बच्चे अब नहीं दुबकते
माँ के आँचल में।
बच्चे अब नहीं सुनते
कहानी अपनी नानी से।
बच्चे अब नहीं माँगते
गुड़ धानी दादी से।
बच्चे अब नहीं खेलते
कंचे या आँख मिचौली
बच्चे अब नहीं जानते
चौपाल पर होती थी रामलीला।
बच्चे अब होमवर्क करते हैं
बच्चे अब बच्चे कहाँ रहे ?
( ‘सपनों के आसपास’ शीर्षक काव्य संग्रह से अपनी कविता )
शायद बच्चे अब बच्चों की परिभाषा से बाहर हो गये हैं
ReplyDeleteसच कहा आपने...हमारे बच्चे अब समझदार पैदा होते हैं.
ReplyDelete