हिंदुस्तान का दिल दिखाने के लिए न बनी योजना, न खर्च हुआ पूरा पैसा
‘सतपुड़ा की रानी देखो, भोपाल राजधानी देखो, राजधानी में झील देखो, बहता पानी झिलमिल देखो, धर्मों की महफिल देखो, हिंदुस्तान का दिल देखो... कहते हुए मप्र राज्य पर्यटन निगम के प्रदेश को हॉट टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने की कोशिशें तो खूब की लेकिन कैग का मानना है कि ये कोशिशें केवल दिखावा है। निगम ने न तो प्रदेश के पर्यटन के विकास के लिए ठोस योजना बनाई न इस कार्य के लिए मिली अनुदान राशि का उपयोग किया। यहां तक कि पर्यटकों के आने के आंकड़े भी अविश्सनीय थे। कैग ने कंवेंशन निर्माण पर किए गए 37.47 लाख का व्यय भी निरर्थक माना।मप्र राज्य पर्यटन विकास निगम लिमिटेड की निष्पादन लेखा परीक्षा के बाद भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (कैग) ने कई कड़ी टिप्पणियां की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने 2010 में नई पर्यटन नीति बनाई लेकिन निगम ने राज्य में पर्यटन के विकास के लिए कोई योजना नहीं बनाई। वह संयुक्त उपक्रमों के माध्यम से निजी क्षेत्र को आमंत्रित करने में भी असफल रहा है।
किराए में ज्यादा बढ़ोतरी घट गए यात्री
कैग ने निगम की 9 होटलों में की गई टैरिफ बढ़ोतरी पर भी सवाल उठाए। निगम ने वर्ष 2007-08 से 2011-12 के दौरान 9 होटलों की टैरिफ दरों में 27 से 102 प्रतिशत की वृद्धि की गई। कैग ने कहा है कि उस होटलों में कम यात्री आ रहे थे। इन होटलों की भरने की दर 15 से 44 प्रतिशत के बीच थी। किराए में वृद्धि करते समय इस कम यात्री संख्या को ध्यान में नहीं रखा गया। इसके कारण पांच होटलों की यात्री संख्या में कमी आ गई और शेष चार में कम वृद्धि हुई। निगम 32 ईकाइयों में चालन अनुपात लक्ष्य के अनुसार नहीं रख पाई और न ही खाद्यान्न सीमा को मेंटेन कर सकी। इसके कारण खाद्यान्न लागत 2.81 करोड़ अधिक रही।
खराब वित्तीय प्रबंधन
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि निगम को वर्ष 2007-08 से 2011-12 के दौरान केंद्र व राज्य सरकार तथा वित्त आयोग से 248.94 करोड़ का अनुदान मिला लेकिन इस दौरान अनुदान की उपयोगिता का अनुपात 42.52 से 56.32 प्रतिशत के बीच ही रहा। कंपनी ने खर्च किए बिना वित्त आयोग की 10 योजनाओं में 3.12 करोड़, केंद्र सरकार की 7 योजनाओं में 4.90 करोड़ तथा प्रदेश सरकार की 4 योजनाओं में 93 लाख का खर्च किए बिना उपयोगिता प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर दिए।
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