Wednesday, December 8, 2010

सम्पत्ति राजसात हो तो रूके भ्रष्टाचार

जस्टिस पीडी मूले ने छेड़ी कानून में संशोधन की मुहिम


घोटाले पर घोटाले। हर दिन पिछले से बड़े घोटाले का खुलासा। भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के सारे इंतजाम हर बार बौने साबित हो जाते हैं। कहीं इसकी वजह पक ड़े जाने पर कम सजा का प्रावधान तो नहीं? यह विचार इसलिए कि दोषी सजा पूरी होने के बाद काले धन से वह आराम से जिंदगी बसर करता है। वहाँ सामाजिक लांछन जैसे किसी डर की कोई वजह नहीं होती। एक विचार है कि अगर मामले का खुलासा होते ही दोषी की पूरी सम्पत्ति जब्त कर ली जाए तो कोई भी भ्रष्टाचार करने के पहले दो बार सोचेगा। शायद यह तरीका काम कर जाए।

देवास के विशेष प्रधान अपर सत्र न्यायाधीश पीके व्यास ने भ्रष्ट्राचार के एक मामले में लोक निर्माण विभाग शाजापुर के उपयंत्री प्रीतमसिंह पर 5 करोड़ रूपए का जुर्माना और 3 वर्ष की कठोर कैद की सजा सुनाई है। इस सजा के बाद बहस चल पड़ी है कि भ्रष्टाचार पर कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए। अभी बड़े घोटाले के बाद भी दोषी को कुछ साल की जेल और छोटा अर्थ दंड दिया जाता है। सजा भोगने के बाद घोटाले की सारी रकम जायज हो जाती है और वह ता-उम्र परिवार के संग भ्रष्टाचार का आनंद भोगता है। ऐसे भ्रष्टाचार पर नकेल नहीं कसेगी। भ्रष्टाचार रोकना है तो हमें इसके कानून का सख्त करना होगा। इसी तर्क के साथ उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस पीडी मूले ने इंदौर से एक मुहिम चला रखी है। वे कहते हैं कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1998 में ऐसा प्रावधान है ही नहीं कि दोषी की सम्पत्ति को जब्त या राजसात किया जा सके। जबकि खाद्य, औषधि  या अन्य मामलों में अवैध सामान जब्त कर लिया जाता है। बिना विष के साँप से कौन डरेगा? अगर इस कानून को प्रभावी बनाना है तो तत्काल अधिनियम में संशोधन होना चाहिए और सम्पत्ति जब्त करने का बिंदू जोड़ा जाना चाहिए।

श्री मूले अपनी इस एकल मुहिम को बरसों से जारी रखे हुए हैं और वे सांसदों, कानून मंत्री, सर्वोच्च न्यायालय सहित हर संभव मंच पर अपनी इस बात को रखते हैं। उनके इस तर्क पर सभी सहमति जो जताते हैं लेकिन कानून में बदलाव की पहल कोई नहीं करता। अफसर और नेता यह नहीं चाहते क्योंकि बदलाव होगा तो वे ही फँसेंगे। श्री मूले मानते हैं कि यह सही समय है जब जनता व मीडिया को अपनी आवाज बुलंद करना चाहिए।

आपका क्या ख्याल है?

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