सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर कई सियासी बातें हुई हैं। यह अच्छी बात है कि देश अपने नेताओं को याद करे और उनके सिद्धांतों को अपनाने के लिए प्रेरित हो। नेता अगर अपने पूववर्ती जननायकों को याद रखते हैं तो और भी अच्छी बात है इससे शासन और नेतृत्व क्षमता में सुधार होता है। इनदिनों सरदार पटेल को भी याद किया जा रहा है। बेहतर होता उन्हें उनके कृतित्व और व्यक्त्वि की खूबियों के कारण याद कर उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण करने का संकल्प लिया जाता लेकिन गांधी, नेहरू, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, लालबहादुर शास्त्री की ही तरह सरदार पटेल को भी स्वार्थवश याद किया जाता है। इस तरह से याद करना असल में ऐसे महानायकों का निरादर करने के समान है। यह विडंबना ही कही जानी चाहिए कि मनीषियों को लोग प्रतिमाएं बना कर याद रखते हैं लेकिन उनकी बताई शिक्षा को सबसे पहले भूला देते हैं। उनके नाम पर झगड़ते हैं लेकिन अपने आदर्श के क्रिया कलापों का अनुसरण नहीं करते। अगर ऐसा होता तो विचारधारा की जो लड़ाई देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल ने जिस शालीनता से लड़ी, बाद में भी उसी गरिमा के साथ लड़ी जाती। दुर्भाग्य है समर्थकों ने अपने हित साधने के लिए उन नेताओं को नीचा दिखाना शुरू कर दिया जिन नेताओं ने जीवित रहते हुए कभी एक-दूसरे का अपमान नहीं किया था। देश को आजाद करवाने में महात्मा गांधी का सर्वाधिक योगदान था तो नेहरू देश के विकास की ने कल्पना और दृष्टिकोण को विस्तार दिया। देश अगर आज एकजुट है और इसकी रगों में विविधता के बावजूद एकता का लहू दौड़ रहा है तो इसकी यह शक्ति और संपूर्णता सरदार पटेल की कार्यक्षमता का परिणाम है। इतिहास गवाह है कि मतभेदों के बावजूद इन नेताओं ने हमेशा कभी मनभेद नहीं होने दिया। साथ काम करने के दौरान के अनेकों प्रसंग है जब पटेल और नेहरू दोनों ने ही अपनी भूमिकाओं को त्यागने के प्रस्ताव रखे थे लेकिन कभी यह नहीं चाहा कि स्वयं का वर्चस्च स्थापित हो। त्याग, समर्पण और निष्ठा के ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं जो उनके व्यक्तित्व की विशालता उजागर करते है लेकिन यह अनुयायियों और समर्थकों का छोटापन है कि वे न तो उस विशालता को समझ पाए और न आत्मसात कर पाए। कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों बड़े दलों ने नेताओं पर अपना अधिकार इस तरह जताया ऐसे वे उनकी पैतृक पूंजी हो लेकिन इस पूंजी के संरक्षण के लिए उनके आदर्शों को अपनाने के उदाहरण यदाकदा ही देखने को मिले। चुनाव के कारण ही सही लेकिन एक बार फिर सरदार पटेल चर्चा में है और उनकी चर्चा होना तभी सार्थक होगा जब युवा पीढ़ी उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जाने और किताबों को पढ़ कर उनके व्यक्तित्व का सही आकलन कर पाए। वे कानों से सूनी उन्हीं बातों को सच न माने जो इनदिनों एक दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे नेता कह रहे हैं। नेताओं के लिए भी क्या यह आवश्यक नहीं कि वे सरदार और नेहरू ने आदर्श राजनीति का पाठ सीखें और यह सीखें कि कैसे तमाम मतभेदों के बावजूद देश को मजबूत और विकसित बनाने के लिए साथ काम किया जाता है। ऐसा कर पाए तो यह सरदार को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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