Saturday, August 26, 2023

दादी-पिता बोले- हमने अंग्रेजों का नमक खाया है तुम क्रांतिकारी न बनो... तो इस एक्टर ने घर ही छोड़ दिया

सिर्फ एक डायलॉग या एक किरदार के किसी अभिनेता के संपूर्ण कार्य पर भारी होने का उदाहरण देना हो तो जो नाम याद आते हैं उनमें प्रमुख नाम होगा एके हंगल और फिल्‍म ‘शोले’ में रहीम चाचा के उनके किरदार का. ‘शोले’ का एक संवाद ‘इतना सन्‍नाटा क्‍यों है भाई’ हमारे जीवन का मुहावरा बन गया है. फिल्‍मों में चरित्र अभिनेता के रूप में लोकप्रिय एके हंगल के 98 बरस के जीवन में कई उतार चढ़ाव आए. देश के स्‍वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए, जेल भी गए. लंबे समय तक थिएटर किया. 50 बरस की उम्र में फिल्‍मों में आए और 97 वर्ष की उम्र व्‍हील चेयर पर रैंप वॉक किया और मृत्‍यु के कुछ माह पहले एनीमेशन फिल्‍म के लिए आवाज दी. एके हंगल का जीवन एक ऐसे हरफनमौल इंसान का जीवन है जिसने परिवार के दबाव के बावजूद अंग्रेजों की नौकरी नहीं की बल्कि घर छोड़ कर भाग जाना मुनासिब समझा. भगत सिंह के बड़े प्रशंसक एके हंगल पर जब शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे द्वारा प्रतिबंध लगाया गया तो आर्थिक रूप से बड़ा नुकसान झेलने के बाद भी वे अपने निर्णय पर अडिग रहे. उन्‍होंने इस प्रतिबंध पर प्रतिक्रिया में कहा था कि बाल ठाकरे नेता बड़े हैं तो हम भी स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी हैं.

26 अगस्‍त उन्‍हीं जुझारू और प्रतिबद्ध कलाकार एके हंगल की पुण्‍यतिथि है. उनका पूरा नाम अवतार किशन हंगल है. उनका जन्‍म  फरवरी 1914 को सियालकोट (पाकिस्तान) में हुआ था. हालांकि, एक इंटरव्‍यू में उन्होंने बताया था कि जब किसी कार्य से जन्‍म तारीख पूछी गई थी तो उन्‍हें पता ही नहीं थी. फिर बातचीत में आजादी के दिन 15 अगस्‍त का ख्‍याल आया और यही उनकी जन्‍म तारीख मान ली गई. उनके बेटे विजय हंगल बताते हैं कि तब से एके हंगल का जन्‍मदिन 15 अगस्‍त को मनाया जाने लगा था. एके हंगल की उम्र 4-5 वर्ष थी तब मां का देहांत हो गया था. उसके बाद पिता बालक अवतार को ननिहाल से अपने पास पेशावर ले आए थे. एके हंगल ने अपने साक्षात्‍कारों और आत्‍मकथा ‘मैं एक हरफनमौला’ (वाणी प्रकाशन) में अपने जीवन तथा उसके उतार-चढ़ावों पर विस्‍तार से बात की है. बचपन में आजादी के संघर्ष का जिक्र करते हुए वे मामा जलियांवाला बाग की मिट्टी घर ले आए थे. उस वक्‍त घर में चलने वाली आजादी के संघर्ष की बातों का बालमन पर असर हुआ. फिर जब सीमांत गांधी कहे गए खान अब्दुल गफ्फार खान के लाल कुर्ती आंदोलन हुआ तो किशोरवय के एके हंगल भी उसमें शामिल हो गए. गौरतलब है कि पठान समुदाय के खान अब्‍दुल गफ्फार खान ने खुदाई खिदमतगार नामक संगठन बना कर लाल कुर्ती पहनने का आंदोलन चलाया था. यह गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन का हिस्‍सा था.

एके हंगल ने बचपन की एक और घटना का जिक्र करते हुए बताया है कि 23 अप्रैल 1930 को पेशावर के किस्सा-ख्वानी बाजार में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ हुए कई भारतीय एकत्रित हुए थे. इस आंदोलन को दबाने के लिए अंग्रेज सरकार ने गढ़वाल रेजिमेंट को भेजा. ब्रिटिश अधिकारियों ने गोली चलाने का आदेश दिया तो रेजिमेंट के प्रमुख चंदर सिंह गढ़वाली ने निहत्‍थे देशवासियों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया. यह ब्रिटिश सरकार को नागवार गुजरा. गढ़वाली रेजीमेंट के बदले ब्रिटिश सैनिकों ने मासूम आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाईं. कई लोग मारे गए. आक्रोशित लोगों ने ब्रिटिश सैनिकों पर पत्‍थर फेंके. किशोर उम्र के एके हंगल भी इन लोगों में शामिल थें. उन्‍हें गोली नहीं लगी लेकिन ब्रिटिश सैनिकों की क्रूरता के शिकार हुए निहत्‍थे लोगों के खून के छींटें उन पर गिरे. बाद में उनका रूझान कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ हो गया जिसके कारण उन्‍हें पाक में जेल में भी रहना पड़ा.

उनके दादा और पिता ब्रिटिश शासन में सरकारी नौकरी में ऊंचे पदों पर थे. वे बताते हैं कि पढ़ाई पूरी होने के बाद उनके पिता युवा एके हंगल को लेकर अपने ब्रिटिश अधिकारी के पास ले गए. पिता ने आग्रह किया कि अंग्रेज अफसर बेटे की सरकारी नौकरी के लिए सिफारिश कर दे. अंग्रेज अफसर ने आवेदन पत्र पर लिखा, ‘रिकमंडेड इफ ही इज एज गुड एज हिज फादर’. अंग्रेजों के लिए अच्‍छा बनना उन्‍हें रास नहीं आया. दादी और पिता ने बहुत समझाने का प्रयास किया लेकिन एके हंगल नहीं माने. जब दादी ने यह कहते हुए दबाव डाला कि हमने इस सरकार का नमक खाया है तुम क्रांतिकारी न बनो तो एके हंगल ने पेशावर छोड़ दिया. वे घर से भाग कर अपनी बहन के यहां दिल्‍ली आ गए. एके हंगल ने ब्रिटिश नौकरी के बदले सिलाई सीखी. उन्‍हें कपड़ों की सूट की इंग्लिश कटिंग में मास्‍टरी हो गई थी. एक इंटरव्‍यू में उन्‍होंने बताया था कि महात्‍मा गांधी और गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर के निकटतम सहयोगी सीएफ एंड्रयूज के सूट भी एके हंगल ने सीले थे. एके हंगल को भी अच्‍छे कपड़े पहनने का शौक पूरे जीवन रहा. अपनी आत्‍मकथा में उन्‍होंने बताया कि एक कार्यक्रम में उनकी महिला प्रशंसक इस बात से खफा हो गई थी कि फिल्‍मों में अपनी छवि के अनुसार एके हंगल धोती कुर्ता पहन कर नहीं सूट पहन कर चले गए थे.

क्रांतिकारी तथा कम्‍युनिस्‍ट विचारों के कारण एके हंगल को जेल भी जाना पड़ा. फिर जब वे बंटवारे के बाद 1949 में भारत आ गए तो इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन (इप्टा) से जुड़ गए. एके हंगल की अभिनय यात्रा इप्‍टा के माध्‍यम से बलराज साहनी और कैफ़ी आज़मी के साथ शुरू हुई.

जब प्रख्‍यात निर्माता-निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने एके हंगल को नाटक में अभिनय करते देखा तो उन्हें फिल्मों में काम करने का न्यौता दिया. तथ्‍य बताते हैं कि एके हंगल ने पहली फिल्‍म राजकपूर अभिनीत ‘तीसरी कसम’ साइन की थी मगर जब फिल्‍म रिलीज हुई तो पता चला कि राजकपूर के बड़े भाई के उनके रोल पर कैंची चल गई थी. 50 साल की उम्र में फिल्‍मों में कॅरियर की शुरुआत कर रहे यह किसी भी कलाकार के लिए दिल तोड़ने जैसी बात ही है. हालांकि, पहली फिल्‍म ‘शागिर्द’ जब 1967 में रिलीज हुई तो एके हंगल छा गए. उसके बाद अपने फिल्मी कॅरियर में एके हंगल ने तकरीबन 225 फिल्मों में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, संजीव कुमार, धर्मेंद्र जैसे कलाकारों के साथ काम किया और बेहतर इंसान की छवि बनाई.

1936 से 1965 तक मंच पर अभिनय तथा 1966 से 2005 तक हिंदी फिल्मों में चरित्र अभिनेता के रूप में दिखाई दिए एके हंगल ने फरवरी 2011 को मुंबई में फैशन डिजाइनर रियाज गंजी के लिए व्हीलचेयर में रैंप वॉक किया था. उन्‍होंने मई 2012 में टीवी सीरियल ‘मधुबाला – एक इश्क एक जूनून’ में अतिथि भूमिका निभाई और वर्ष 2012 की शुरुआत में एनीमेशन फिल्म ‘कृष्ण और कंस’ में राजा उग्रसेन के चरित्र को अपनी आवाज दी. उम्र के सौ बरस के करीब पहुंचने तक एके हंगल शारीरिक और आर्थिक परेशानियों से घिर गए थे.

असल में, जीवन भर चरित्र भूमिकाएं निभाने के कारण एके हंगल कभी भी बहुत समृद्ध नहीं हो पाए. यहां तक कि जब उनके घर आयकर विभाग का छापा हुआ तो जांच दल यह जानकार चौंक गया था कि इतना बड़ा कलाकार किराए के मकान में रहता है. उनके घर से आय से अधिक सम्‍पत्ति तो दूर बेहतर जीवन जीने लायक पैसा भी नहीं मिला था. फिर जब वे अपना पुश्‍तैनी घर देखने पाकिस्तान गए तो वहां उन्‍हें पाकिस्तान दिवस समारोह में आमंत्रित किया और वे कार्यक्रम में शामिल हो गए. यह शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे को नागवार गुजरा उन्‍होंने एके हंगल को ‘देशद्रोही’ करार देते हुए उनकी फिल्‍मों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा दिया. उनकी फिल्में महाराष्ट्र और आसपास के टॉकीज से हटा दी गईं. उन्‍हें काम मिलना बंद हो गया. इसके बाद भी वे झुके नहीं बल्कि जवाब दिया कि वे देशद्रोही नहीं बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी हैं. करीब दो साल के बहिष्कार के बाद प्रतिबंध हटाया गया लेकिन तब तक एके हंगल का बतौर कलाकार काफी नुकसान हो चुका था. उम्र बढ़ने के साथ काम मिलना बंद हुआ और फिर एक समय ऐसा आया जब इलाज के लिए भी पैसा नहीं था तब बॉलीवुड ने सहायता की पेशकश की थी. हमेशा अपने विचार और काम के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध रहे अभिनेता एके हंगल ने 26 अगस्त, 2012 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया.

विचारों से वे कम्‍युनिस्‍ट थे तथा उम्र भर इस विचारधारों के अनुयायी बने रहे. वे गलत के खिलाफ आवाज जरूर उठाते थे. जब टेलर हुआ करते थे तो बंबई में ‘टेलरिंग वर्कर्स यूनियन’ का गठन किया और टेलर समुदाय के कठिनाइयों पर लड़ाई लड़ी. संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन की शुरुआत हुई तो वे भी इस आंदोलन का हिस्सा बने. गोवा मुक्ति के आंदोलन में भी उनकी भागीदारी थी.

जबकि फिल्‍मों में उन्‍होंने ऐसे चरित्रों को जीवंत किया जो हमारे आसपास के लगते हैं. ऐसे अच्‍छे और सच्‍चे चरित्र जिन पर सबको विश्‍वास और आस्‍था होती है. अपनी इस छवि पर खुद एके हंगल ने एक बार टिप्‍पणी की थी कि पर्दे पर उनका चरित्र यदि पिस्‍तोल पकड़ कर खड़ा हो जाए तो भी दर्शक उस चरित्र को बुरा चरित्र नहीं मानेंगे. उन्‍होंने अपने अभिनय से यह विश्‍वास हासिल किया था. यह विडंबना है कि उनके जैसे चरित्र अभिनेता का उत्‍तरार्द्ध संकटग्रस्‍त गुजरा.

(न्‍यूज 18 पर 26 अगस्‍त 2023 को प्रकाशित)