कुछ अपनी
Wednesday, September 8, 2010
नमक
~ श्री आरके झारिया
के चित्र पर अपनी कविता~
बूढ़ी हड्डियाँ पूरी ताकत लगा
ढोती है जिंदगी।
उम्र के इस पड़ाव पर भी
जवाब नहीं देती उम्मीदें।
हाड़तोड़ मेहनत के बाद
दो पल का आराम और
चाय की चुस्कियों का साथ
भर देता है आँखों में उजास।
तब चाय के नमक और
पसीने के नमक में भेद नहीं रहता।
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