Saturday, October 19, 2013

मुंगेरी लाल के हसीन सपने, जमीन में दबे सोने का लालच और कीमत विहीन इंसानी जान


उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में भारतीय पुरातत्व विभाग का दल उस छुपे हुए ‘खजाने’ को खोजने के लिए खुदाई शुरू कर चुका है जिसके बारे में एक साधु को सपना आया है। आश्चर्य तो यह है कि इस सोने के अस्तित्व पर खुद विभाग को भी शक है। यह पहली बार नहीं है कि किसी का सपने में जमीन में गड़े सोने या धन की जानकारी मिली हो और उसने इसे पाने के जतन न किए हों। हमारा आपराधिक इतिहास तफ्सील से इस बारे में बता  सकता है और उन बच्चों के बारे में जानकारी भी दे सकता है जिनकी बलि इस जमीन में गड़े सोने को पाने के लालच में दे दी गई। लेकिन यह पहली बार है जब  दर्जनों पुरातत्वविद और उनके सहायक एक साधु को आए सपने के आधार पर सैकड़ों साल पुराने राजाराव रामबक्श के किले के खंडहर पर खुदाई कर रहा है। हालांकि, कहा जा रहा है कि भूगर्भ सर्वेक्षण की रिपोर्ट में संबंधित इलाके में सोना, चांदी और अन्य अलौह धातु होने की संभावना के संकेत मिले हैं।  इतिहास भी इस इस बात की पुष्टि नहीं करता है कि राजाराव रामबक्श के पास कभी इतनी भारी मात्रा में सोना था। यहां इतना सोने होने का दावा भारत के दूसरे इलाकों के खुदाई के इतिहास से भी मेल नहीं खाता। बावजूद इसके अगर भारतीय पुरातत्व विभाग ने राजाराव रामबक्श के किले पर खुदाई करवाने का फैसला किया है तो इसके दो बड़े कारण हैं पहला आर्थिक और दूसरा राजनीतिक। आर्थिक कारण को समझने के लिए हमारी अर्थव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था में सोने का महत्व समझना होगा। आज सोना भुगतान संतुलन में अहम स्थान रखता है। आर्थिक तंगी से जूझ रही सरकार इस खामोख्याली में है कि सोना मिल गया तो उसके दिन फिर जाएंगे। इसका कारण भी है। कुल आयात का यह 8.7 प्रतिशत है। हमारी कुल राष्ट्रीय आय में बहुमूल्य वस्तुओं की भागीदारी, जिनमें सोना भी शामिल है, वित्तीय वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में 4.6 फीसदी रही। भारत में सोने की कुल मांग का 75 प्रतिशत आयात आभूषण के लिए ही होता है। 23 प्रतिशत सिक्के व बिस्कुट के रूप में निवेश के लिए तथा बाकी उद्योग-धंधे में। हमारी सामाजिक व्यवस्था में सोने  के  बगैर कोई शुभ कार्य पूरा नहीं होता। यह प्रतिष्ठा का विषय भी है और संपन्नता का प्रतीक भी। सोने न केवल महिला के सौंदर्य से जोड़ कर देखा जाता है बल्कि सोने से लदी महिला उसके पति के रूतबे का द्योतक भी होती है। ऐसे में सोना पाने के लिए अगर जान लेना भी पड़े तो लोग उसमें गुरेज नहीं करते।
सोना पाने के लिए प्रत्यक्ष रूप से हत्या और हत्या के षड्यंत्र तो आम बात है लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि उनके सोने का लालच अप्रत्यक्ष रूप से कई लोगों की जान ले रहा है। जी हां, मैं बात कर रहा हूं सोने की खदानों में काम करने वाले मजदूरों और सोने का परिष्कृत करने वाले कारीगरों की। सोने को जमीन से निकालने में जुटे श्रमिक मिट्टी से सोने के कण खोजने के लिए उसमें पारा मिलाते हैं और पारे के जहर के शिकार होते हैं। यह पारा उनके दिमाग पर असर करता है। लिहाजा कंपकंपी और तालमेल की समस्या से घिरे ये गरीब मजदूर बिना समुचित उपचार प्राण गंवा देते हैं। पारे का शिकार वे कारीगर मजदूरों से ज्यादा होते हैं जो सोने को पारे से अलग करते हैं। पारा उनके दिमाग के उस हिस्से पर असर डालता है जो सही ढंग से चलने में मदद करता है। पारे का असर गुर्दों पर भी पड़ता है लेकिन दिमाग पर ये जो असर डालता है उसे ठीक नहीं किया जा सकता। माना जाता है कि 70 देशों में एक से डेढ़ करोड़ लोग सोना निकालने के काम में जुटे हैं।  यानी इतने लोगों को सोना निकालने  में जान का खतरा उठाना पड़ता है। इतना ही नहीं सोने की खुदाई के लिए इंडोनेशिया में करीब 60 हजार हेक्टेयर जमीन से जंगल काट दिए गए हैं। पहले जहां हरा इलाका था वहां अब हवाई नक्शे में एक सफेद धब्बा दिखाई देता है।
हालांकि, भारतीय पुरातत्व विभाग योजनाबद्ध तरीके से हर साल 100 से 150 साइटों पर खुदाई करवाती है, जिसका उद्देश्य सांस्कृतिक विरासतों को ढूंढ़ना और सहेजना होता है  लेकिन इस बार वह सोने की खुदाई में जुटी है और यह कह कर अपनी कार्रवाई को उचित करार दे रही है कि सोना मिल गया तो बहुत बढ़िया और सोना छोड़ मिट्टी के बर्तन भी मिल गए  तो पुरातत्व महत्व के होंगे। वहां खजाना मिलेगा या नहीं ये तो खुदाई के बाद ही पता चलेगा लेकिन इतना तो तय है कि अब देश भर में कई लोगों को जमीन में धन और सोना गड़ा होने के सपने आएंगे।अगर, उन्नाव की खुदाई में सोना मिल गया तो देश भर में जारी होने वाला सोना पाने का संभावित जुनून कहां जा कर थमेगा कहना मुश्किल है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। पुरातत्व विभाग के पास देश के अलग-अलग हिस्सों से उन्हें हर रोज सैकड़ों फोन आ रहे हैं, जिनमें लोग संभावित खजाने की खोज के लिए टीम भेजने का आग्रह कर रहे हैं। जमीन में गड़ा सोना या धन पा कर बिना परिश्रम अमीर बनने के हसीन सपने कितने ही ‘मुंगेरीलालों’ को आएंगे और यह ख्याली पुलाव पकाने के लिए वे अंध विश्वास, जादू टोने का सहारा लेने और मासूम बच्चों की हत्या तक करने से नहीं चूकेंगे। यही कारण है कि हमारी सामाजिक व्यवस्था में कभी भी बिना परिश्रम कमाए गए धन को तवज्जो नहीं दी गई। हमारी नैतिक कथाएं ऐसे धन के साथ आए पतन के उदाहरणों से भरी पड़ी हैं। उन्नाव से कुछ हासिल होगा या नहीं लेकिन उसके घातक दुष्परिणामों का मिलना तो तय हो चुका है। 

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