Wednesday, December 10, 2008

।। अवसर ।।

कभी हम परखते उसे अपनी कसौटी पर । कभी लगती मरुभूमि और हम भटकते मुसाफिर से कभी ठण्डे झोंके की तरह और हम महसूसते उसका अस्तित्व पकड़ने की चाहत में हाथ से फिसलती जिन्दगी और हम ठगे से तकते उसे करीब से गुजरते हुए । ------------------------------------------ अपने काव्य संग्रह ‘सपनों के आसपास’ से

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