बाघों की लगातार घटती संख्या से चिंतित पर्यावरणविदों के लिए यह अच्छी खबर है कि भोपाल के आसपास बाघों का कुनबा बढ़ता जा रहा है। समरधा रेंज में करीब 10 बाघ देखे जा रहे हैं। लेकिन वन विभाग इस सूचना पर प्रसन्न होने की अधिक गुंजाइश नहीं दे रहा है। वन विभाग की रीति-नीति यही रही तो इन बाघों का समय के पहले मरना तय है। मानव द्वारा शिकार, मानव-बाघ संघर्ष, बाघ का आमदखोर हो जाना, बाघों का आपसी क्षेत्र विवाद, भोजन की कमी, शिकार से फैले संक्रमण आदि के कारण बाघों की सर्वाधिक मौत होती है। बाघ शर्मिला प्राणी है और वह बूढ़ा, भूखा या चोटिल हो तभी इंसानी इलाकों में आता है। भोपाल में बाघ इंसानी क्षेत्र में आ रहा है तो इसके कारणों को जान कर उपाय करना अनिवार्य है। वन विभाग ने इन सभी कारणों को रोकने के लिए कोई अहम् कदम नहीं उठाए तो स्वाभाविक है कि इन बाघों को समय के पहले मरना होगा।
बाघ की समय मौत होने की आशंका है क्यूंकि
1. बाघों की बढ़ती आमद और रिहायशी इलाके में इजाफे से सीधे-सीधे मानव और बाघों के संघर्ष की स्थितियां बन गई है। इस संघर्ष को टालने के लिए हाथी के जरिए हाका लगाया जाता है। बाघ का अपना इलाका तय होता है इसलिए उसके क्षेत्र में इंसानों की आमदरफ्त को रोका जा सकता है। भौगोलिक स्थितियों के कारण हाथी से हाका लगाना संभव नहीं है तो वन विभाग ने लोगों को लाठी लेकर मैदान में उतार दिया। ये लाठियां इस संघर्ष को कैसे रोकेंगी?
2. भोपाल में बाघ यदि रातापानी अभयारण्य से केरवा की तरफ अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं तो विभाग को पता लगाना चाहिए कि ऐसा कुनबा बढ़ने के ही कारण हो रहा है या वहां उनका आहार कम हो गया है। केरवा क्षेत्र में बाघ का प्राकृतिक आहार हिरण, चीतल आदि नहीं है तो स्वाभाविक है कि वह गाय, सुअर आदि पर हमला करेगा। जैसा वह कर रहा है। पालूत पशुओं पर यह हमला मानव से उसका संघर्ष बढ़ाएगा।
3. बाघ अपना शिकार कभी एक बार में पूरा नहीं खाता और वह खाने के लिए शिकार तक लौटता है। इसी का लाभ उठा कर शिकारी बाघ के शिकार में जहर मिला कर बाघ को मार देते हैं। भोपाल के आसपास बाघ पालतू पशुओं का शिकार कर रहा है। ऐसे में उसके शिकार में जहर मिला दिया गया तो बाघ का मरना तय है। शिकारियों से सुरक्षा के लिए बाघ संरक्षित क्षेत्र का नोटिफिकेषन होना चाहिए जो अब तक नहीं हुआ है।
4. सर्वोच्च न्यायालय के आदेष हैं कि बाघ संरक्षित क्षेत्र के आसपास के 5 किमी दायरे के पालतू पशुओं का टीकाकरण किया जाना चाहिए ताकि बाघ उन पशुओं की बीमारी से संक्रमित हो कर न मरे। पूरे देश में यह काम होता भी है। लेकिन भोपाल में बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित न होने के कारण केरवा के आसपास पालूत पशुओं का टीकाकरण नहीं हुआ है। यदि इन पशुओं का शिकार हुआ तो बाघ को संक्रमण होने की पूरी आशंका है।
बाघ की समय मौत होने की आशंका है क्यूंकि
1. बाघों की बढ़ती आमद और रिहायशी इलाके में इजाफे से सीधे-सीधे मानव और बाघों के संघर्ष की स्थितियां बन गई है। इस संघर्ष को टालने के लिए हाथी के जरिए हाका लगाया जाता है। बाघ का अपना इलाका तय होता है इसलिए उसके क्षेत्र में इंसानों की आमदरफ्त को रोका जा सकता है। भौगोलिक स्थितियों के कारण हाथी से हाका लगाना संभव नहीं है तो वन विभाग ने लोगों को लाठी लेकर मैदान में उतार दिया। ये लाठियां इस संघर्ष को कैसे रोकेंगी?
2. भोपाल में बाघ यदि रातापानी अभयारण्य से केरवा की तरफ अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं तो विभाग को पता लगाना चाहिए कि ऐसा कुनबा बढ़ने के ही कारण हो रहा है या वहां उनका आहार कम हो गया है। केरवा क्षेत्र में बाघ का प्राकृतिक आहार हिरण, चीतल आदि नहीं है तो स्वाभाविक है कि वह गाय, सुअर आदि पर हमला करेगा। जैसा वह कर रहा है। पालूत पशुओं पर यह हमला मानव से उसका संघर्ष बढ़ाएगा।
3. बाघ अपना शिकार कभी एक बार में पूरा नहीं खाता और वह खाने के लिए शिकार तक लौटता है। इसी का लाभ उठा कर शिकारी बाघ के शिकार में जहर मिला कर बाघ को मार देते हैं। भोपाल के आसपास बाघ पालतू पशुओं का शिकार कर रहा है। ऐसे में उसके शिकार में जहर मिला दिया गया तो बाघ का मरना तय है। शिकारियों से सुरक्षा के लिए बाघ संरक्षित क्षेत्र का नोटिफिकेषन होना चाहिए जो अब तक नहीं हुआ है।
4. सर्वोच्च न्यायालय के आदेष हैं कि बाघ संरक्षित क्षेत्र के आसपास के 5 किमी दायरे के पालतू पशुओं का टीकाकरण किया जाना चाहिए ताकि बाघ उन पशुओं की बीमारी से संक्रमित हो कर न मरे। पूरे देश में यह काम होता भी है। लेकिन भोपाल में बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित न होने के कारण केरवा के आसपास पालूत पशुओं का टीकाकरण नहीं हुआ है। यदि इन पशुओं का शिकार हुआ तो बाघ को संक्रमण होने की पूरी आशंका है।