Thursday, December 16, 2010

पेट्रोल की मात्रा पर कर क्यों नहीं लगाते सरकार!

पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि से परेशान जनता का यह एक सवाल मँहगाई पर घड़ियाली आँसू बहा रही राजनीतिक दलों को खामोश कर सकता है।
पेट्रोल-डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों और उसके कारण टैक्स की कमरतोड़ मार से जनता हलाकान है। जब टैक्स घटाने की बात आती है तो केन्द्र और राज्य सरकारें एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ने लगती है। कर कम करने की पहल कोई नहीं करना चाहता। विशेषज्ञों के अनुसार सरकारें यदि टैक्स पेट्रोलियम पदार्थ के मूल्य के बजाए मात्रा पर लगाना शुरु कर दें तो भी अवाम को 2 रु. प्रति लीटर की राहत मिल सकती है। हकीकत यह है कि केन्द्र व राज्य सरकारें मिलकर पेट्रोल-डीजल पर 55 फीसदी कर वसूल रही हैं। इससे हर साल पौने 2 सौ हजार करोड़ रु. से अधिक की कमाई हो रही है।

दरअसल पेट्रोल की 50 फीसदी और डीजल की 31 फीसदी कीमत सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले करों एक्साइज ड्यूटी और वेट के कारण ज्यादा है। 2001-02 में केन्द्र और राज्य सरकारें तेल क्षेत्र से करीब 73 हजार 800 करोड़ कमाती थी। 2007-08 में यह आँकड़ा 164 हजार करोड़ हो गया। जिस तेजी से पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ रहे हैं, उतनी ही तेजी से कम्पनियों और सरकार का मुनाफा भी। मुनाफे की एक वजह कर निर्ध्ाारण का तरीका भी है। करीब 25 फीसदी कर केंद्र सरकार लगाती है तो करीब 30 फीसदी कर राज्य सरकार लगाती है। उत्पाद शुल्क का एक हिस्सा और राज्य सरकार द्वारा लगाए जा रहे सभी कर 'एड वेलोरम" लगाए जाते हैं यानी ये कर मात्रा पर नहीं बल्कि कीमत पर लगाए जाते हैं। अगर कीमत बढ़ेगी तो कर की दर भी बढ़ेगी। विशेषज्ञ बताते हैं कि मात्रा के आध्ाार पर कर लगाने से दाम में करीब 2 रूपए तक की गिरावट हो सकती है।

घाटा केवल वितरक कंपनियों का

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने पर दाम बढ़ाने के लिए हायतौबा मचती है। दाम बढ़ाने के लिए जिस घाटे का हवाला दिया जाता है वह केवल विक्रेता कम्पनी का घाटा है। तेल उत्पादक कम्पनियाँ तो हमेशा फायदे में रहती है। खुदरा तेल बेचने वाली हिंदुस्तान पेट्रोलियम या भारत पेट्रोलियम जैसी कंपनियां तेलशोधक कारखानों से तेल उस कीमत पर खरीदती हैं, जिस कीमत पर ये तेल उन्हें आयात करने पर मिला होता। इस कीमत में कर और ढ़ुलाई का खर्चा शामिल होता है। इन कम्पनियों को भारत में ही उत्पादित होने वाला तेल आयात वाले दामों पर ही दिया जाता है। तेल के इस खेल में जनता पीसती है और सरकार व कम्पनियाँ मुनाफा कमाती है।



# तेल पर सरकार 'एड वेलोरम" कर लगाती है। यह कीमत पर लगने वाला कर है। अगर इसे मात्रा पर लगाया जाए तो पेट्रोल-डीजल की कीमत कम हो जाएगी।


आरएस तिवारी, अर्थशास्त्री

No comments:

Post a Comment