यह 1945 की बात है. 6 अगस्त 1945 की सुबह. वह सुबह जापान के शहर हिरोशिमा में रोज की तरह थी. मगर कुछ घंटों बाद यह सुबह और शहर दोनों ही दुनिया के सबसे त्रासद वक्त में तब्दील हो गए. मारियाना द्वीप से उड़ान भरकर पहुंचे अमेरिकी विमान ने जापान के इस शहर पर परमाणु बम गिरा दिया. यह दुनिया का पहला परमाणु बम विस्फोट था. 10 सेकंड में खुशहाल हिरोशिमा आग के शहर में बदल गया. 70,000 से अधिक लोग भस्म हो गए. दुनिया के इस कोने में मानवता का चीत्कार रही थी तो अमेरिका में बैठे रॉबर्ट ओपेनहाइमर जरूर खुश हुए होंगे. लेकिन अपने बम की सफलता की यह खुशी लाखों प्राणियों और प्रकृति के उजाड़ होने पर टिकी थी. कितने दिन टिकी रहती? वे कुछ ही समय में ग्लानि से भर गए और जब राष्ट्रपति हैरी एस. ट्रूमैन से मिले तो ग्लानि में कहा मेरे हाथ खून से रंगे हुए हैं.
6 अगस्त को हिरोशिमा दिवस है और हिरोशिमा को तबाह करने वाला परमाणु बम बनाने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपेनहाइमर पर बनी फिल्म सफलता के कीर्तिमान छू रही है. इस बहाने से दोनों पर बात की जा सकती है और इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि आविष्कार कितना ही अच्छा क्यों न हो यदि उसका उपयोग मानवता, प्रकृति और मूल्यों के खिलाफ हुआ है तो वह निकृष्टतम है.
जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर का जन्म न्यूयॉर्क में 22 अप्रैल 1904 को हुआ था. महज 9 साल की उम्र से वह अलग-अलग भाषाओं के साहित्य पढ़ने लगे. विज्ञान में रूचि ने उन्हें वैज्ञानिक बना दिया. 1939 में जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ तो सेकंड्स में विध्वंस के ख्याल ने जोर पकड़ा और इस दौड़ में आगे निकलने के लिए परमाणु बम की कोशिशें तेज हो गईं.
1942 में अमेरिका ने मैनहट्टन जिले में परमाणु बम बनाने का कार्य ‘मैनहट्टन प्रोजेक्ट’ के नाम से शुरू किया. इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व वैज्ञानिक रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने किया. वैज्ञानिकों की रात दिन की मेहनत का परिणाम था कि तीन साल बाद अमेरिका परमाणु बम के पहले परीक्षण में सफल हुआ. 16 जुलाई 1945 की सुबह दुनिया का पहला परमाणु बम परीक्षण हुआ.
इस परीक्षण के 22वें दिन अमेरिका ने जापान को कमजोर करने के लिए हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिरा दिया. असल में, 1939 में शुरू हुए दूसरे विश्व युद्ध को छह साल हो चुके थे, लेकिन लड़ाई का अंत नजर नहीं आ रहा था. युद्ध में अमेरिका लगातार जापान पर बम गिरा रहा था. अगस्त 1945 तक अमेरिकी द्वारा की गई बममारी से 3 लाख से ज्यादा लोगों ने अपना जीवन खो दिया था. जापान लगातार हमले कर रहा था तब अमेरिका ने ये मान लिया कि सिर्फ पारंपरिक बमबारी के जरिए जापान झुकने वाला नहीं है तो जापान को क्षण में ध्वस्त करने के लिए परमाणु बम गिरा दिया.
हिरोशिमा पर हमले के तीसरे दिन अमेरिका ने 9 अगस्त 1945 की सुबह 11 बजे जापान के नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया था. हजारों लोगों की जान एक क्षण में चली गई और भारी क्षति उठा कर जापान ने झुकना स्वीकार कर लिया. अमेरिका का प्रभुत्व स्थापित हुआ और दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ. परमाणु हमले के कई सालों बाद तक जापान के इन शहरों के आसपास के शहरों में परमाणु विकिरण के कारण दिव्यांग बच्चे पैदा होते रहे.
परमाणु विभीषिका झेलने के बाद जापान ने परमाणु शक्ति के शांतिपूर्ण इस्तेमाल और कभी परमाणु बम नहीं बनाने का संकल्प लिया, लेकिन दुनिया के तमाम दूसरे देशों ने परमाणु ताकत जुटाने की होड़ जगजाहिर है. 2020 में दुनियाभर में 3,720 परमाणु बम तैनात थे. 2021 में ये बढ़कर 3,825 हो गए थे. मतलब दुर्भाग्य से अब जो भी हिरोशिमा-नागासाकी होगा वह अधिक तबाही का गवाह बनेगा.
अब बात करते हैं ओपेनहामइर की. परमाणु बम से हुई मानवता की क्षति का दोष ओपेनहाइमर ने स्वयं पर लिया. इस आत्मग्लानि से उभरने में ‘भगवद् गीता’ उनका संबल बनी. उन्होंने एक बार कहा था कि परमाणु बम बनाते समय नतीजों को सोचकर जब वह डर जाते थे तो उनकी उलझन गीता से कम हो जाती थी. गीता में लिखी इस बात ने उन्हें काफी प्रोत्साहित किया कि- ‘कर्म किए जाओ फल की चिंता मत करो.’
संदर्भ बताते हैं कि 1929 में ओपेनहाइमर जब अपने देश अमेरिका लौटे तो वह साहित्य और दर्शन की किताबें पढ़ने लगे थे. इसी समय उन्होंने भगवद् गीता भी पढ़ी थी. ओपेनहाइमर गीता पढ़कर काफी प्रभावित हुए थे. वह मानते थे कि इस किताब से उन्हें दार्शनिक सोच की बुनियाद मिली थी. वह जब भी उलझन में होते थे तो इससे उन्हें शांति मिलती थी.
तथ्य यह भी कि परमाणु हमले के बाद जब अमेरिकी राष्ट्रपति के बुलावे पर ओपेनहाइमर उनसे मिलने राष्ट्रपति भवन गए तो ओपेनहाइमर ने राष्ट्रपति से कहा था कि वे महसूस करते हैं कि उनके हाथ खून से रंगे हुए हैं. हालांकि, राष्ट्रपति को उनकी यह बात पसंद नहीं आई और ओपेनहाइमर को कमजोर व भावनात्मक इंसान करार दे दिया गया. ओपेनहाइमर लगातार अमेरिकी सरकार के कदम का पुरजोर विरोध करते रहे.
ओपेनहाइमर को सरकार के खिलाफ जाने की सजा मिली. 1954 में उन पर सोवियत रूस का जासूस होने का आरोप लगा. अमेरिकी सरकार ने उन्हें सिक्योरिटी क्लियरेंस अप्रूवल देने से मना कर दिया. उन्हें देश के टॉप साइंटिस्ट की लिस्ट से ब्लैकलिस्ट कर दिया गया. ओपेनहाइमर की बाकी की जिंदगी देशद्रोही और गद्दार के लांछन के साथ बीती.
18 फरवरी 1967 को प्रिंसटन स्थित घर में गले के कैंसर से ओपेनहाइमर की मौत हो गई. मृत्यु से ठीक पहले 1966 में तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन बी. जॉनसन उन्हें एटॉमिक एनर्जी कमीशन का सर्वोच्च सम्मान एनरिको फर्मी अवॉर्ड से सम्मानित किया. आखिरकार ओपेनहाइमर के निधन के 55 साल बाद 2022 में अमेरिकी सरकार ने उनकी वफादारी पर मुहर लगाते हुए उनका सिक्योरिटी क्लियरेंस बहाल किया.
परमाणु बम के निर्माता ओपेनहाइमर और परमाणु बम के विध्वंस को झेल चुके जापान ने तो इसके विनाश को पहचाना और सबक लिए. गीता के मार्ग को हर कर्म का स्वीकृति मान लेना हमारी समझ का दोष हो सकता है, गीता दर्शन का नहीं। गीता हमें आत्म बंधन से मुक्त होना सीखाती है, तभी कहती है कर्म करो फल की चिंता न करो, लेकिन वह फल आपके हिस्से का परिणाम नहीं है, उस फल या परिणाम की चिंता तो करनी चाहिए जो मानवता के हिस्से में आता है.
(न्यूज 18 में प्रकाशित ब्लॉग)
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