आखिरकार, अदालत ने भी दिल्ली गैंगरेप के आरोपियों को दोषी ठहरा दिया और सजा की बारी आ गई है। दोषियों को फांसी मिले या उम्र कैद या कुछ राहत मिल जाए लेकिन यह सवाल अब तक बकाया है कि क्या इस घटना से समाज ने कोई सबक लिया? क्या ये सजा निर्भया के साथ हुए अमानवीय कृत्य जैसी घटनाओं को रोक पाएगी? उम्मीदें कई हैं लेकिन आशंकाएं नाउम्मीद कर देती हैं। आंकड़े इस निराशा को गहरा करते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाओं में कमी आती लेकिन ये तो लगातार बढ़ रही हैं। अब तो छेड़छाड़ का विरोध भी भारी पड़ रहा है। गुरुवार को भोपाल के पास नसरूल्लागंज में पड़ोसी युवक द्वारा लगातार छेड़छाड़ के बाद दुष्कर्म का प्रयास करने 21 वर्षीय युवती ने खुद को बचाने के लिए आत्मदाह कर लिया। युवती गंभीर अवस्था में भोपाल रेफर की गई है। एसडीएम के समक्ष हुए बयान में युवती ने युवक पर लगातार परेशान करने और दुष्कर्म का प्रयास करने की बात कही है। ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही है। निर्भया की आखिरी ख़्वाहिश बताते हुए उसकी मां कहती है कि उसने बोला था सजा क्या उन्हें तो जिÞंदा जला देना चाहिए। अगर उन्हें फांसी की सजा हो जाती है तो शायद उसकी आखिरी इच्छा पूरी हो जाए। ऐसे में एक सजा से क्या सामाजिक बुनावट में कोई बदलाव आएगा? तो क्या निर्भया के अपराधियों को सजा मिलने से हिंदुस्तान के हालात बदलेंगे? क्योंकि ऐसे मामलों में सजा के प्रावधान तो कई थे। जैसे, कात्यायन ने कहा है कि बलात्कारी को मृत्युदण्ड दिया जाए। नारदस्मृति में बलात्कारी को शारीरिक दंड देने का प्रावधान है। कौटिल्य के मुताबिक दोषी की संपत्तिहरण करके कटाअग्नि में जलाने का दंड दिया जाना चाहिए। याज्ञवल्क्य सम्पत्तिहरण कर प्राणदंड देने को उचित बताते हैं। मनुस्मृति में एक हजार पण का अर्थदंड, निर्वासन, ललाट पर चिह्न अंकित कर समाज से बहिष्कृत करने का दंड निर्धारित करती है। तो क्या आज सख्त सजा से बदलाव की आस नहीं की जा सकती? निर्भया की मां उम्मीद करती है कि अगर दोषियों को सही मायने में सजा मिल जाती है, तो फर्क जरूर पड़ेगा। अपराधियों को फांसी दिए जाने का जनता में बढ़िया संदेश जाएगा। एक बार ऐसा करने से पहले लोगों के मन में ख़्याल तो जरूर आएगा कि हम करेंगे तो फंसेंगे। लगता तो नहीं है कि हिंदुस्तान बदल रहा है लेकिन बदलाव की थोड़ी सी झलक दिखती है। पहले बदनामी के डर से दुष्कृत्य पीड़िता को चुप रखा जाता था।अब इतना तो बदलाव हुआ है कि लोग आगे आने लगे हैं, कार्रवाई तुरंत होने लगी है, अभियुक्त पकड़े जाने लगे हैं और उन्हें समय से सजा दी जा रही है। असल में त्वरित न्याय प्रक्रिया भी कानून के सख्ती से पालन और अपराधों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उम्मीद की जाना चाहिए कि इस फैसले के बाद भी ऐसा ही होगा।
Friday, September 13, 2013
एक फैसले से समाज के बदल जाने की उम्मीद
आखिरकार, अदालत ने भी दिल्ली गैंगरेप के आरोपियों को दोषी ठहरा दिया और सजा की बारी आ गई है। दोषियों को फांसी मिले या उम्र कैद या कुछ राहत मिल जाए लेकिन यह सवाल अब तक बकाया है कि क्या इस घटना से समाज ने कोई सबक लिया? क्या ये सजा निर्भया के साथ हुए अमानवीय कृत्य जैसी घटनाओं को रोक पाएगी? उम्मीदें कई हैं लेकिन आशंकाएं नाउम्मीद कर देती हैं। आंकड़े इस निराशा को गहरा करते हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो बलात्कार और छेड़छाड़ की घटनाओं में कमी आती लेकिन ये तो लगातार बढ़ रही हैं। अब तो छेड़छाड़ का विरोध भी भारी पड़ रहा है। गुरुवार को भोपाल के पास नसरूल्लागंज में पड़ोसी युवक द्वारा लगातार छेड़छाड़ के बाद दुष्कर्म का प्रयास करने 21 वर्षीय युवती ने खुद को बचाने के लिए आत्मदाह कर लिया। युवती गंभीर अवस्था में भोपाल रेफर की गई है। एसडीएम के समक्ष हुए बयान में युवती ने युवक पर लगातार परेशान करने और दुष्कर्म का प्रयास करने की बात कही है। ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही है। निर्भया की आखिरी ख़्वाहिश बताते हुए उसकी मां कहती है कि उसने बोला था सजा क्या उन्हें तो जिÞंदा जला देना चाहिए। अगर उन्हें फांसी की सजा हो जाती है तो शायद उसकी आखिरी इच्छा पूरी हो जाए। ऐसे में एक सजा से क्या सामाजिक बुनावट में कोई बदलाव आएगा? तो क्या निर्भया के अपराधियों को सजा मिलने से हिंदुस्तान के हालात बदलेंगे? क्योंकि ऐसे मामलों में सजा के प्रावधान तो कई थे। जैसे, कात्यायन ने कहा है कि बलात्कारी को मृत्युदण्ड दिया जाए। नारदस्मृति में बलात्कारी को शारीरिक दंड देने का प्रावधान है। कौटिल्य के मुताबिक दोषी की संपत्तिहरण करके कटाअग्नि में जलाने का दंड दिया जाना चाहिए। याज्ञवल्क्य सम्पत्तिहरण कर प्राणदंड देने को उचित बताते हैं। मनुस्मृति में एक हजार पण का अर्थदंड, निर्वासन, ललाट पर चिह्न अंकित कर समाज से बहिष्कृत करने का दंड निर्धारित करती है। तो क्या आज सख्त सजा से बदलाव की आस नहीं की जा सकती? निर्भया की मां उम्मीद करती है कि अगर दोषियों को सही मायने में सजा मिल जाती है, तो फर्क जरूर पड़ेगा। अपराधियों को फांसी दिए जाने का जनता में बढ़िया संदेश जाएगा। एक बार ऐसा करने से पहले लोगों के मन में ख़्याल तो जरूर आएगा कि हम करेंगे तो फंसेंगे। लगता तो नहीं है कि हिंदुस्तान बदल रहा है लेकिन बदलाव की थोड़ी सी झलक दिखती है। पहले बदनामी के डर से दुष्कृत्य पीड़िता को चुप रखा जाता था।अब इतना तो बदलाव हुआ है कि लोग आगे आने लगे हैं, कार्रवाई तुरंत होने लगी है, अभियुक्त पकड़े जाने लगे हैं और उन्हें समय से सजा दी जा रही है। असल में त्वरित न्याय प्रक्रिया भी कानून के सख्ती से पालन और अपराधों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उम्मीद की जाना चाहिए कि इस फैसले के बाद भी ऐसा ही होगा।
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