पत्रकार दिलीप पडगांवकर सहित उनके दो साथी वार्ताकार कश्मीर समस्या का स्थायी हल ढूंढ़ने कश्मीर गए थे। दल ने कहा कि उनका ध्यान युवाओं पर होगा, क्योंकि वे ही यहां की धारा को बदल सकते हैं। इसके पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उससे भी पहले प्रधानमंत्री रहते हुए अटलबिहारी वाजपेयी ने कश्मीर के युवाओं से शांति की अपील की थी। कश्मीरी युवकों की समस्या क्या है और वे इसका समाधान कहाँ खोजते हैं, इस पड़ताल के दौरान मैंने अपने साथी मोहम्मद फैजान खान के साथ भोपाल में पढ़ रहे कश्मीरी युवाओं से चर्चा की। कश्मीरी युवाओं की राय पूरे मसले को समझने के लिए अहम हैं। वे साफ कहते हैं कि हमारी पीड़ा कोई नहीं सुनता। हम पढ़ना चाहते हैं, नौकरी करना चाहते है। भारत से अलग होना नहीं बल्कि वे बेखौफ घूमने की आजादी चाहते हैं।
जमीन का स्वर्ग कश्मीर 15 जून से लेकर अब तक हड़ताल और कर्फ्यू भोग रहा है। इसबार आंदोलन में युवाओं की भागीदारी ज्यादा हो गई है। कश्मीर के युवाओं पर आरोप लगता है कि वे पाकिस्तान की शह पर आतंकवाद फैला रहे हैं। भोपाल में पढ़ने वाले कश्मीरी युवा इस आरोप से नाराज हैं। वे कहते हैं कि कश्मीर के युवा आतंकवादी होते तो उनके हाथों में पत्थर नहीं बंदूक-बम होते। कश्मीर का युवा पत्थर फैंक रहा है क्योंकि वह व्यवस्था से तंग आ गया है। इसी साल सबसे लंबे समय तक स्कूल-कॉलेज बंद रहे। पढ़ाई होती नहीं हैं, रोजगार कहाँ से मिलेगा? पर्यटन खत्म हो चुका है। रोजगार नहीं है, घर कैसे चलेंगे? इसमें में कोई भटकने से कैसे बचे?
कश्मीर के युवा पढ़ना चाहते हैं। लेकिन वहाँ कॉलेज कम हैं और विद्यार्थी ज्यादा। 20 सीटों के लिए 2 हजार आवेदन आते हैं। पढ़ाई के लिए बाहर जाओ तो अपने ही देश में सौतेला व्यवहार झेलना पड़ता है। भोपाल में पढ़ने आए तो यहाँ कश्मीरी कह कर संदेह से देखा जाता है। कई बार भाषाई समस्या हुई और किसी ने सहायता की तो उसे भी संदिग्ध् मान लिया जाता है। तकलीफ होती है जब हमें अपने ही प्रदेश में बार-बार पहचान बताना पड़ती है। एक चेकिंग पाइंट पर घंटों खड़े हो कर जाँच से गुजरना पड़ता है। हमें जलील किया जाता है।
पाकिस्तान है जिम्मेदार
कश्मीरी युवा घाटी की बदतर स्थिति के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका कहना है कि अगर पाकिस्तान ने चंद कश्मीरी नौजवानों को हथियार न थमाए होते तो कश्मीर में न तो इतनी बर्बादी होती और न ही उन्हें स्पेशल पावर एक्ट का सामना करना पड़ता।
अलगाववादियों से अलग है राय
नवदुनिया से बातचीत में कश्मीरी युवाओं ने कहा कि अलगाववादी भारत से आजादी चाहते हैं। जबकि कश्मीर का आम युवा ऐसा नहीं सोचता। उन्होंने कहा-'हमारी बात नहीं सुन जा रही। हम हिन्दुस्तान से आजादी नहीं चाहते बल्कि घाटी में बेखौफ घूमने फिरने की आजादी चाहते हैं।"
विशेष कानून समस्या
कश्मीरी युवा घाटी की सबसे बड़ी समस्या आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट को मानते हैं। उनका कहना है कि इस एक्ट का सबसे ज्यादा शिकार युवा ही हो रहे हैं। हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि घाटी से लागू आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट हटा लिया जाए।
'राहुल, हमारी भी तो सुनो"
युवाओं की तकलीफ यह है कि कोई उनकी सुन नहीं रहा है। वे कहते हैं कि राहुल गाँधी युवाओं से संवाद करने देशभर में घूम रहे हैं, लेकिन कश्मीर के युवाओं की नहीं सुन रहे। उन्हें कश्मीर के युवाओं से संवाद करना चाहिए। चाहे वे कश्मीर जाएँ या कश्मीर के युवाओं को अपने पास बुलवाएँ। बात सुनी जाएगी तो पीड़ा भी कम होगी।
*हमें भारत से आजादी नहीं चाहिए। लेकिन हमें वैसी ही आजादी चाहिए जो भारत के अन्य राज्यों के लोगों को मिली हुई है। हम जब घर से बाहर निकलते हैं तो कदम-कदम पर हमसे पहचान पत्र दिखाने को कहा जाता है। चेक पाइंट पर एक-एक घंटे खड़े होकर अपनी पहचान सिद्ध करना होती है।
आबिद हुसैन, शासकीय बेनजीर कालेज
*हम पर इल्जाम लगाया जाता है कि हम पाकिस्तान के साथ मिलना चाहते हैं। जबकि यह सरासर गलत है। कश्मीरी पाकिस्तान से नफरत करते हैं। पाकिस्तान ने आतंकवादियों को भेजकर कश्मीर को जहन्नुम बना दिया है। कश्मीर घाटी में शिक्षा के नाम पर केवल एक विश्वविद्यालय है जिसमें आम कोर्सेस में भी 20 सीटों के लिए 2 हजार लोगों के बीच काम्पटीशन होता है। केन्द्र सरकार कश्मीर के विकास के लिए जो पैसा भेजती है वह राज्य सरकार के मंत्री हड़प जाते हैं। भ्रष्टाचार के कारण भी कश्मीर के हालात खराब हैं।
बिलाल अहमद लोन, शासकीय हमीदिया कॉलेज
*न तो अलगाववादियों को कश्मीरी जनता की फिक्र है और न ही राज्य सरकार को उनका ख्याल है। आम कश्मीरी उस गुनाह की सजा भुगत रहा है जो उसने किया ही नहीं। अब जबकि घाटी से आतंकवाद समाप्त हो गया है,वहां से आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट जैसा काला कानून हटा लेना चाहिए।
अराफात अहमद बट्ट, हमीदिया कालेज
*अगर कश्मीरी युवा सेना पर पत्थर फैंक रहा है तो यह उनका फ्रस्ट्रेशन है। लेकिन इससे यह बात भी सिद्ध होती है कि वह आतंकवादी नहीं है। अगर वह आतंकवादी होते तो उनके हाथ में पत्थर नहीं एके 47 होती।
मुश्ताक अहमद, आईपीसी कालेज
सबको बसने की इजाजत दें, समस्या खत्म. जब सिख आ जायेंगे तो पत्थर गायब हो जायेंगे..
ReplyDeleteकहीं ऐसा तो नहीं कि जजबात और इतिहास की इबारत एक दूसरे के सामने खडे हैं? हमने केन्द्र में कांग्रेसी और गैर कांग्रेसी सरकारें देख लीं किन्तु समस्या जहॉं की तहॉं बनी हुई है। जब सब लोग भारत के साथ हैं, पाकिस्तान के विरुध्द हैं तो समस्या क्या है? जाहिर है कि बात इतनी आसान और सीधी सपाट नहीं है जितनी कही और बताई जा रही है। मामले में कोई न कोई उलझा हुआ पेंच है जरूर जो या तो नजर नहीं आ रहा या कोई भी उसे देखना नहीं चाहता।
ReplyDeleteकहीं ऐसा तो नहीं कि आवश्यकता तो शल्य क्रिया की है और हम दर्द निवारक गोली से काम चलाना रहे है?
विचार कीजिएगा।
hamare kashmiri bhaiyon ne kaha ki hamare pas berojgari , aur anya problem hai isliye yuvaon ke hath me patthar hai , yahi samsya pure desh me hai lekin anya yuvaon ke hath me patthar nahi hai , aur ek bat yadi aap kashmir me pareshan hai to pareshan karne vale pakistaniyon aur patthar phenkane valo ke khilaf aap log pradarshan kyon nahi karte ,keval army ko kyon koste hai
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