Thursday, October 24, 2013

तेरी गायकी की बूंद के प्यासे हम...

जिंदगी  की पहेलियां जब उलझाने लगती हैं तो संगीत हमराही बन जाता है। मन्ना डे की गिनती भी ऐसे ही गायकों में होती है जिनकी गायकी हमें पारलौकिक अनुभव करवाती हैं। ऐसी आवाज का धनी यह मकबूल फनकार  अब हमारे बीच नहीं है। वर्ष 1943 में सुरैया के साथ ‘तमन्ना’ फिल्म से अपनी गायकी की शुरूआत करने वाले मन्ना डे का मूल नाम प्रबोध चंद्र डे था। उनका सफर भी उस युग के तमाम सफल इंसानों की तरह मुश्किलों और संघर्ष से भरा हुआ था। गरीबी और संघर्ष के दिन में काफी संघर्ष करना पड़ा। ‘तमन्ना’ के बाद कई दिनों तक काम नहीं मिला। नाउम्मीदी और मुफलिसी के उस दौर में उन्हें ‘मशाल’ फिल्म मिली और इसमें गाया गीत ‘ऊपर गगन विशाल’ हिट हो गया जिसके बाद उन्हें धीरे-धीरे काम मिलने लगा। बाद का जीवन मन्ना डे की सफलता और हमारे से साथ संगीत के गहरे नाते की कहानी है। उनकी आवाज की तरह उनके व्यक्तित्व की सरलता ही थी कि उन्होंने कभी किसी गीत को गाने से इंकार नहीं किया और हर किस्म के गाने हर किसी के लिए गाए। शुरुआत में उन्हें सहायक कलाकार, हास्य और चरित्र अभिनेता के गीत मिले लेकिन उन्होंने हमेशा पूरे समर्पण से काम किया। यही कारण है कि उनके हर गीत पर उनकी खास मुहर दिखाई दिखाई देती है फिर चाहे वह ‘उपकार’ फिल्म का ‘कस्मे वादे प्यार वफा’ हो  या ‘आनंद’ फिल्म का चर्चित गीत ‘जिंदगी कैसी है पहेली’ हो। हर गीत से उनकी अनूठी छवि का परिचय होता है। जो मन्ना डे को केवल गंभीर गीतों का गायक  मानते रहे वे भी ‘पड़ोसन’ का गीत ‘इक चतुर नार करके सिंगार’ और ‘श्री 420’ का रोमांटिक गाना ‘ये रात भीगी-भीगी’ सुन कर हतप्रभ रह जाते हैं। उनकी रेंज का अनूठा उदाहरण यह है कि वे जहां हल्के-फुल्के गीतों में मस्ती का रंग भरते थे वहीं ‘लागा चुनरी में दाग’ जैसे शास्त्रीय और ‘ऐ मेरे प्यारे वतन के लोगों’ जैसे देशभक्ति के गीतों में गहराई और ओज का संचार कर देते थे। आज मन्ना डे सशरीर हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनके गीत ही उनकी मौजूदगी के निशान होंगे। जब-जब दोस्ती का जिक्र होगा तब-तब ‘यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी’ गाया  जाएगा। अपने जीवन साथी को देख प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए ‘ओ मेरी जोहरा जबीं’ गुनगुनाया जाएगा और दर्शन की बात आएगी तो ‘ऐ भाई जरा देख के चलो’ में जिंदगी का मिजाज खोजा जाएगा। ‘सीमा’ में गाया ‘तू प्यारका सागर है तेरी एक बूंद के प्यासे हम’ को कौन भूल सकता है? एक बार संगीतकार अनिल विश्वास ने कहा था कि मन्ना हर वह गीत गा सकते हैं जो मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश ने गाए हों। लेकिन इनमें कोई भी मन्ना के हर गीत को नहीं गा सकता। ऐसे थे मन्ना डे। समाज ने उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण तथा दादा साहब फाल्के सम्मान दे कर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की है लेकिन उनकी गायकी के कर्ज से हम कभी उऋण नहीं हो पाएंगे आखिर वे गायकी के सागर थे और हम इस सागर की एक-एक बूंद के प्यासे हैं। जब जब भारतीय फिल्म संगीत का उल्लेख होगा मन्ना डे का जिक्र किए बगैर बात पूरी नहीं हो पाएगी।

No comments:

Post a Comment