सोना पाने के लिए प्रत्यक्ष रूप से हत्या और हत्या के षड्यंत्र तो आम बात है लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि उनके सोने का लालच अप्रत्यक्ष रूप से कई लोगों की जान ले रहा है। जी हां, मैं बात कर रहा हूं सोने की खदानों में काम करने वाले मजदूरों और सोने का परिष्कृत करने वाले कारीगरों की। सोने को जमीन से निकालने में जुटे श्रमिक मिट्टी से सोने के कण खोजने के लिए उसमें पारा मिलाते हैं और पारे के जहर के शिकार होते हैं। यह पारा उनके दिमाग पर असर करता है। लिहाजा कंपकंपी और तालमेल की समस्या से घिरे ये गरीब मजदूर बिना समुचित उपचार प्राण गंवा देते हैं। पारे का शिकार वे कारीगर मजदूरों से ज्यादा होते हैं जो सोने को पारे से अलग करते हैं। पारा उनके दिमाग के उस हिस्से पर असर डालता है जो सही ढंग से चलने में मदद करता है। पारे का असर गुर्दों पर भी पड़ता है लेकिन दिमाग पर ये जो असर डालता है उसे ठीक नहीं किया जा सकता। माना जाता है कि 70 देशों में एक से डेढ़ करोड़ लोग सोना निकालने के काम में जुटे हैं। यानी इतने लोगों को सोना निकालने में जान का खतरा उठाना पड़ता है। इतना ही नहीं सोने की खुदाई के लिए इंडोनेशिया में करीब 60 हजार हेक्टेयर जमीन से जंगल काट दिए गए हैं। पहले जहां हरा इलाका था वहां अब हवाई नक्शे में एक सफेद धब्बा दिखाई देता है।
हालांकि, भारतीय पुरातत्व विभाग योजनाबद्ध तरीके से हर साल 100 से 150 साइटों पर खुदाई करवाती है, जिसका उद्देश्य सांस्कृतिक विरासतों को ढूंढ़ना और सहेजना होता है लेकिन इस बार वह सोने की खुदाई में जुटी है और यह कह कर अपनी कार्रवाई को उचित करार दे रही है कि सोना मिल गया तो बहुत बढ़िया और सोना छोड़ मिट्टी के बर्तन भी मिल गए तो पुरातत्व महत्व के होंगे। वहां खजाना मिलेगा या नहीं ये तो खुदाई के बाद ही पता चलेगा लेकिन इतना तो तय है कि अब देश भर में कई लोगों को जमीन में धन और सोना गड़ा होने के सपने आएंगे।अगर, उन्नाव की खुदाई में सोना मिल गया तो देश भर में जारी होने वाला सोना पाने का संभावित जुनून कहां जा कर थमेगा कहना मुश्किल है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। पुरातत्व विभाग के पास देश के अलग-अलग हिस्सों से उन्हें हर रोज सैकड़ों फोन आ रहे हैं, जिनमें लोग संभावित खजाने की खोज के लिए टीम भेजने का आग्रह कर रहे हैं। जमीन में गड़ा सोना या धन पा कर बिना परिश्रम अमीर बनने के हसीन सपने कितने ही ‘मुंगेरीलालों’ को आएंगे और यह ख्याली पुलाव पकाने के लिए वे अंध विश्वास, जादू टोने का सहारा लेने और मासूम बच्चों की हत्या तक करने से नहीं चूकेंगे। यही कारण है कि हमारी सामाजिक व्यवस्था में कभी भी बिना परिश्रम कमाए गए धन को तवज्जो नहीं दी गई। हमारी नैतिक कथाएं ऐसे धन के साथ आए पतन के उदाहरणों से भरी पड़ी हैं। उन्नाव से कुछ हासिल होगा या नहीं लेकिन उसके घातक दुष्परिणामों का मिलना तो तय हो चुका है।
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