Wednesday, July 8, 2015

शिवराज अनमने थे, केन्द्र के आगे झुके...

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अब तक व्यापमं मामले में सीबीआई जांच से इंकार कर रहे थे लेकिन वे एक रात में ही जांच की पहल करने के लिए कैसे तैयार हुए? राजनीतिक गलियारों के साथ जन सामान्य में यह सवाल चर्चा में हैं। ऐसा क्या हुआ कि उन्हें यह घोषणा करना पड़ी जबकि सार्वजनिक तौर पर केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह उनकी बात का समर्थन कर चुके थे शिवराज मान रहे थे कि गरोठ चुनाव जीते हैं इसका अर्थ है जनता उनसे नाराज नहीं है। कोर्ट पहले ही जांच को सही ठहरा चुकी है। इसलिए सीबीआई जांच की जरूरत नहीं है। लेकिन राजनीतिक हलकों का कहना है कि पिछले दिनों के घटनाक्रम के बाद भाजपा का एक महत्वपूर्ण वर्ग ये मानने लगा था कि व्यापमं घोटाले की जांच का सिलसिला राज्य सरकार की पकड़ से बाहर होता जा रहा है। जांच के तौर तरीके विवादास्पद हो चुके हैं। ऐसे में केन्द्र ने दबाव बनाया और सभी संदर्भों को देख कर लगता है कि यह राजनीतिक फैसला लेते समय शिवराज अलग-थलग पड़ गए। 
व्यापमं मामले में मप्र से ज्यादा बाहर के प्रदेशों में इसे लेकर शंका का माहौल बनने लगा था। यहां तक कि अप्रवासी भारतीय भी इसे देश की छवि पर आघात मानने लगे थे। सम्भवतः इसी कारण केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी नरम शब्दों में इशारा कर दिया था कि जांच पर सबका विश्वास होना चाहिए। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश  विजयवर्गीय भी मौतों के सिलसिले में जेटली से मिलता जुलता ही बयान दिया था। केन्द्रीय मंत्री उमा भारती सीबीआई जांच को लेकर पहले से ही आक्रामक थी। संगठन में भी दबे सुरों में जांच की विश्वसनीयता को लेकर निरंतर कानाफूसी होती रहती थी। आजतक के पत्रकार अक्षय सिंह की मृत्यु के बाद घटनाक्रम ने जो करवट ली उसके आगे भाजपा नेतृत्व बेबस नजर आ रहा था। टीवी चैनलों पर पानी पी-पी कर कांग्रेस और अपने विरोधियों को कोसने वाले भाजपाई प्रवक्ता ज्यादातर सवालों पर बगले झांकते नजर आ रहे थे। दिल्ली को महसूस हुआ कि मप्र सरकार की किरकिरी कर रहा यह घोटाला उसकी छवि को भी धूमिल करेगा। 
बताया गया है कि पत्रकार अक्षय सिंह की मृत्यु के बाद मुख्यमंत्री चौहान ने केन्द्रीय नेतृत्व से भी इस मसले पर परामर्श किया था। उन्हें इस बात के साफ संकेत दे दिए गए थे कि जो भी करना पड़े इस मसले का समाधान कारक हल उन्हें निकालना चाहिए। जन धारणा उनके खिलाफ है और भाजपा को लांछित कर रही है। इसको धोने के लिए यदि जरूरी हो तो सीबीआई की जांच करवाने में उन्हें कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। मुख्यमंत्री इन तर्कों से सहमत नहीं थे। वे सीबीआई की जांच को फिलहाल टालना चाहते थे। केन्द्रीय नेतृत्व ने यह इशारा भी किया था कि 13 जुलाई को राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की बैठक के पहले आरोपों की आंधी से उठी धूल बैठ जाना चाहिए। अन्यथा, व्यापमं घपलों की आंच मप्र-छग की सदस्यता अभियान की समीक्षा की इस बैठक पर भी आएगी। इन सारे संदर्भों में केन्द्रीय नेतृत्व ने सीबीआई जांच करवाने की पहल को ही मुफीद रास्ता मान रहा था। इसके साथ ही मुख्यमंत्री को बताया गया कि इससे 9 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान प्रदेश  सरकार अधिक दृढ़ता से खड़ी हो सकेगी।

प्रदेश के मंत्रियों ने भी कसर नहीं छोड़ी....

एक तरफ जहां केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने शिवराज के खिलाफ मोर्चा खोल दिया वहीं अपनी कैबिनेट के मंत्रियों ने भी मुख्यमंत्री को फंसाने का काम ही किया। प्रदेश के गृहमंत्री बाबूलाल गौर एक के बाद एक ऐसे बयान दे रहे थे जिनके कारण मामला शांत होना तो दूर विवाद और गर्माता गया। गौर ने तो यहां तक कह दिया कि इस मामले में उन्हें कोई जानकारी नहीं दी जाती। यहां तक कि कांग्रेस के आरोपों के जवाब देने के लिए बुलाई पत्रकार वार्ता में सरकार के प्रवक्ता नरोत्तम मिश्रा ने तो कह दिया कि कांग्रेस के अलावा सीबीआई जांच की मांग और कौन कर रहा है। मानो वे संकेत दे रहे थे कि और लोगों को भी मांग करना चाहिए। इन सारे संदर्भों को देखते हुए लग रहा है कि सीबीआई जांच करवाने का निर्णय लेते हुए शिवराज अलग-थलग पड़ गए थे। इस बात का आभास पत्रकारों से चर्चा में उनके यह कहने से भी हुआ कि वे रातभर सो नहीं सके। और, ‘इस मामले में मप्र से ज्यादा बाहर की जनता अधिक सवाल कर रही थी। जनमत के आगे मैं शीश झुकता हूं।’ यह जनमत असल में पार्टी का मत था जिसके आगे शिवराज  झुके।

साख बचाने का जतन...

भले ही व्यापमं मामले में सीबीआई जांच कर पहल कर शिवराज  को नुकसान दिखाई दे रहा है लेकिन इसका राजनीतिक लाभ भी होगा और यह संदेश जाएगा कि स्वयं को बिल्कुल पाक साफ साबित करने के लिए वे हर जांच करवा सकते हैं। उन्हें किसी का भय नहीं है। अपनी राजनीतिक साख को बेदाग रखने के लिए उन्होंने राजनीतिक चतुराई का परिचय देते हुए बड़ी सफाई से उच्च न्यायालय के पाले में गेंद डाल दी है। वरिष्ठ प्रशासकों का कहना है कि जरूरी नहीं है कि चिट्ठी मिलते ही कोर्ट सीबीआई जांच के लिए तैयार हो जाए। एक मत यह भी है कि जांच से संतोष जताते हुए कोर्ट सीबीआई जांच से इंकार कर दे। इसके अलावा, संभव है कि 9 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान सरकार को राहत मिल जाए।

मामला थमा नहीं...

केवल सीबीआई जांच की पहल करने से ही विवाद थमने वाला नहीं है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग कर दी है तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री के त्यागपत्र की मांग को लेकर 16 जुलाई को मप्र बंद की अपील की है। उसका साथ वामपंथी संगठन दे रहे हैं। साफ है कि शिवराज  की राह आसान नहीं है। 


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