Friday, December 18, 2009

धवल अनुराग

साहित्यप्रेमियों के लिए राजेन्द्र अनुरागी का नाम अपरिचित नहीं है। जो नहीं जानते उनके लिए दो विशिष्ट व्यक्तियों के कथन काफी हैं।


अपनी पुस्तक `अनंत नाम जिज्ञासा´ में अमृता प्रीतम ने लिखा है कि अनुरागी जी को देखकर लगता है, जैसे प्राचीन सूफी दरवेशों या जैन फकीरों की कहानियों का कोई पन्ना किताबों से निकलकर इंसानी सूरत में आ गया हो।`


चीन यु° के बाद सन 1963 में आयोजित कवि सम्मेलन में शिवमंगल सिंह सुमन ने कहा था- `नेहरू जी! आज लाल किले के इस मंच से, मैं आपके सामने अपनी नहीं, अपने मध्यप्रदेश के एक कवि राजेन्द्र अनुरागी की ये पंक्तियां पढ़ना चाहता हूं। देश को आज जरूरत इन्हीं पंक्तियों की है-


आज अपना देश सारा लाम पर है,

जो जहां हैं वतन के काम पर हैं।´

भोपाल में 19 दिसंबर को राजेन्द्र अनुरागी की प्रथम पुण्यतिथि पर `अनुरागी प्रसंग´ का आयोजन हो रहा है। उनके साथ मेरी भी याद जुड़ी है। जो मैं साझा कर रहा हूँ।



धवल दाड़ी में वह शख्स खिलखिलाता था तो किसी फरिश्ते से लगता था। व्यक्तित्व ऐसा कि पहली मुलाकात में किसी को भी आकषिoत कर लें, जिस जगह जाएँ वह महिफल लूट लें। भोपाल के  आयोजन में उनका होना आयोजन को सरस बनाता था। जीवटता उनके व्यक्तित्व का उजला हिस्सा थी और यही नूर उनके चेहरे से झलकता था।  एक शफ़्फाक खिलखिलाहट सारा तनाव हर लेती थी। उनके गीत ही रगों में जोश नहीं फूँकते थे बल्कि उनका होना ही जीवन को ताकत से भर देता था। िफर चाहे वह किसी चाट की दुकान पर ठहाके मारते अनुरागीजी हो या किसी सभा-गोष्ठी में उसी तान पर गीत गाते अनुरागीजी।

उनको गए एक साल हो गया है। इन 365 दिनों में कई लोगों ने उन्हें नहीं भुलाया। अनुरागीजी और ऊर्जा से सराबोर करता उनका खिलखिलाता चेहरा मुसीबतों के क्षणों में अकसर याद हो आता है। ऐसे ही लोगों में जवाहर लाल नेहरू कैंसर अस्पताल के वे मरीज भी हैं जो कैंसर के साथ अपनी लड़ाई में अनुरागीजी के गीतों को अपनी प्राण ऊर्जा मानते थे। बात कोई आठ साल पुरानी है। 2002 के जून में जवाहर कैंसर अस्पताल में एक कार्यक्रम आयोजन हुआ था। कार्यक्रम था, मौत को मात दे रहे मरीजों की जिजीविषा बढ़ाने के लिए शहर के रचनाकारों के रचना पाठ का। यहाँ वरिष्ठ कवि राजेश जोशी, आलोचक कमला प्रसाद, राजुरकर राज आदि के साथ राजेन्द्र अनुरागी भी मौजूद थे। काव्य पाठ सभागार में हुआ था। जो मरीज आ सकते थे वे सभागार में आए और जो गंभीर थे उन्होंने स्पीकर के जरिए गीतों और रचनाओं को अपने वार्ड में सुना। अनुरागीजी ने गीत `उम्र के देवता दीप धर ही दिया´ पढ़ा तो हाल में मौजूद मरीजों की आँखें चमक उठी। उन्हें इस गीत की पंक्तियों में जीवन का भारतीय आध्यात्मिक सार समझ में आ गया था। बाद में पता चला कि अनुरागी जी नियमित रूप से कैंसर अस्पताल जाते थे और कैंसर को परास्त करने के लिए मरीजों अपनी रचनाओं का `हाई पॉवर डोज´ दे कर आते थे।

राजेन्द्र अनुरागी नामक शख्स के कई परिचयों में से एक पहचान यह भी है।



उम्र के देवता

दीप धर ही दिया

कौन जाने सुबह तक जले-ना जले,

तेल कितना बचा है, हमें क्या पता

हम जहां तक जले, जगमगाते जले

लौ लुटाते जले।

जल लिये जिन क्षणों

बस, वही जिन्दगी

बुझ गये जिस जगह

बस, वहीं तक सफर

कौन कितना चलेगा, हमें क्या खबर

हम जहां तक चले, गुनगुनाते चले

गीत गाते चले।


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1 comment:

  1. रचना दिल को छू गई!!


    राजेन्द्र अनुरागी जी को श्रृद्धांजलि!!

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