Thursday, September 17, 2015

बाघ का समय के पहले मरना तय!

बाघों की लगातार घटती संख्या से चिंतित पर्यावरणविदों के लिए यह अच्छी खबर है कि भोपाल के आसपास बाघों का कुनबा बढ़ता जा रहा है। समरधा रेंज में करीब 10 बाघ देखे जा रहे हैं। लेकिन वन विभाग इस सूचना पर प्रसन्न होने की अधिक गुंजाइश नहीं दे रहा है। वन विभाग की रीति-नीति यही रही तो इन बाघों का समय के पहले मरना तय है। मानव द्वारा शिकार, मानव-बाघ संघर्ष, बाघ का आमदखोर हो जाना, बाघों का आपसी क्षेत्र विवाद, भोजन की कमी, शिकार से फैले संक्रमण आदि के कारण बाघों की सर्वाधिक मौत होती है। बाघ शर्मिला प्राणी है और वह बूढ़ा, भूखा या चोटिल हो तभी इंसानी इलाकों में आता है। भोपाल में बाघ इंसानी क्षेत्र में आ रहा है तो इसके कारणों को जान कर उपाय करना अनिवार्य है। वन विभाग ने इन सभी कारणों को रोकने के लिए कोई अहम् कदम नहीं उठाए तो स्वाभाविक है कि इन बाघों को समय के पहले मरना होगा। 
बाघ की समय मौत होने की आशंका है क्यूंकि 
1. बाघों की बढ़ती आमद और रिहायशी इलाके में इजाफे से सीधे-सीधे मानव और बाघों के संघर्ष की स्थितियां बन गई है। इस संघर्ष को टालने के लिए हाथी के जरिए हाका लगाया जाता है। बाघ का अपना इलाका तय होता है इसलिए उसके क्षेत्र में इंसानों की आमदरफ्त को रोका जा सकता है। भौगोलिक स्थितियों के कारण हाथी से हाका लगाना संभव नहीं है तो वन विभाग ने लोगों को लाठी लेकर मैदान में उतार दिया। ये लाठियां इस संघर्ष को कैसे रोकेंगी?
2. भोपाल में बाघ यदि रातापानी अभयारण्य से केरवा की तरफ अपने क्षेत्र का विस्तार कर रहे हैं तो विभाग को पता लगाना चाहिए कि ऐसा कुनबा बढ़ने के ही कारण हो रहा है या वहां उनका आहार कम हो गया है। केरवा क्षेत्र में बाघ का प्राकृतिक आहार हिरण, चीतल आदि नहीं है तो स्वाभाविक है कि वह गाय, सुअर आदि पर हमला करेगा। जैसा वह कर रहा है। पालूत पशुओं पर यह हमला मानव से उसका संघर्ष बढ़ाएगा।
3. बाघ अपना शिकार कभी एक बार में पूरा नहीं खाता और वह खाने के लिए शिकार तक लौटता है। इसी का लाभ उठा कर शिकारी बाघ के शिकार में जहर मिला कर बाघ को मार देते हैं। भोपाल के आसपास बाघ पालतू पशुओं का शिकार कर रहा है। ऐसे में उसके शिकार में जहर मिला दिया गया तो बाघ का मरना तय है। शिकारियों से सुरक्षा के लिए बाघ संरक्षित क्षेत्र का नोटिफिकेषन होना चाहिए जो अब तक नहीं हुआ है।
4. सर्वोच्च न्यायालय के आदेष हैं कि बाघ संरक्षित क्षेत्र के आसपास के 5 किमी दायरे के पालतू पशुओं का टीकाकरण किया जाना चाहिए ताकि बाघ उन पशुओं की बीमारी से संक्रमित हो कर न मरे। पूरे देश में यह काम होता भी है। लेकिन भोपाल में बाघ संरक्षित क्षेत्र घोषित न होने के कारण केरवा के आसपास पालूत पशुओं का टीकाकरण नहीं हुआ है। यदि इन पशुओं का शिकार हुआ तो बाघ को संक्रमण होने की पूरी आशंका है। 

Monday, September 14, 2015

वे पूछ रहे हैं- अपने की मृत्यु तो नहीं हुई, कैसे कहूं सब मेरे ही थे?

पेटलावद से वाट्सएप पर दोस्त मनीष अग्रवाल के संदेश ने मुझे मुश्किल में डाल दिया है। उसने लिखा है-‘विस्फोट के बाद लोग मुझसे पूछ रहे हैं हादसे का शिकार कोई मेरा अपना तो नहीं हुआ? क्या जवाब दूं?’ सच ही कह रहा है मनीष। ऐसे कई लोग होंगे जिनका कोई अपना सगा उस हादसे का शिकार नहीं हुआ होगा। लेकिन जो हताहत हुए हैं, वे भी तो किसी सगे से कम नहीं थे। जो घायल हुए हैं उनका दर्द भी उतना ही परेशान कर रहा है जितना किसी मेरे अपने का दर्द मुझे परेशान करता। कोई कैसे समझेगा उस पीड़ा को जो पेटलावद में या उसके बाहर बसे पेटलावद के बाशिंदों को महसूस हो रही है। जिनके किसी अपने की मौत नहीं हुई लेकिन जिनकी हुई है, वे भी तो अपनों से बढ़कर अपने थे। 
पेटलावद... मेरे दिल के सबसे करीब का कस्बा। जहां मेरा जन्म हुआ और जीवन के पूरे सत्रह साल गुजरे। वहां की एक-एक गलियां से मैं वाकिफ हूं। सिरवी मोहल्ला, झंडा बाजार, गांधी चौक, नया बस स्टैण्ड, माही काॅलोनी...। इन मोहल्लों के जितने घर, जितने लोग। सब अपने। हर गली में दोस्त। हर चैराहे की एक बिरली याद। मेरे साथ कई दोस्त अपना कॅरियर बनाने पेटलावद से निकले थे। हमारी यादों में बचपन का सुहाना पेटलावद है। लेकिन, अब शनिवार, 12 सितंबर की सुबह के बाद से एक खौफनाक मंजर आंखों में तैर रहा है। उस दिन अमावस्या थी। मैं नहीं मानता कि कोई दिन या कोई तिथि बुरी होती है लेकिन वह तारीख तो सचमुच काली ही साबित हुई। विस्फोट का शिकार हुए करीब सौ लोग अब इस दुनिया में नहीं है। लगभग इतने ही गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इन लोगों के अलावा पेटलावद में सैकड़ों लोग जिंदा हैं, उनके शरीर पर कोई जख्म नहीं है लेकिन उनके दिल और दिमाग के घाव गहरे हैं। जो दुनिया से चले गए उनके साथ गुजारे पलों की यादें रिस रही हैं। उस दिन क्षतविक्षत अंगों को समेटने का जुनून था, आज वह खौफनाक मंजर रोंगटे खड़े कर रहा है। 
एक ओर संदेश मिला। मेरे मामा अशोक त्रिवेदी ने मुझसे पूछा - ‘‘तुझे दीपावली के बाद की पड़वा याद है?’ याद क्यों नहीं है? सब याद है। हम दीपावली के अगले दिन, जिसे पड़वा कहा जाता है, शुभ की कामना के साथ घर-घर जाते हैं और प्रणाम कर बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हैं। छोटे हमें प्रणाम करते हैं। सुबह 5 बजे से लेकर रात 10-11 बजे तक, पूरे दिन हर घर में यही गहमा-गहमी रहती है। लगभग सभी घरों में जाने की जल्दी, सभी से मिलने की ललक। पकवानों के स्वाद के साथ पूरा उत्सव। थक कर चूर हो जाएं, निढाल हो जाएं, तभी याद आता है-अरे, फलां घर चूक गया। फिर निकल पड़ते हैं, आशीर्वाद लेने। पड़वा का यह सिलसिला बरसों से चल रहा है। पीढ़ी दर पीढ़ी, इस परम्परा को निभाया जा रहा है। 
पड़वा की याद दिलाते हुए मामा ने लिखा कि यह एक दूसरी ही तरह की पड़वा है। जहां उत्सव नहीं मौत का मातम पसरा है। वे लिखते हैं- 58 साल की मेरी उम्र हुई। जब से समझ आई है, तब से दीपावली के दूसरे दिन हर पड़वा पर जाने-अनजाने घरों में गया हूं। कोई परिचित हो या अनजान, उम्र में बड़ा हुआ तो उसे प्रणाम किया। छोटा हुआ तो आशीर्वाद दिया। हमउम्र हुआ तो गले मिले, हाथ मिलाया, शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया। उस दिन जैसे पूरा पेटलावद अपना। न कोई पराया, न कोई अनजाना। एक यह अमावस की पड़वा है। इस पड़वा को मैं अपने पड़ोसी के साथ लोगों के घर शोक व्यक्त करने गया था। मुझे नहीं मालूम कितनी जगह गया, क्योंकि जिस गली से गुजरा, जिस घर के सामने से निकला, उनका कोई अपना, कोई जानने वाला, कोई सगे से भी सगा, इस हादसे का शिकार हुआ था। फिर भी कुछ घर छूट गए...।

अगली पड़वा कैसी होगी...

अंदाजा लगाया जा सकता है कि पेटलावद में इस बार दीवाली के बाद वाली पड़वा कैसी होगी? कितने ही घरों में ‘चिराग’ के बुझ जाने का गम हावी होगा। जिन घरों में दीये की लौ टिमटिमाएगी वहां उल्लास नहीं बिखरा होगा। मिठाइयां भी बनेंगी लेकिन जो भी इस पड़वा को याद करेगा, उसके मुंह में मिठास कैसे घुल पाएगी? दीवाली तो होगी लेकिन खुशियां नहीं होगी। 
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संवेदनाओं की धारा के विपरीत बहा राजनीति का ‘गंदी नहर’

पेटलावद में जहां मातम पसरा है, घटना के अनेकानेक कारणों, लापरवाहियों, चूकों के प्रति गुस्सा है, वहीं संवेदना और करूणा के इस पूरे परिदृश्य के विपरीत राजनीति का काला खेल भी जारी है। झाबुआ में लोकसभा उपचुनाव होना है। कांग्रेस और भाजपा दोनों जानते हैं कि गुजरात से सटी इस सीट पर जीत के क्या मायने हैं। यही कारण है कि दोनों दलों ने इस घटना के बाद अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। घटना का मुख्य आरोपी व उसके परिजन भाजपा से जुड़े रहे हैं। उसके करीबी रिश्तेदार नगर पंचायत के मुखिया हैं। आरंभ में नेताओं ने आरोपी राजेंद्र कासवा और उसके भाइयों को बचाने के प्रयास भी किए। उसकी मौत की खबरें भी दी गईं। साफ है, आरोपों से भाजपा का दामन दागदार है। कांग्रेस ने हाथ आई विस्फोट की इस चिंगारी से भाजपा की जीत के मंसूबों में ‘आग लगाने’ की तैयारी कर ली है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बात को अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए वे कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वे अपने साथ झाबुआ जिले के प्रभारी मंत्री अंतर सिंह आर्य और क्षेत्र के सभी विधायकों निर्मला भूरिया, कलसिंह भाबर, शांतिलाल बिलवाल, नागर सिंह चैहान, माधोसिंह डाबर, वेलसिंह भूरिया, रतलाम विधायक चेतन कश्यप के साथ पीडि़त परिवारों से मिलने गांव-गांव पहुंचे। वहीं कांग्रेस नेता कांतिलाल भूरिया और समर्थक सरकार की लापरवाही उजागर करने की कोषिषों में लगे हैं। वे बता रहे हैं कि हमारी सरकार होती तो हम आरोपी को पकड़ लेते। ये घटना नहीं होने देते। कांग्रेस के इन आरोपों का जवाब शिवराज जनता की हर मांग को पूरा कर दे रहे हैं।