रोम जल रहा था और नीरो बंसी बजा रहा था...बहुत साल हुए हम शासकों की लापरवाही, जनता के मुद्दों के प्रति गंभीरता को इसी कहावत से व्यक्त करते आ रहे हैं। लेकिन अब इस कहावत को बदल लीजिए। हमें कहना चाहिए जब मध्यप्रदेश में किसान फसलों की बर्बादी से निराश, हताश हो कर अपनी जान दे रहे हैं तब कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन उद्घाटन कार्यक्रमों, जिला सहकारी बैंक के कर्मचारियों के अभिनंदन और सम्मान समारोह में मालाएं पहनने में व्यस्त थे। उनके पास समय नहीं था कि वे किसानों की समस्यायें जानने के लिए अधिकारियों के साथ बैठक करते। 30 सितंबर से लेकर 8 अक्टूबर तक बिसेन अपने गृह क्षेत्र बालाघाट में रहे। वे 9 अक्टूबर को भोपाल तब आए जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी विदेश यात्रा से लौट कर फसलों की बर्बादी पर आपात बैठक बुलाई। किसान इस बात से आहत हैं कि मुख्यमंत्री के आने तक राहत मिलने का इंतजार क्यों करवाया गया? कृषि मंत्री स्वयं भी अपने स्तर पर भी कुछ पहल कर सकते थे। लेकिन वे जिलों से कलेक्टरों की रिपोर्ट आने का इंतजार करते रहे यहां तक कि उन्होंने मीडिया के सवालों के जवाब में यही कहा कि प्रदेश में सारे किसान फसलों के खत्म होने से नहीं मर रहे हैं। यह उस प्रदेष के कृषि मंत्री का गैर जिम्मेदारा बयान ही कहा जाना चाहिए जहां के 23 जिलों कि 114 तहसीलों के 19 हजार 951 गांवों की फसलों को विभिन्न कारणों से क्षति पहुंची है। मुख्यमंत्री स्वयं को किसान हितैषी बताने में चूक नहीं करते लेकिन उनके मंत्री अपने-अपने क्षेत्रों के मंत्री ही बन कर रह गए हैं। कृषि मंत्री के भी यही हाल हैं। वे बालाघाट के आगे प्रदेश को पहचानते ही नहीं है। लेकिन बात इतनी सी नहीं है। वे उस बरघाट में अब तक दौरा करने नहीं गए हैं जहां के वे प्रभारी मंत्री है और जहां 5 अक्टूबर को साम्प्रदायिक हिंसा के बाद अब तक कर्फ्यू लगा है। जबकि 4 अक्टूबर को वे बरघाट में ही थे। और तो और 2 अक्टूबर को बालाघाट का जिला अस्पताल में लगने वाले स्वास्थ्य षिविर में भी वे नहीं पहुंचे। यहां उन्हें सुबह 9 बजे महिला स्वास्थ्य शिविर का उद्घाटन करना था लेकिन मंत्रीजी 1 बजे तक नहीं पहुंचे। मरीज महिलाओं की नाराजगी देख स्वास्थ्य विभाग ने बिना उद्घाटन के शिविर शुरू किया। मंत्रियों का ऐसा बर्ताव मुख्यमंत्री और भाजपा के अंत्योदय सेवा के संकल्प का मखौल उड़ाता है। पार्टी गरीब वर्ष मना रही है और उसकी सरकार के मंत्री गरीबों की भावनाओं से अनजान है। साफ है, सरकार चलाने, बचाने और उसी प्रतिष्ठा का जिम्मा मुखिया पर आ टिका है, मंत्रियों पर नहीं। किसी भी पार्टी के भविष्य के लिए यह संकेत अच्छे नहीं हैं।
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