वे पेशे से डॉक्टर हैं. कोई दिल की बीमारी को दुरुस्त करता है तो कोई दिमाग को. कोई तंत्रिकाओं को साधता है तो कोई फेफड़ों के कमजोर होने से रोकने में हमारी सहायता करता है. आज जब देश डॉक्टर्स डे मना रहा है तो हमें उन सभी डॉक्टरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना चाहिए, जिन्होंने समाज और देश को सेहतमंद बनाए रखने में खुद को झोंक रखा है. वे लोग जिन्हें हम सम्मान से भगवान का दर्जा देते हैं. मेडिकल की दुरूह पढ़ाई के बाद इलाज का सिलसिला शुरू होता है. ऐसी यात्रा जो अंतिम सांस तक चलती है, 24 घंटे सातों दिन. हर समय इमरजेंसी के लिए तैयार रहना. मरीजों को ठीक करते हुए आधुनिक चिकित्सा विज्ञान व नई जानकारियों के प्रति खुद को भी अपडेट रखना. यह ऐसा जज्बा है जो स्वत: हमारे भीतर सम्मान जगाता है.
इतनी व्यस्त दिनचर्या के बीच कुछ ऐसा होता है जो डॉक्टर्स को दिन में बेचैन रखता है और रात में सोने नहीं देता. ऐसा कुछ जो सुकून के पलों में भी उन्हें मजबूर करता है कि वे एक ऐसा पर्चा लिखें जो हमें सेहत बख्शे. ऐसा पर्चा जिसमें दवाइयां नहीं, जीवन प्रबंधन के नुस्खे लिखे होते हैं. वे साहित्य रचते हैं, वे सोशल मीडिया पर ऐसे सूत्र बताते रहते हैं जिन्हें पढ़ कर हमारा जीना आसान हो जाता है.
ऐसे ही एक डॉक्टर हैं, डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी. मऊरानीपुर (झांसी) उत्तर प्रदेश में जन्मे डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी की कार्यस्थली मध्य प्रदेश है. वे भेल भोपाल के कस्तूरबा अस्पताल में हृदयरोग विशेषज्ञ के रूप में जाने गए तो बाहर उनकी पहचान दिल के डॉक्टर की नहीं, एक प्रभावी उपन्यासकार और उतने ही मारक व्यंग्यकार के रूप में है. सत्तर के दशक से ख्यात पत्रिका ‘धर्मयुग’ से लेखन की शुरुआत करने वाले डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी का प्रथम उपन्यास ‘नरक-यात्रा’ बेहद पसंद किया गया. ‘नरक यात्रा’ डॉक्टरों के व्यवहार यानि अपने ही धंधे पर कटाक्ष है. बुंदेलखंडी परिदृश्य पर ‘बारामासी’ उपन्यास लिखा है. तीसरा उपन्यास ‘मरीचिका’ लिखा है, जो एक पौराणिक गाथा है. ‘ हम न मरब’ उपन्यास मृत्यु के दर्शन पर आधारित है. ताजा उपन्यास ‘स्वांग’ में एक गांव के बहाने समूचे भारतीय समाज के विडम्बनापूर्ण बदलाव की कथा दिलचस्प अंदाज से कही गई है. उनके उपन्यासों में जीवन के रंग विस्तार पाते हैं तो व्यंग्य की धार कभी हमें गुदगुदाती है, कभी तीखे कांटे सी चुभती है.
मालवा में सांसारिक जीवन से विरक्ति के भाव बोध से कहा जाता है, हिमालय की राह पकड़ना. इंदौर निवासी और प्रख्यात तंत्रिक तंत्र विशेषज्ञ डॉ. अजय सोडानी के लिए हिमालय जाना संन्यास की राह पकड़ना नहीं है बल्कि बेपटरी हो रहे जीवन को राह दिखलाना है. उनका मन हिमालय पर बसता है और वे पुनि पुनि जहाज की तर्ज पर बार-बार हिमालय पहुंच जाते हैं. वे हिमालय की अब तक कुल 38 यात्राएं कर चुके हैं. इसमें क्या बड़ी बात है कि वे बार बार हिमालय की यात्राएं करते हैं? बड़ी बात यह है कि इन यात्राओं के संस्मरण पुस्तकाकार हो कर हमारे बीच में हैं और खासे चर्चित हो चुके हैं. डॉ. सोडानी द्वारा सपरिवार की गई हिमालय यात्राएं दो बार लिम्का बुक्स ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज हो चुकी हैं. ‘दर्रा-दर्रा हिमालय’, ‘दरकते हिमालय पर दर-ब-दर’ और ताजा यात्रा वृतांत ‘सार्थवाह हिमालय’ महज यात्राओं का विवरण नहीं है. यह एक तरह का शोध ग्रंथ प्रतीत होता है. उनकी पुस्तकों को पढ़ने के उपरांत अनुभव होता है मानो ये यात्राएं हमने ही की हैं. ऐसा वृतांत कि पंक्ति-दर-पंक्ति हम लेखक के साथ यात्रा करते चलते हैं. हिमालय की गोद में फैली संस्कृति और लोक से वाकिफ होते चलते हैं. उनकी आंखों से हम हिमालय को देखते हैं और मेधा से हम अपना ज्ञान भंडार समृद्ध करते हैं.
और जब जीवन को जानने, समझने और उसकी रहस्य पोटलियों को खोलने के जंतर की बात चली है तो मेरठ निवासी डॉ. अनुराग आर्य का जिक्र होना तो लाजमी है. कहने को वे डर्मेटोलॉजिस्ट हैं मगर मन की गुत्थियों को सुलझाने का जो हुनर डॉ. आर्य ने पाया वह उनके लिखे के पहले पाठ में ही उनका मुरीद बना देता है. सोशल मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक पर अपने परिचय में वे लिखते हैं- ‘लिखना किसी काफिले से अलहदा होना है, लिखना कन्फेशन बॉक्स में खड़ा होना है’. डॉ. अनुराग आर्य की वॉल पर जरा घूम आइए. मन के गहन कोने में कोई असमंजस, कोई भय, कोई सवाल ठिठका होगा तो उसका रोशन जवाब वहां पाइएगा.
जीवन को नए अंदाज में देखने की चाह हो तो डॉ. प्रवीण झा को जरूर पढ़ा जाना चाहिए. नार्वे में रह रहे डॉ. प्रवीण झा का रचना संसार व्यापक हैं. कुली लाइंस, वाह उस्ताद, ख़ुशहाली का पंचनामा, रिनैशां, जेपी- नायक से लोकनायक तक, दास्तान-ए-पाकिस्तान, उल्टी गंगा और भूतों के देश में पुस्तकों के लेखक डॉ.प्रवीण झा की फेसबुक वॉल पर किताबों और जीवन के विविध प्रसंगों की दिलचस्प बातें हैं. घटनाओं और प्रसंगों को उनकी दृष्टि से देखना-समझना पाठकों के लिए अनूठा अनुभव होता है.
बिहार की राजधानी पटना में एक डॉ. विनय कुमार रहते हैं. वे साहित्य, कला व संस्कृति के मंच ‘पाटल’ के सूत्रधार हैं. उनकी कविताओं ने अपना खास प्रशंसक वर्ग तैयार किया है. जैसे, यह रचना :
ओ मेरी आत्मा
इतनी बकरी कभी न होना
कि मेरा मार्ग
लोगों की लगायी घास तय करे और मैं
एक से दूसरे जंगल तक जाते बाघ का पाथेय होकर चुकूं! (विनय कुमार)
डॉ. विनय कुमार ने बीते दिनों अपने चिकित्सकीय अनुभवों को लिखा है और यह उनके संवेदनशील पक्ष को जानने का बेहतर माध्यम हैं.
उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सिटी निवासी डॉ. कौशलेन्द्र सिंह का कविता संसार समृद्ध है. ‘भीनी उजेर’ उनका ताजा काव्य संग्रह है. उनकी कविताओं में वर्तमान इतने वास्तविक चेहरे के साथ पेश आता है कि पाठक सहज जुड़ाव महसूस करता है. किताबों लेकर कही गई उनकी यह बात कितनी भली है : क़िताबें आने को होती हैं तो यूं लगता है कुछ पुराने यार मिलने आ रहे…
कहानियां हमें हमारी वास्तविकता से रूबरू करवाती हैं. जीवन की यह वास्तविकता झांसी निवासी डॉ. निधि अग्रवाल के कथा संसार में हर क्षण महसूस होती है. वे हमारे समय की ख्यात कथाकारों में शुमार होती हैं. उनकी फेसबुक वॉल पर जाएंगे तो फोटो और अनुभवों से उपजी लेखनी का ऐसा कोलाज स्वागत करे जिसके साथ आप लंबा वक्त गुजारने को सहर्ष तैयार हो जाएंगे. प्रकृति प्रेम उनके स्वभाव की विशिष्टता है और अपनी यात्राओं में प्रकृति के सुहाने रूप से हमारा साक्षात्कार करवाते चलती हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित हो रहीं डॉ. निधि अग्रवाल की कथाओं में बुनावट और कहन विचार के नए रास्ते खोलती है.
‘पसरती ठंड’ कहानी संग्रह से चर्चित हुए राजस्थान की जोधपुर सिटी निवासी के डॉ. फतेह सिंह भाटी अपने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के उपन्यास ‘उमादे’ के कारण चर्चा में हैं. उनके इस उपन्यास पर पत्रकार, कथाकार, उपन्यासकार धीरेंद्र अस्थाना की यह टिप्पणी गौरतलब है. धीरेंद्र अस्थाना लिखते हैं – ‘ऐतिहासिक उपन्यासों की कतार में यह उपन्यास कोहिनूर की तरह चमकता रहेगा. यह उपन्यास इतना अधिक रोचक है कि इसे मैंने भूख प्यास शराब दवाई जरूरी काम छोड़कर उसी पागलपन की तरह पढ़ा जैसे किशोर दिनों में चंद्रकांता संतति पढ़ी थी. यह उपन्यास पढ़कर जाना कि राजस्थान के लिए पधारो म्हारे देस की पुकार क्यों लगाई जाती है. राजस्थान का मतलब जानना है तो इस उपन्यास को अपनी प्राथमिकता में शामिल करें’.
यह तो एक बानगी है. नाम कई हैं. आप गौर कर देखेंगे तो पाएंगे कि हमारे आसपास के डॉक्टरों ने जब साहित्य की दुनिया में हाथ आजमाया है तो दुनिया को बेहतर बनाने का नुस्खा ही थमाया है. हमें इस डॉक्टर्स डे पर हमारे मन-मानस को स्वस्थ्य बना रहे डॉक्टरों के इस योगदान के प्रति भी कृतज्ञ होना चाहिए.