Friday, August 6, 2010

हिन्दी के मास्साब नहीं जानते अंबर का मतलब

* बच्चों के साथ शिक्षक भी फेल * ऐसा कैसा 'स्कूल चले हम अभियान"

मध्यप्रदेश सरकार कह रही है कि सभी बच्चे स्कूल आए लेकिन जो बच्चे स्कूल आ रहे है उनकी हालत अनपढ़ बच्चों जैसी ही है। विभिन्न संगठन और रिपोर्ट जिस बात को बार-बार उठाते हैं, पढ़ाई की वही पोल भोपाल में जिला शिक्षा अधिकारी के निरीक्षण के दौरान फिर खुल गई। अधिकारी ने जब छठी कक्षा के बच्चे अंबर का अर्थ पूछा तो वे नहीं बता पाए। हद तो तब हो गई जब हिन्दी के शिक्षक को भी इसका अर्थ नहीं बता सके।

सरकारी स्कूलों की यह सच्चाई देख जिला शिक्षा अधिकारी सीएम उपाध्याय भी हैरत में पड़ गए। श्री उपाध्याय ने हाल ही में बैरागढ़ क्षेत्र के शासकीय स्कूलों का निरीक्षण किया। वे जब ग्राम बैरागढ़ कलां के स्कूल में पहुंचे तो वहां शिक्षक किताबें लेकर बच्चों को पढ़ा रहे थे। एक यूडीटी शिक्षक करन सिंह मेहरा 6वीं की कक्षा में हिन्दी पढ़ा रहे थे। डीईओ ने जब कक्षा में जाकर बच्चों से हिन्दी के कुछ शब्दों जैसे अंबर, देवेन्द्र आदि अर्थ पूछा तो कोई भी बच्चा नहीं बता पाया। इसके बाद डीईओ ने शिक्षक से इन शब्दों का अर्थ पूछा तो वे भी बगलें झांकते नजर आए।

इसके बाद डीईओ छठी कक्षा के दूसरे वर्ग में पहुंचे वहां शिक्षक अर्जुन सिंह बघेल बच्चों को इतिहास पढ़ा रहे थे। जब डीईओ ने बच्चों से पूछा कि चंद्रगुप्त मौर्य कौन थे तो कोई भी बच्चा जवाब नहीं दे पाया। बाद में शिक्षक ने यह तो बता दिया कि चंद्रगुप्त मौर्य कौन थे लेकिन वे उनका कालक्रम नहीं बता पाए।

पांचवीं के बच्चे नहीं पढ़ पाए हिन्दी

जिला शिक्षा अधिकारी ने जसलोक प्राथमिक स्कूल का भी निरीक्षण किया। वहां वे पांचवीं की कक्षा में पहुंचे। उस समय स्कूल शिक्षिका कृष्णा देवी किताब लेकर बच्चों को हिन्दी पढ़ाती मिली। श्री उपाध्याय ने उनसे किताब लेकर बच्चों को पढ़ने को दी। जिला शिक्षा अधिकारी श्री उपाध्याय उस समय चौंक गए जब कोई भी बच्चा किताब में लिखा एक पैरा भी ठीक से नहीं पढ़ पाया।

हमारी शिक्षा प्रणाली की असलीयत दिखाने के लिए इतना ही काफी है।

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