Sunday, May 16, 2010

आपके पड़ोस में भी है एक 'आनंदी"

अबके जन्म मुझे बिटिया न कीजो"। खेलने-पढ़ने की उम्र में बहू बना दी गई बच्चियाँ कुछ इसी अंदाज में अपनी किस्मत को कोसती हैं। वे बहती आँखों से उन्हीं माँ-बापू पर गुस्से का इजहार करती हैं जिन्होंने उसे कच्ची उम्र में जिम्मेदारियों के दलदल में धकेल दिया। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी झुग्गी बस्तियों में बाल विवाह होते हैं। केवल विवाह ही नहीं होते कम उम्र में माँ बनने के कारण बच्चियाँ मौत के मुँह में समा रही है। केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग ने 2005 में तय किया था कि 2010 तक बाल विवाह प्रथा को खत्म कर देंगे। यह संभव नहीं हुआ।
धारावाहिक 'बालिका वधू" में बाल विवाहिता आनंदी की तकलीफें देख भले ही दर्शकों की आँखें भर आती है लेकिन असल जीवन में बाल विवाह रोकने के लिए विरोध् का स्वर तेज नहीं होता। हकीकत यह है बाल विवाह के मामले में प्रदेश चौथे नंबर पर है। बड़वानी, शाजापुर, राजगढ़ और श्योपुर में आधी महिलाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में हुआ है। आपके आस-पड़ोस में भी आनंदी की तरह बालिका वधू है जो बालपन में बड़े सदमें झेल रही है।

अगर आप यह सोचते हैं कि धारावाहिक में दिखाए जाने वाले बाल विवाह और बालिका वधुओं की पीड़ा गुजरे जमाने की बात हो गई तो आप गलत है। असल में हमारे प्रदेश सहित देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बालिका विवाह बदस्तूर जारी है। बाल विवाह की पैठ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केरल जैसे साक्षर प्रांत में भी 15.4 बालिकाओं का विवाह 18 वर्ष से कम उम्र में हुआ है। इसका अर्थ यह है कि बाल विवाह रोकने में शिक्षा से ज्यादा जरूरी समझ और जागरूकता बढ़ना है। सरकारी आँकड़े बताते हैंै कि देश में 47.7 फीसदी महिलाओं का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पहले हो गया। इस मामले में मध्यप्रदेश चौथे स्थान पर है। यहाँ बाल विवाह का प्रतिशत 57.3 है। बिहार (69%) अव्वल है। फिर राजस्थान (65.2%) तथा झारखंड (63.2%) का नंबर आता है।

क्यों करें विरोध

बाल विवाह का विरोध करने का सबसे बड़ा कारण बालिकाओं का स्वास्थ्य है। यह तर्क बेमानी है कि शादी भले ही जल्दी कर दी जाए गोना तो बाद में होता है। इस तर्क को खारिज करने में एक बार फिर आँकड़े ही सहारा बनते हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 के अनुसार देश में 15 से 19 वर्ष की 16 फीसदी युवतियाँ या तो माँ बन चुकी थी या पहली बार गर्भवती थी। कम उम्र में गर्भध्ाारण के कारण गर्भपात, कम वजन के बच्चे का जन्म, बच्चों और माँ में कुपोषण, रक्त की कमी, और माँ की मृत्यु तक हो सकती है। अध्ययनों में सिद्ध हो चुका है कि 15 वर्ष में माँ बनने पर मातृ मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र में माँ बनने से पाँच गुना ज्यादा होती है।