बैतूल जिले से अपने परिवार के साथ गेहूं कटाई के लिए इटारसी आई आदिवासी युवती को बलात्कार के बाद जला दिया गया। यह घटना इटारसी के पड़ोसी गांव सोमलवाड़ा कला में बुध्ावार की सुबह हुई।
सरकारी अस्पताल में भर्ती थाना सारणी निवासी 18 वर्षीय युवती उसके ही मुंह बोले जीजा जीलू की हवस का शिकार बन गई । युवती अपने परिजनों के साथ 15 दिन पूर्व सोमलवाड़ा कला गांव में गेहूं कटाई के लिए आई थी। पुलिस के अनुसार बुधवार की सुबह 5 बजे युवती अपने तीन साथियों सविता, विनोद और जीलू के साथ ट्रेक्टर-ट्राली पर सवार होकर राजकुमार माल्हा के खेत मंे पहुंचे। जहां चारों ने ट्राली में भूसा भरा, सविता और विनोद तो ट्रेक्टर-ट्राली के साथ वापस लौट आए। जीलू ने खेत में अकेला पाकर युवती से जोर जबरदस्ती की और जब युवती ने यह बात अपने परिवार को बताने की धमकी दी तो उसके मुंहबोले जीजा और एक और साथी ने खेत की नरवाई में आग लगाकर बलात्कार की शिकार युवती को आग में धकेल दिया। युवती बुरी तरह झुलस गई ।
पुलिस ने आरोपी के खिलाफ धारा 376, 307 का अपराध दर्ज किया है । आरोपी की तलाश में पुलिस दल को उसके गांव और अन्य संभावित ठिकानों पर भेजा गया है।
एक ओर युवती पुरूष हैवानियता का शिकार हुई। मध्यप्रदेश में युवतियों, बच्चियों से पहले छेड़छाड़ और विरोध्ा करने पर उन्हें जला देने की घटनाएँ तेजी से बढ़ती जा रही है। नेशनल क्राइम ब्यूरो की माने तो साल 2007 में सबसे ज्यादा 3010 बलात्कार मध्यप्रदेश में हुए थे। बच्चों के साथ बलात्कार में भी मध्यप्रदेश ही अव्वल (892)है। अब मामले बढ़ रहे हैं जब जोर जर्बदस्ती किसी के साथ बलात्कार का प्रयास करो, और वह जब इंकार कर दे तो उसे आग के हवाले कर दो। वाह रे पुरूष !!!
आज तो शहर में बेटी का होना माता-पिता के लिए (अफसोस) सबसे बड़ा बोझ हो गया है। पहले तो बेटी के जन्म पर लोग दुख मनाते थे कि दहेज देना होगा। इस ध्ाारणा को बदलने में कितना ही जोर लगाया लेकिन हम पूरी तरह कामयाब नहीं हुए और अब... माता पिता बेटी के जन्म पर सोचते हैं कि इसकी सुरक्षा कैसे करेंगे?
कितना त्रासद होता होगा उन बेटियों के लिए जिन्हें केवल इसलिए घर में कैद कर दिया जाता है कि उनके काका, मामा, भाई, कोई सगा या कोई परिचित या कोई 'आँखवाला" (जिनकी बुरी नजर इन पड़ जाए) इन्हें अपनी हवस का शिकार बना सकते हैं। मासूम बच्चियाँ आँगन में खेल नहीं सकती, फूदक नहीं सकती और अपने भाई जितने बड़े सपने नहीं देख सकती। सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हक उन्हें प्रकृति ने दिया है, संविध्ाान भी इसकी पुष्टि करता है लेकिन समाज उन्हें बराबरी का यह अध्ािकार नहीं दे पाया। मैं ऐसे कई परिवारों को जानता हूँ जो बेटियों कैद में रखने के हिमायती हैं। पहले वेे पराया ध्ान मान कर सहेजते थे अब बदनामी और असुरक्षा के भय से
ये हाल तो शहरों के हैं। गाँव अभी भी शहरों की तुलना में कई बुराइयों से बचे हुए लेकिन लड़कियाँ यहाँ भी बदकिस्मत निकली। उनके लिए गाँव में भी वैसे ही हालात हैं जैसे शहरों में। यानि पढ़ाई-लिखाई का कोई असर नहीं। हम किसी के स्वाभिमान को कुचलेंगे सो कुचलेंगे। अगर लड़की ने इच्छा का पालन नहीं किया तो सभी जगह एक ही कानून- उसे जला दो।
ऐसी घटनाएँ पीड़ा देती है। दुख है कि समाज में लिंगानुपात का अंतर बढ़ रहा है और लड़कियों की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं।
मुझे एक साथी ने आपबीती बताई थी- मैंने कक्षा सातवीं की किताब में एक कहानी पढ़ी थी-'लड़की हूँ ना। इस कहानी में पढ़ा था कि एक लड़की को उसकी माता लड़की होने के लिए प्रताड़ित करती थी। सारा दोष उसकी कहा जाता था। भाई फेल हो तो भी दोषी वह, भाई का पेट दुखे तो भी दोषी वह। एक दिन किसी ने पूछ लिया- तुम्हे दुख नहीं होता तुम्हारी माँ तुम्हें पिटती है और भाई को दुलार करती है। लड़की ने जवाब दिया-नहीं। मैं लड़की हूँ ना।
कहानी सुनाने के बाद उस युवती ने बताया कि उसने भी घर जा कर अपनी माँ के कार्य व्यवहार को गौर से देखा था और यह जानने का प्रयास किया था कि उसके भाई को लड़का होने के क्या फायदे मिल रहे हैं और उसे लड़की होने के क्या नुकसान हैं।"
इस आपबीती से इतना तो पता चलता है कि घटनाएँ बहुत देर तक पीछा करती हैं। उन बच्चियों का क्या होता होगा जिनकी इच्छा को रौंद दिया जाता है, बेरहमी से।
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वर्ष 2007 में बलात्कार-नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो
3010-मध्यप्रदेश
2106-प बंगाल
1648-उत्तर प्रदेश
11555-बिहार
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बाल अपराध दर्ज मामले-2007, नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो
मध्यप्रदेश-4290
महाराष्ट्र-2707
उत्तप्रदेश-2248
दिल्ली-2019
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बच्चों के साथ बलात्कार-2008, गृह मंत्रालय के आंकड़े
मध्यप्रदेश-892
महाराष्ट्र-690
राजस्थान-420
आंध्रप्रदेश-412
छत्तीसगढ़-411
दिल्ली-301