Monday, September 17, 2012

मालिक से नौकर बना देगा एफडीआई



खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश के निर्णय से स्वरोजगार के जरिए अपने कारोबार के मालिक बन गए छोटे-छोटे व्यापारियों का नुकसान ही होगा। उनके मालिक से नौकर बन जाने का खतरा है। क्या यह लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति जैसा नहीं है जिसने बाबूओं की फौज खड़ी की? हम कैसे मानलें कि रोजगार बढ़ाने का ख्वाब दिखा कर एफडीआई की पैरवी कर रही सरकार इस बात को सुनिश्चित करेगी कि यह रोजगार बढ़ाएगा लेकिन स्वरोजगार खत्म नहीं करेगा।?
पिछली बार जब सरकार ने खुदरा व्यवसाय में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से कदम पीछे ले लिए थे तो तत्काल बाद अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय ने एक रिपोर्ट जारी कर दावा किया था कि एफडीआई की मंजूरी से कृषि वस्तुओं की खरीद और भंडारण व्यवस्था में सुधार होगा और इससे मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। चीन का उदाहरण देते हुए कहा गया था कि वहाँ ने खुदरा क्षेत्र में एफडीआई की मंजूरी 1992 में दी। उसके बाद से वहां खुदरा क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश हुआ, लेकिन इसका छोटे या घरेलू खुदरा श्रृंखला पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा। इस अमेरिकी स्वार्थ वाले शोध के पीछे हम यह कैसे भूल जाएँ कि चीन ने अपने उत्पादों के लिए विश्व बाजार में गहरी जड़ें जमा ली है। चीनी सामान हमारे अपने देशी उत्पादों के लिए खतरा बन गए हैं। जीएम फूड और विदेशी का आगमन हमारे देशी उत्पादों को खत्म करके ही दम लेगा। जैसे मालवा गेहूँ, देशी टमाटर, मक्का जैसी तमाम फसलें हमारी कृषि का हिस्सा नहीं रही।
भारत में एफडीआई जरूरी है लेकिन बड़ा सवाल होगा कि किस क्षेत्र में? क्या हम अपनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले स्थानीय और ग्रामीण अर्थतंत्र को तोड़ने की कीमत पर एफडीआई मंजूर करें? यहाँ यह याद दिलाना जरूरी है कि पिछली वैश्विक आर्थिक मंदी में जब अमेरिका जैसा सूरमा ध्वस्त हो गया था, भारत अपनी इसी अर्थतंत्र की खासीयत के कारण अप्रभावित रहा था।
भारतीय खुदरा कारोबार का तंत्र अनोखा है। यह किराना दुकानों से लेकर कपड़े-जूते और दैनिक जीवन की जरूरी तमाम चीजों तक फैला है। यही कारण है कि कृषि पर निर्भर भारत दुकानदारों का देश बन गया। किराना में इक्यावन फीसदी विदेशी निवेश से करीब डेढ़ करोड़ खुदरा कारोबारियों के काम पर विदेशी चकाचौंध का संकट है। ये कुल बिक्री का 94 सामान अपनी छोटी-मोटी दुकानों से बेचते है। डिपार्टमेंटल स्टोर संस्कृति ने नुक्कड़ की दुकानों का कारोबार समेटा। अब डिर्पाटमेंटल स्टोर पर विदेशी कम्पनियों का कब्जा होगा। अभी भारत में बिग बाजार, रिलायंस, मोर और स्पेंसर जैसी कंपनियां किराना स्टोर का कारोबार कर रही हैं। जाहिर है किराना में विदेशी निवेश का रास्ता खुलने से इन कंपनियों को फायदा होगा न कि छोटे दुकानदारों को।
विमानन जैसे क्षेत्र में एफडीआई फायदेमंद हो सकता है लेकिन यह भी तब जब इसे लागू करने के तौर तरीके सही हों। सरकार को अगर विदेशी कंपिनयों को बुलाना ही है टेक्नीकल और इन्फ्रास्ट्रचर क्षेत्र में बुलाए। न कि उन कम्पनियों को जो हमारे उत्पादों को खत्म कर दे और मालिक दुकानदारों को सेल्समेन बना दे।




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