Friday, February 19, 2010
एक कथा है बाघ भी
केदार नाथ सिंह की इस कविता-
कथाआें से भरे इस देश में
मैं भी एक कथा हूंॅ
एक कथा है बाघ भी
इसलिए कई बार
जब उसको छिपने को
नहीं मिलती कोई ठीक ठाक जगह
तो वो धीरे से उठता है
और जाकर बैठ जाता है
किसी कथा की ओट में
िफर चाहे जितना ढूंढो
चाहे छान डालो जंगल की पत्ती-पत्ती
वो कहीं मिलता ही नहीं
बेचारा भैंसा सांझ से सुबह तक
चुपचाप बंधा रहता है
एक पतली सी जल की रस्सी के सहारे
और बाघ है कि उसे प्यास लगती ही नहीं
कि वो आता ही नहीं है
कई-कई दिनों तक
जल में छूटी हुई अपनी
लंबी और शानदार परछाई को देखने
और जब राजा आता है तो जंगल में
पड़ता है हांका
और तान ली जाती हैं सारी बन्दूकें
उस तरफ जिधर हो सकता है बाघ
तो सच्चाई ये है कि उस समय बाघ न
यहांॅ होता है न वहांॅ
वो अपनी शिकार का खून पी चुकने के
बाद आराम से बैठा होता है
किसी कथा की ओट में।
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1411 बहुत सुन्दर रचना है। हम खुद इन के विनाश का कारन हैं। धन्यवाद इस रचना के लिये
ReplyDeletenice
ReplyDeleteसमयानुकूल प्रस्तुति...
ReplyDeleteआभार...