श्रीमान राहुल गांधी, बहुत अच्छा लगता है जब आप बाहें चढ़ा कर कहते हैं कि सच बोलने का कोई वक्त नहीं होता लेकिन यह बताते हुए दुख होता है कि आपका यह सच आपकी पार्टी ही नहीं सुनती है। आपको याद दिलाना चाहता हूं कि आप जब पहली बार इटारसी के आबादीपुरा और झाबुआ आए थे तो राजनीति के एक विद्यार्थी की तरह थे और आपकी बातों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया लेकिन फिर जब आप दो साल बाद आए तो एक विजन के साथ प्रस्तुत हुए थे। आपने पैराशूट से उतरे नेता पुत्रों के विपरीत तोहफे में मिले पद को ठुकरा कर संगठन को खड़ा करने में रूचि दिखाई थी। आपकी बातों पर यकीन होने लगा था। तब तक आपने अपनी खास योजना ‘आम आदमी का सिपाही’ लांच कर दी थी और युवा कांग्रेस के चुनिंदा नेताओं को उसके संचालन की जिम्मेदारी सौंपी थी। यह योजना देश की तरह मध्यप्रदेश में भी फ्लाप हो गई। यहां युवा नेताओं ने इसे चलाने में रूचि नहीं दिखाई। बीते अप्रैल में जब आप कार्यकर्ताओं से मुखातिब हुए थे, तब आपने कहा था कि नवंबर में होने वाले चुनावों के उम्मीदवारों के नाम तीन माह पहले घोषित कर दिए जाएंगे लेकिन यह बात भी नहीं मानी गई। अब तो 40 दिन शेष हैं और लगता नहीं कि मतदान के 30 दिन पहले तक सभी कांग्रेस प्रत्याशियों के नाम घोषित हो पाएंगे। लगता है कि दागियों को बचाने वाले अध्यादेश को फाड़ने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अपनी ही पार्टी के नेताओं के आगे बेबस हैं। आपने कहा था कि कांग्रेस को छह बड़े नेताओं के चंगुल से मुक्त करवाएंगे और इसे कार्यकर्ताओं की पार्टी बनाएंगे लेकिन विधानसभा के लिए बनी पैनल में बड़े नेताओं ने अपने बेटे,बेटी,भाई, बहन का अकेला नाम डलवा कर टिकट पक्की कर ली है। कार्यकर्ता पहले इनके बाप दादाओं के झण्डे उठाते रहे, अब नेता पुत्रों के लिए नारे लगाएंगे।
राहुलजी, आपने ही भोपाल यात्रा में कहा था कि कार्यकर्ताओं को अपना हक लेने के लिए संघर्ष करना होगा, बिना इसके कोई भी उन्हें यह हक देने वाला नहीं है। लगता है, आपकी बात सच हो रही है, यहां कार्यकर्ताओं को उनका हक देने वाला कोई नहीं है।
राहुलजी, आपने ही भोपाल यात्रा में कहा था कि कार्यकर्ताओं को अपना हक लेने के लिए संघर्ष करना होगा, बिना इसके कोई भी उन्हें यह हक देने वाला नहीं है। लगता है, आपकी बात सच हो रही है, यहां कार्यकर्ताओं को उनका हक देने वाला कोई नहीं है।
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