श्मशान में सचेत करती अनिल गोयल की पंक्तियाँ
'क्रूरता से विदा किया तुमने/
वे सहजता से चले गए/
चाहो तो लौटा लाओ/
लौटा लाओ कि/
चले जाएँ ना इतनी दूर/
जहाँ से नहीं लौटता कोई।"
सुभाष नगर विश्राम घाट की दीवारों पर चित्रों के साथ टंगी ऐसी ही पंक्तियाँ बरबस रोक लेती है और सोचने को मजबूर करती हैं। कहते हैं श्मशान अस्थाई वैराग्य करवाता है। कुछ पलों के लिए ही सही लेकिन यहीं आकर व्यक्ति को अपनी ताकत और क्षणभंगुरता का अहसास होता है। यही वह पल होते हैं जब वह खालिस अपने कर्म और अपने जीवन के बारे में खरा चिंतन करता है। चिंतन के इन्हीं पलों को अनिल गोयल ने और गहरा, और भावपूर्ण, और असरकारी बना दिया है। विश्राम घाट की दीवारों, पीलर्स पर दो दर्जन से ज्यादा फ्रेम टंगी हैं। हर एक में बुजुर्गों के श्वेत-श्याम चित्रों के साथ काव्य पंक्तियाँ हैं। चिंतन के क्षणों में ये पंक्तियाँ आपको सोचने पर मजबूर करती हैं। बुजुर्गों के साथ अपने व्यवहार का आकलन करने को विवश करती हैं। शायद ही कोई होगा जिसे इन पंक्तियों ने आकृष्ट न किया हो और बिरला ही होगा जिसने इन्हें पढ़ने के बाद भी अपने बुरे बर्ताव में सुधार न किया हो।
मसलन, एक फ्रेम में लिखा है-
'प्रतिबंध था जिसके बोलने पर
उसके बारे में बोला गया
मृदुभाषी शोकसभा में।"
ये पंक्तियाँ किसी विवरण की माँग नहीं करती। सीधे दिल में उतरती हैं और दिमाग पर असर करती हैं। इन कविताओं में बेटों के बाद भी बुजुर्गों के अकेले छूट जाने की पीड़ा को देखा-समझा और महसूसा जा सकता है।
अनिलजी का जन्म 6 नवंबर 1961 को विदिशा में हुआ था। छह साल की उम्र में हुआ पोलियो 70 फीसदी विकलांगता दे गया। शरीर ने कष्ट सहे लेकिन इरादे मुरझाए नहीं, वेदना पा कर संवेदना गहरी होती गई। अनिलजी ने संघर्ष किया, खुद को कभी लेखक, कभी अभिनेता, कभी नाटकों में व्यक्त किया। बुजुर्गों खास कर माँ पर अनिलजी की अभिव्यक्ति लाजवाब है। इस अभिव्यक्ति की शुरूआत भी उन्होंने भोपाल से ही की। वैलेंटाइन डे पर जब युवा पीढ़ी अपने इश्क के इजहार में व्यस्त थी, अनिलजी ने होटल सरल में माँ के प्रति अनुराग दर्शाती फोटो-कविता प्रदर्शनी का आयोजन किया। यहाँ काफी तारीफ मिली। वे कहते हैं कि बुजुर्गों के प्रति यवाओं का व्यवहार उन्हें कष्ट पहुँचाता है। यही वजह है कि उन्होंने श्मशान घाट में चित्र-कविताएँ लगवाई। यदि इससे सबक ले कर बेटों ने माँ-बाप की सुध ले ली तो समझो मकसद पूरा हो गया। अनिलजी इसीबात को एक पोस्टर में कुछ यूँ कहते हैं-
'माँ के कर्ज की किश्त/
समय पर चुकाइये/
सुख समृद्धि और वैभव का बोनस पाइए।"