किसने कहा कि
विस्फोट के लिए
चाहिए बारूद,
घर जलाने के लिए
चाहिए तीलियां।
घर हो या सपने
पल में ध्वस्त होते हैं।
क्षण में छिनता है आशियाना
बिना पेट्रोल धधकता है शहर।
कविता में जो मरहम है
आपके मुंह से निकलने
पर वही शब्द दे जाते हैं घाव।
नेताजी, आग उगलते
शब्दों से लाख दर्जा अच्छे
हैं आपके झूठे आश्वासन।
सच कहा, शब्दों क संयम से प्रयोग करना चाहिए। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteअलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteआभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें