गर्मी आते ही जलसंकट गहराने लगा है। भोपाल के सबसे तेजी से बढ़ते और सबसे महंगे इलाकों में शुमार होने वाले कोलार में जल संकट से निपटने के लिए कलेक्टर ने निजी नलकूपों को अधिग्रहित करने को कहा है। सभी जानते हैं कि कोलार में हर साल भीषण जल संकट होता है। इतना कि लोग अपने लाखों के घरों को छोड़ कर समीप के उन क्षेत्रों में किराए से रहने तक चले जाते हैं जहां पानी उपलब्ध हो। यहां अलसभोर से शुरू हुई पानी जुटाने कि चिंता देर रात तक खत्म नहीं होती। इतनी परेशानी है तो सवाल उठता है कि यहां के लोग पानी के संरक्षण को लेकर बेहद सजग होंगे? लेकिन रेन वाटर हार्वेस्टिंग के आंकड़ों को देख कर तो ऐसा नहीं लगता। नगर पालिका के पास ऐसी कोई साफ-साफ जानकारी नहीं है कि कितने घरों में रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू हैं। आकलन हो तो यह सिस्टम लगवाने वालों की संख्या 1 फीसदी के करीब ही होगी। यह है पानी का लेकर हमारी फिक्र।
भोपाल के कोलार जैसे ही हालात लगभग पूरे प्रदेश में हैं। जल संकट का सबसे दुखद पहलू यह है कि इसे बेहतर जल प्रबंधन से दूर किया जा सकता है, लेकिन हमारे पास यह व्यवस्था ही नहीं है। जल कानून, जल संरक्षण, पानी के कुशल उपयोग, जल रीसाइकिलिंग और आधारभूत संसाधनों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। हमारे यहां जमीन का पानी खत्म और प्रदूषित हो रहा है लेकिन भूजल के दोहन का कोई कानून नहीं है। कम से कम पानी लिया जा रहा है तो उतना या ज्यादा पानी जमीन को लौटाने की जिम्मेदारी तय होना चाहिए। गौरतलब है कि देश में हर साल औसतन चार हजार अरब घन मीटर बारिश होती है लेकिन केवल 48 फीसद बारिश का जल नदियों में पहुंचता है। भंडारण और संसाधनों की कमी के चलते इसका केवल 18 फीसदी जल का उपयोग हो पाता है।
पानी बचाने के लिए सामाजिक चेतना नहीं आती तो इसे कानून की सख्ती से लागू करन होगा। वैसे पिछले दिनों भोपाल से अच्छी खबर आई कि शहर की तमाम मस्जिदों में नमाज से पहले वुजू करने में रोजाना खर्च हो रहे लाखों लीटर पानी को जाया होने से बचाने के लिए मसाजिद कमेटी मस्जिदों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना चाहती है। कमेटी चाहती है कि यह काम राज्य सरकार व स्वयं सेवी संस्थाओं की आर्थिक मदद से हो। पहल अच्छी है और यह सभी जगह लागू होना चाहिए। सवाल धन जुटाने का है तो सरकार के साथ धनिकों को भी आगे आना होगा। पहले कुँए-बावड़ी-धर्मशाला बनवाने का रिवाज था अब पानी बचाने के लिए धन की कमी को दूर करने रईस समाजसेवियों को आगे आना होगा।
इससे सबके साथ व्यक्तिगत जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं हो जाती। घर बनाने की पूरी प्लानिंग में अगर रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उल्लेख नहीं है तो प्लान खारिज हो जाना चाहिए।
आमतौर पर हम आग लगने पर ही कुँआ खोदते हैं तो आग लग चुकी है...जल संकट दिन-ब-दिन गहरा रहा है। सवाल यही है कि आप कुँआ कब खोदना शुरू करेंगे?पानी बचाने के लिए सामाजिक चेतना नहीं आती तो इसे कानून की सख्ती से लागू करन होगा। वैसे पिछले दिनों भोपाल से अच्छी खबर आई कि शहर की तमाम मस्जिदों में नमाज से पहले वुजू करने में रोजाना खर्च हो रहे लाखों लीटर पानी को जाया होने से बचाने के लिए मसाजिद कमेटी मस्जिदों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना चाहती है। कमेटी चाहती है कि यह काम राज्य सरकार व स्वयं सेवी संस्थाओं की आर्थिक मदद से हो। पहल अच्छी है और यह सभी जगह लागू होना चाहिए। सवाल धन जुटाने का है तो सरकार के साथ धनिकों को भी आगे आना होगा। पहले कुँए-बावड़ी-धर्मशाला बनवाने का रिवाज था अब पानी बचाने के लिए धन की कमी को दूर करने रईस समाजसेवियों को आगे आना होगा।इससे सबके साथ व्यक्तिगत जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं हो जाती। घर बनाने की पूरी प्लानिंग में अगर रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उल्लेख नहीं है तो प्लान खारिज हो जाना चाहिए।आमतौर पर हम आग लगने पर ही कुँआ खोदते हैं तो आग लग चुकी है...जल संकट दिन-ब-दिन गहरा रहा है। सवाल यही है कि आप कुँआ कब खोदना शुरू करेंगे?पानी बचाने के लिए सामाजिक चेतना नहीं आती तो इसे कानून की सख्ती से लागू करन होगा। वैसे पिछले दिनों भोपाल से अच्छी खबर आई कि शहर की तमाम मस्जिदों में नमाज से पहले वुजू करने में रोजाना खर्च हो रहे लाखों लीटर पानी को जाया होने से बचाने के लिए मसाजिद कमेटी मस्जिदों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना चाहती है। कमेटी चाहती है कि यह काम राज्य सरकार व स्वयं सेवी संस्थाओं की आर्थिक मदद से हो। पहल अच्छी है और यह सभी जगह लागू होना चाहिए। सवाल धन जुटाने का है तो सरकार के साथ धनिकों को भी आगे आना होगा। पहले कुँए-बावड़ी-धर्मशाला बनवाने का रिवाज था अब पानी बचाने के लिए धन की कमी को दूर करने रईस समाजसेवियों को आगे आना होगा।इससे सबके साथ व्यक्तिगत जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं हो जाती। घर बनाने की पूरी प्लानिंग में अगर रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उल्लेख नहीं है तो प्लान खारिज हो जाना चाहिए।आमतौर पर हम आग लगने पर ही कुँआ खोदते हैं तो आग लग चुकी है...जल संकट दिन-ब-दिन गहरा रहा है। सवाल यही है कि आप कुँआ कब खोदना शुरू करेंगे?पानी बचाने के लिए सामाजिक चेतना नहीं आती तो इसे कानून की सख्ती से लागू करन होगा। वैसे पिछले दिनों भोपाल से अच्छी खबर आई कि शहर की तमाम मस्जिदों में नमाज से पहले वुजू करने में रोजाना खर्च हो रहे लाखों लीटर पानी को जाया होने से बचाने के लिए मसाजिद कमेटी मस्जिदों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना चाहती है। कमेटी चाहती है कि यह काम राज्य सरकार व स्वयं सेवी संस्थाओं की आर्थिक मदद से हो। पहल अच्छी है और यह सभी जगह लागू होना चाहिए। सवाल धन जुटाने का है तो सरकार के साथ धनिकों को भी आगे आना होगा। पहले कुँए-बावड़ी-धर्मशाला बनवाने का रिवाज था अब पानी बचाने के लिए धन की कमी को दूर करने रईस समाजसेवियों को आगे आना होगा।इससे सबके साथ व्यक्तिगत जिम्मेदारी कभी खत्म नहीं हो जाती। घर बनाने की पूरी प्लानिंग में अगर रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का उल्लेख नहीं है तो प्लान खारिज हो जाना चाहिए।आमतौर पर हम आग लगने पर ही कुँआ खोदते हैं तो आग लग चुकी है...जल संकट दिन-ब-दिन गहरा रहा है। सवाल यही है कि आप कुँआ कब खोदना शुरू करेंगे?
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