मध्यप्रदेश के खरगोन, झाबुआ, अलीराजपुर, शहडोल जैसे आदिवासी जिलों में कुछ समय पहले एक अजीब तरह का रोग पैर पसार रहा था. लोगों के जोड़ों में दर्द रहता था. बार-बार पीलिया हो रहा था. खून की कमी होने लगी थी तथा चेहरा पीला हो रहा था. उन्होंने झाड़-फूंक करवाई, सरकारी स्वास्थ्य केंद्र से दवाई ली लेकिन बीमारी ठीक नहीं. ऐसे ही आदिवासी परिवार में एक युवक की स्थिति गंभीर हुई तो घबराहट बढ़ गई. यहां-वहां इलाज करवाते रहे. शारीरिक समस्या कि वजह से परिवार में काम करने वाले लोगों की संख्या भी कम हो गई. इलाज का खर्च भी बढ़ गया. इलाज के लिए पैसा जुटाते-जुटाते जमीन बिक गई. जब जिला अस्पताल में पहुंचे और युवक के खून की जांच हुई तो पता चला कि वह सिकल सेल एनीमिया के रोगी हैं. उनके परिजनों की जांच की गई तो पता चला कि दो बहन सिकल सेल वाहक निकले.
इसके बाद से परिवार की स्थिति में बदलाव आया है. इलाज बदस्तूर जारी है, मगर अब रोग न फैलने का तरीका पता चल गया है. सरकार भी इस मुहिम में जुट गई है कि सिकल सेल वाहक ओर रोगियों का डेटा बेस तैयार कर लिया जाए ताकि इस आनुवांशिक रोग को फैलने से रोकने के लिए शादी के पहले उचित सलाह दी जा सके.
यह रोग जनजातीय आबादी में अधिक फैला हुआ है इसलिए चिंता का कारण भी है. अब तक उपलब्ध आंकड़ें बताते हैं कि देश में करीब 10.30 करोड़ लोग सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित हैं. इनमें सबसे अधिक छत्तीसगढ़ में दो करोड़ 55 लाख 40 हजार 192 लोग पीड़ित हैं. दूसरे स्थान पर मध्य प्रदेश है. एमपी में एक करोड़ 53 लाख 16 हजार 784 लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं. तीसरे स्थान पर महाराष्ट्र है, जहां एक करोड़ से ज्यादा मरीज हैं.
बीमारी और शादी का क्या कनेक्शन?
नवंबर 2021 में मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल अलीराजपुर और झाबुआ जिलों में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया था. इसके तहत दोनों जिलों में दस लाख लोगों की जांच की गई. जांच किए गए 9 लाख 93 हजार 114 व्यक्तियों में से 18 हजार 866 को वाहक के रूप में तथा 1,506 को रोगी के रूप में पाया गया. इसके बाद राज्य के सभी 89 आदिवासी ब्लॉकों में परियोजना का विस्तार किया गया है. इसके साथ ही सिकल सेल वाहक और रोगी को विवाह-पूर्व परामर्श और कार्ड दिए गए हैं, जिससे विवाह के समय सावधानी रखी जा सके. छत्तीसगढ़ ने हिंदी और अंग्रेजी में ‘सिकल कुंडली’ भी तैयार की है कि विशिष्ट सिकल सेल स्थिति वाले दो व्यक्तियों को शादी करनी चाहिए या नहीं.
लोगों को समझाया जा रहा है कि सिकल सेल एनीमिया ऐसा रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं जल्दी टूट जाती हैं जिसके कारण एनीमिया तथा अन्य स्वास्थ्य समस्याएं जैसे फेफड़ों में संक्रमण, गुर्दे और यकृत की विफलता, स्ट्रोक आदि होती हैं. समस्या बढ़ने पर मृत्यु की आशंका रहती है. सिकल सेल की समस्या दो तरह से होती है. एक सिकल सेल वाहक होते हैं जिनमें कोई लक्षण नहीं होते हैं या बहुत कम लक्षण दिखाई देते हैं. दूसरे होते हैं, सिकल सेल रोगी जिनमें गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं. सिकल सेल वाहक में गंभीर लक्षण नहीं होते हैं तो उन्हें कोई समस्या नहीं होती है मगर वे अगली पीढ़ी में असामान्य जीन को संचारित करते हैं, यानी उनके बच्चे सिकल सेल एनीमिया पीड़ित हो सकते हैं.
सिकल सेल को यह नाम लैटिन भाषा से मिला है. लैटिन में सिकल का अर्थ हंसिया होता है. जब लाल रक्त कोशिकाओं का आकार का लचीलापन खत्म हो जाता है और वह अर्द्ध गोलाकार एवं सख्त हो जाते हैं जिसे सिकल सेल कहा जाता है. यह धमनियों में अवरोध उत्पन्न करती हैं जिससे शरीर में हीमोग्लोबिन व खून की कमी होने लगती है इसलिए इसे सिकल सेल एनीमिया कहा जाता है. इस रोग में व्यक्ति के शरीर में अलग-अलग प्रकार की शारीरिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं- जैसे कि हाथ-पैरों में दर्द, कमर के जोड़ों में दर्द होना, अस्थि रोग, बार-बार पीलिया होना, लीवर पर सूजन आना, मूत्राशय में रुकावट और दर्द, पित्ताशय में पथरी होना.
माता-पिता से बच्चों को हो जाती है ये बीमारी
यह रोग आनुवांशिक है. हर व्यक्ति को अपने माता-पिता के माध्यम से एक जीन मिलता है. यदि माता और पिता में सिकल सेल के गुण अथवा सिकल सेल का रोग नहीं है तो उनके बच्चों को यह रोग नहीं होता है. यदि माता अथवा पिता दोनों में से कोई भी एक व्यक्ति सिकल वाहक होगा तो उसके बच्चे के सिकल वाहक होने 50 फीसदी आशंका होती है. लेकिन इसमें से किसी भी बच्चे को सिकल रोग नहीं होती है.
यदि माता पिता दोनों ही सिकल वाहक होंगे तो उनके 25 फीसदी बच्चों को सिकल रोग, 50 फीसदी बच्चे सिकल वाहक और मात्र 25 फीसदी सामान्य बच्चे होने की संभावना रहती है. खतरे की बात यह है कि यदि माता-पिता में से कोई भी एक व्यक्ति सिकल रोगी होता है और दूसरा व्यक्ति सामान्य है तो 100 यानी कि सभी बच्चे सिकल वाहक हो सकते है परंतु सिकल रोगी नहीं. यदि माता-पिता दोनों में से एक व्यक्ति सिकल रोग वाला और एक व्यक्ति सिकल वाहक वाला होगा तो उनके 50 फीसदी बच्चे सिकल रोग वाले होंगे और 50 फीसदी बच्चे सिकल वाहक वाले होंगे. यदि माता पिता दोनों सिकल रोग वाले होंगे तो 100 फीसदी यानी कि सभी बच्चे सिकल रोग वाले ही जन्म लेंगे.
हल्की नहीं, बड़ी खतरनाक है ये बीमारी
इसे नाम के कारण सामान्य एनीमिया नहीं मानना चाहिए, क्योंकि इस रोग का यूं कोई कारगर इलाज नहीं है. इससे बचाव ही इसका इलाज है. मतलब यदि शादी के पहले जिस तरह कुंडली मिलाई जाती है उसी तरह ब्लड टेस्ट करवा कर सिकल सेल एनीमिया रोग या वाहक की जानकारी पता कर ली जाए तो आने वाली पीढ़ी को सिकल रोग से बचाया जा सकता है. यही वजह है कि इसके खतरों और प्रसार के प्रतिलोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 19 जून को विश्व सिकल सेल जागरूकता दिवस मनाया जाता है.
सिकल सेल रोग संगठनों के वैश्विक संगठन ने सिकल सेल रोग की स्थिति जानने के लिए आधुनिक उन्नत तकनीक के उपयोग का आग्रह किया है. इस जागरूकता अभियान का मकसद यह सुनिश्चित करना भी है कि विवाह करने वाले दोनों व्यक्तियों में सिकल वाहक अथवा सिकल रोग नहीं होना चाहिए. इसी तरह यदि परिवार में किसी भी सदस्य को सिकल सेल एनीमिया है तो परिवार के सभी सदस्यों के रक्त की सिकल सेल की जांच करवाई जानी चाहिए.