियों में ‘चल चल रे नौजव़ान’ गाकर अपनी ‘वानर सेना’ की परेड कराती थीं.

यहां बताता दूं कि जब आप कहीं सुने कि ‘चना जोर गरम लेलो’ तब याद कीजिएगा कि यह गीत 1940 की फिल्म ‘बंधन’ का है जिसे कवि प्रदीप ने लिखा है. यह भी एक तथ्‍य है कि 1941 में आई फिल्‍म ‘झूला’ के गीत ‘न जाने किधर आज मेरी नाव चली रे’ गायक अभिनेता अशोक कुमार को इतना पसंद आया था कि उन्होंने इसे अपनी अंतिम यात्रा में बजाने की इच्‍छा जताई थी.

फिर 1943 में प्रदीप और अनिल विश्वास के गीत- संगीत से सजी फिल्‍म ‘किस्‍मत’ ने एक और कीर्तिमान रच दिया. इस फिल्‍म का कालजयी गीत है

आज हिमालय की चोटी से फिर हमने ललकारा है,

दूर हटो ऐ दुनिया वालो ये हिंदुस्तान हमारा है.

‘चल चल रे नौजवान’ के बाद यह ऐसा गीत था जो 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का नारा बन गया था.

जनता एकजुट हो गई. ब्रिटिश सरकार को यह नागवार गुजरा. डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स की दफा 26 के तहत गीतकार प्रदीप पर जांच बैठा दी गई. अभियोजन अधिकारी धर्मेंद्र गौड़ ने मामले की जांच के बाद लिखा कि ‘इस गाने में प्रदीप ने जर्मनी और जापान को अपना निशाना बनाया है अंग्रेजों को नहीं. प्रदीप धोती कुर्ता पहनते जरूर है पर कांग्रेसी नहीं हैं और क्रांतिकारी भी नहीं हैं.’ मामला खत्म हुआ. वास्तव में प्रदीप ने चतुराई दिखाई थी। वे जानते थे कि इस गीत पर अंग्रेज हायतोबा मचाएंगे, इस कारण उन्होंने गीत में एक पंक्ति डाल दी थी- ‘तुम न किसी के आगे झुकना, जर्मन हो या जापानी.’ यही पंक्ति अभियोजन अधिकारी की रिपोर्ट का आधार बनी और चाह कर भी अंग्रेज सरकार कवि प्रदीप पर कार्रवाई नहीं कर सकी.

कवि प्रदीप ने अपने जीवन में लगभग 1700 गाने लिखे. फिल्मों और फिल्म वालों का रवैया बदलने लगा तो उन्होंने 1988 में फिल्मों में लिखना बंद कर दिया. निर्माता पहले से बनाई गई धुनों पर गीत लिखवाना चाहते थे जबकि प्रदीप का कहना था कि मुर्दे का कफन पहले खरीदोगे तो मुर्दे को उसकी साइज का काटना पड़ेगा यह मैं नहीं कर सकता. 1997 में कवि प्रदीप को सिनेमा में भारत के सर्वोच्च पुरस्कार, लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 11 दिसंबर 1998 को कवि प्रदीप की मृत्यु हो गई थी. वे आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके गीत आज भी अमर हैं. खासकर ‘ऐ मेरे वतन के लोगों… तुम खूब लगा लो नारा’.

इस गीत की रचना प्रक्रिया और प्रस्‍तुति भी एक कथा है. यह गीत भारत-चीन युद्ध के शहीदों को याद कर लिखा गया था. लता मंगेशकर ने इसे पहली बार 27 जनवरी, 1963 को दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में गाया था. यह कार्यक्रम युद्ध के बाद सैनिकों को आर्थिक मदद देने के लिए आयोजित किया गया था. सभी मशहूर संगीतकारों ने यहां अपना एक-एक देशभक्ति गीत प्रस्‍तुत किया था. संगीतकार सी. रामचंद्र के पास कोई गाना नहीं था. ऐसे गीत लिखने के आग्रह के साथ कवि प्रदीप के पास पहुंचे. इस आग्रह पर जो गीत बना वह है, ‘ऐ मेरे वतन के लोगों.’

कवि प्रदीप के अनुसार एक दिन ऐसे ही माहिम बीच पर टहल रहे थे. उनके दिमाग में एक लाइन कौंधी और एक पूरा पैरा तैयार हो गया. उस वक्‍त उनके पास कागज-पेन था नहीं. तुरंत एक राहगीर से पेन मांगा और सिगरेट का डिब्बा फाड़कर उस पर गीत लिख दिया. उन्‍होंने गीत के कुल सौ पैराग्राफ लिखे थे. गीत को गाने की बारी आई तो सी. रामचंद्र से लता मंगेशकर की बातचीत बंद थी इसलिए आशा को चुना गया. कवि प्रदीप की इच्‍छा थी कि लता इस गीत को गाए. सी. रामचंद्र तो बात करते नहीं थे, लिहाजा कवि प्रदीप ने ही पहल की. लता उनकी बात टाल नहीं सकीं. तय हुआ कि यह गीत दोनों बहनें लता और आशा गाएंगी मगर ऐनवक्‍त पर आशा भोंसले बीमार पड़ गई और लता मंगेशकर ने यह गीत गाया.

लता ने जब कवि प्रदीप का लिखा गीत गाया तो एक इतिहास बन गया. मोहम्‍मद रफी ने फिल्म ‘लीडर’ का गीत ‘अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं’ गाया. लग रहा था इसके आगे क्‍या कोई गीत होगा?  लेकिन लता के पहली पंक्ति गाते ही स्टेडियम में सन्नाटा पसर गया. सब स्‍तब्‍ध. आंखों में आंसू. गाना पूरा होने के बाद पंडित नेहरू ने लता मंगेशकर को पास बुला कर कहा ‘लता, तुमने आज मुझे रुला दिया’.

पं. नेहरू तो क्‍या उस कार्यक्रम में कौन होगा जो यह गीत सुन कर रोया नहीं होगा? कौन होगा जो प्रदीप के गीतों को सुन कर आज भी दो पल सोचने को मजबूर न होगा?  यह सच ही है कि जो प्रदीप के गीतों को सुन पर अप्रभावी रह गया उसे अपनी संवेदना के स्‍तर को जरूर टटोलना चाहिए. कौन होगा जो आज के हालत को देख-जान कर कवि प्रदीप की पंक्तियों में न कहता होगा:

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान,

कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान,

सूरज ना बदला, चांद ना बदला, ना बदला रे आसमान,

कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान.

आया समय बड़ा बेढंगा, आज आदमी बना लफंगा,

कहीं पे झगड़ा, कहीं पे दंगा, नाच रहा नर होकर नंगा,

छल और कपट के हांथों अपना बेच रहा ईमान,

कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान.

राम के भक्त, रहीम के बंदे, रचते आज फरेब के फंदे,

कितने ये मक्कार ये अंधे, देख लिए इनके भी धंधे,

इन्हीं की काली करतूतों से हुआ ये मुल्क मशान,

कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान.


(न्‍यूज 18 में 6 फरवरी 2023 को प्रकाशित ब्‍लॉग)