Friday, August 11, 2023

राहत इंदौरी: वे होते थे तो बस वे ही होते थे

फूलों की दुकानें खोलो, खुशबु का व्यापार करो

इश्क खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो.

ऐसी शायरी लिखने और उसे पढ़ने के अपने अलहदा अंदाज के कारण मुशायरा लूट लेने वाले शायर राहत इंदौरी अब नहीं हैं. यूट्यूब, फेसबुक, इंस्‍टा और रील्‍स वाली सोशल मीडिया की दुनिया को यह अहसास नहीं है, मगर मुशायरों के श्रोता तो आज अपने महबूब शायर का न होना शिद्दत से महसूस करते हैं. वे उस अंदाज को याद करते हैं जो शायरी को हर्फ से आगे ले जाकर श्रोताओं के अनुभव से जोड़ा देता था. आसमान में देख कर शायरी पढ़ने का वह अंदाज, आवाज में उतार-चढ़ाव का वह जादू और आम शब्‍दों की कारीगरी ऐसी कि वे होते थे तो बस वे ही होते थे.

राहत साहब की याद आने पर इंटरनेट पर पड़े ढ़ेरों वीडियो को देख-सुना जा सकता है मगर देश-दुनिया में मुझ जैसे लाखों श्रोता हैं जो मुशायरों में उनका न होना मिस करते हैं. वे जो हर वाकये पर सोचते हैं कि वे होते को क्‍या लिखते? रंग बदलती दुनिया में नए चेहरे पर उनका तंज क्‍या होता? राजनीति और मोहब्‍बत के रूख पर उनका नया लिखा कैसा होता? साल 2020 में 11 अगस्‍त की वह शाम थी जब राहतें बांटने वाला जिंदादिल शायर इस दुनिया से रूखसत हो गया था. कोरोना से जो हमें गहरे जख्‍म दिए हैं उनमें एक यह जख्‍म भी है.

राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में हुआ था. उनके पिता रफ्तुल्लाह कुरैशी कपड़ा मिल के कर्मचारी थे. परिवार की आर्थिक हालत को देखते हुए राहत ने 10 साल की उम्र में ही उन्होंने साइन बोर्ड बनाने शुरू कर दिए थे. यही वह दौर था जब वे शायरी की ओर आकर्षित हुए. उनके शायर बनने की कहानी भी कई बार बताई गई है. सड़कों पर साइन बोर्ड लिखने का काम था तो जाहिर उनकी लिखावट सुंदर थी. एक मुशायरे के दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर जां निसार अख्तर से हुई. जां निसार अख्‍तर से ऑटोग्राफ लेते वक्त राहत ने शायर बनने की ख्‍वाहिश जताई तो जां निसार अख्तर ने कहा कि पहले 5 हजार शेर याद कर लें फिर वे खुद ब खुद शायरी लिखने लगेंगे. राहत इंदौरी ने तुरंत बताया कि उन्‍हें 5 हजार शेर तो पहले से ही याद है. इस पर जां निसार अख्तर ने जवाब दिया कि फिर देर किस बात की है, तुम तो शायर हो, संभालो स्टेज.

यह प्रेरणा काम कर गई और वे शायरी करने लगे. साथ ही साथ उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया.

तमाम बड़े शायरों के बीच राहत इंदौरी ने अपनी लेखनी से ही नहीं बल्कि मुशायरा पढ़ने के अपने अंदाज से भी अपनी खास पहचान बनाई और प्रसिद्धि पाई. उनका अंदाज ऐसा था जैसे वे शायरी नहीं पढ़ रहे हैं बल्कि एक कुशल पेंटर है जो चित्र बना रहा है. उनके शब्‍द श्रोताओं के ख्‍याल में दृश्‍य बनाने लगते थे. कई लोगों ने राहत इंदौरी के इस अंदाज की नकल करने की कोशिश की लेकिन श्रोताओं ने सभी को नकार दिया. कोई भी उनकी तरह नकल कर शायरी पढ़ता है तो राहत ही याद आते हैं और इस तरह उनकी नकल करने की कोशिश विफल प्रयास साबित होती है.

राहत इंदौरी की शायरी केवल मंच पर ही नहीं पढ़ी गई बल्कि वह कई-कई जगह छापी गई है. विद्यार्थियों ने इस शायरी को जान-समझ कर लिखने के सबक याद किए हैं. देश-दुनिया के मुशायरों और कवि सम्‍मेलनों में उनकी शायरी चाव से सुनी गई तो बॉलीवुड क्‍यों पीछे रहता भला? ‘बेगम जान’, ‘मर्डर’, ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’, ‘मिशन कश्मीर’, ‘इश्क’, ‘घातक’, ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ जैसी ख्‍यात फिल्‍मों के गीत राहत इंदौरी ने लिखे हैं.

हालांकि, राहत इंदौरी ने अपनी शायरी में अपने वक्‍त के मिजाज पर खूब तंज किए हैं. उनकी शायारी सामाजिक, राजनीतिक स्थितियों पर गहरी नजर रखती है फिर भी उर्दू शायरी तो मोहब्‍बत की जुबां है और राहत इंदौरी की शायरी इससे जुदां नहीं है. राहत इंदौरी की पुण्‍यतिथि पर उनकी शायरी के मुख्‍तलिफ रंग को देखना सुकूनबख्‍श काम होगा.

बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर

जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएं.


उस की याद आई है सांसों जरा आहिस्ता चलो

धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है.


मुंतजि‍र हूं कि सितारों की जरा आंख लगे

चांद को छत पे बुला लूंगा इशारा कर के.


फूंक डालूंगा किसी रोज मैं दिल की दुनिया

ये तिरा खत तो नहीं है कि जिला भी न सकूं.


दोस्ती जब किसी से की जाए

दुश्मनों की भी राय ली जाए.


मैं इंतिजार में हूं तू कोई सवाल तो कर

यकीन रख मैं तुझे ला-जवाब कर दूंगा.


महकती रात के लम्हों नजर रखो मुझ पर

बहाना ढूंढ़ रहा हूं उदास होने का.


कहां हो आओ मिरी भूली-बिसरी यादो आओ

खुश-आमदीद है मौसम उदास होने का.


अभी गनीमत है सब्र मेरा, अभी लबालब भरा नहीं हूं मैं

वो मुझको मुर्दा समझ रहा है, उसे कहो मरा नहीं हूं मैं.


अड़े थे जिद पे के सूरज बनाके छोड़ेंगे

पसीने छूट गए एक दीया बनाने में.


मेरी निगाह में वो शख्स आदमी भी नहीं

जिसे लगा है ज़माना खुदा बनाने में.


ये चंद लोग जो बस्ती में सबसे अच्छे है

इन्ही का हाथ है मुझको बुरा बनाने बनाने.


मैं मर जाऊं तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना

लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना.

(न्‍यूज 18 पर 11 अगस्‍त 2023 को प्रकाशित) 

No comments:

Post a Comment