Friday, September 23, 2011

'माननीय" यह संसद के कैंटिन की नहीं, गरीब की थाली है


27 बार हुआ सांसदों के वेतन-भत्तों में संशोधन और गरीब के लिए 'गरीब" ही रही सरकार



 योजना आयोग के जरिए केन्द्र सरकार ने जो गरीब होने की परिभाषा तय करने वाला का हलफनामा दिया है उसे पढ़ कर एक मित्र राहुल गामोठ ने तंज किया-'योजना आयोग के कर्ताधर्ताओं को कह दो कि वे अपना वेतन 1000 रूपए तय कर लें और शहर में गुजर कर के दिखलाए। राहुल ने कहा कि आयोग ने 965 रूपए बताया है हम तो उन्हें 35 रूपए ज्यादा दे रहे हैं।"
 'माननियों" के प्रति राहुल जैसे देश के तमाम लोगों का गुस्सा और बढ़ेगा अगर उन्हें पता चले कि 1954 के बाद से अब तक सांसदों के वेतन और भत्तों में 27 बार संशोधन हो चुका है। 2005 में उनका वेतन 12 हजार था जो अब 50 हजार रूपए प्रतिमाह है। जबकि 2004 में की दर से हर माह 579 रूपए कमाने वाले को बीपीएल माना गया था जिसकी सीमा बढ़ कर आयोग ने 965 रूपए कर दी है।

गरीब कौन है? वो सांसद जिस पर वेतन के साथ करीब 15 सुविधाओं के लिए सालाना करीब 45 लाख रूपए खर्च होता है या वो जो माह में पाँच हजार की कमाई करता है? सरकार हमेशा ही आँकड़ो में विकास नापती रही है अमीरी-गरीबी को भी आँकड़ों की बाजीगरी में उलझा दिया है। ज्यादा समय नहीं हुआ। अगस्त 2010 में हमारे सांसद इस बात से नाराज थे कि कैबिनेट ने उनका वेतन केवल 50 हजार क्यों किया, जबकि वेतन 16 हजार से बढ़ा कर 80 हजार किया जाना था। इस बात पर खूब एसएमएस चले और लोगों ने संसद की कैंटिन में रियायती दल पर मिलने वाली खाद्य सामग्री की सूची पेश कर डाली।
 गरीबों की 'अमीरी" बताते योजनाओं आयोग के हलफनामे के दौरान सांसदों की थाली से गरीब की थाली की तुलना की तो पाया कि गरीबों की दयनीय हालत स्वीकार करने में भी हम उदार नहीं है। संसद में कैंटिन के लिए कुल 5.3 करोड़ का बजट आवंटित है। यहाँ सांसदों को रियायती दर पर मात्र 12 रूपए 50 पैसे में भरपेट खाने को शाकाहार सब्जी मिल जाती है। इस खाने की गुणवत्ता पर शक करना बेकार है लेकिन एक गरीब मजदूर को बस स्टैण्ड या रेलवे स्टेशन के पास की किसी छोटी सी दुकान पर भी 20 रूपए से कम में भोजन नहीं मिलेगा।

सरकार इसलिए भी गरीबों के साथ आँकड़ों की बाजीगरी कर रही हैं क्योंकि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को रियायती योजनाओं से दूर रखना चाहती है। सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन कहते हैं कि योजना आयोग द्वारा तय की गई गरीबी की रेखा निश्चित तौर पर हज़ारों हज़ार लोगों को चुपचाप मारती जाएगी। आयोग को चुनौती देते हुए वे कहते हैं-' मैं आपसे आपके ही द्वारा तय की गयी राशि पर न माह की जिन्दगी बिताने का निवेदन करता हूँ, ताकि आप सिद्ध करें कि इस राशि में जिन्दा रहना संभव है। यदि आप ऐसा नहीं कर सकते तो गरीबों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना बंद कीजिए।"

सांसद की थाली                              गरीब की थाली


शाकाहारी थाली-12.50 रू.                  20 रूपए

एक कटोरी दाल -1.50 रू.                22 रूपए (हाफ)

रोटी - 1                                            2.5 रू. से 3 रूपए

चावल -2 रूपए प्लेट                        15 से 20 रूपए (हाफ प्लेट)

चाय-1प्रति कप                                 4 से 5 रूपए



सांसदों की वेतन वृद्धि (2010)

प्रस्तावित वेतन - 80 हजार रुपए

मूल वेतन 2005 - 16 हजार

2010 में हुआ -50 हजार रुपए

दफ्तर का खर्च बढ़ा- 20 से बढ़ कर 40 हजार रुपए

पेंशन हुई - 8 से बढ़ कर 20 हजार रुपए



वाहन के इस्तेमाल के लिए जहाँ पहले प्रति किलोमीटर 13 रुपए मिलते थे, वहीं सांसद अब 16 रुपए प्रति किलोमीटर कर दिए गए हैं।

# हर सांसद का पति या पत्नी अब पहली श्रेणी में आ जा सकेगा.



Monday, September 19, 2011

तब क्या करते कविगण

अगर चाँद मर जाता

झर जाते तारे सब

क्या करते कविगण तब?

 
खोजते सौन्दर्य नया

देखते क्या दुनिया को

रहते क्या, रहते हैं

जैसे मनुष्य सब

क्या करते कविगण तब?

 
प्रेमियों का नया मान

उनका तन-मन होता

अथवा टकराते रहते वे सदा

चाँद से, तारों से, चातक से, चकोर से

कमल से, सागर से, सरिता से

सबसे

क्या करते कविगण तब?

 
आँसुओं में बूड़-बूड़

साँसों में उड़-उड़कर

मनमानी कर- धर के

क्या करते कविगण तब?

 
अगर चाँद मर जाता

झर जाते तारे सब

क्या करते कविगण तब?
- त्रिलोचन