Friday, July 24, 2009

कुपोषण से निपटने के सरकारी इंतजाम बौने

मासूम के सीने पर गर्म सलाखों से दागा

कुपोषण से निपटने में सरकारी प्रबंधन नाकाम साबित हुए तो गाँवों में फिर से उन रीतियों पर भरोसा किया जाने लगा है जिन्हें विज्ञान कभी का नकार चुका है। मध्य प्रदेश में कुपोषण से बच्चों के मरने का सिलसिला जारी है और अब लोगों का अस्पताल और आँगनवाड़ी केन्द्रों पर विश्वास ही नहीं रहा।यह गरीब माता-पिता का दुर्भाग्य ही मानिए कि कुपोषण से मर रहे अपने बच्चे को बचाने के लिए वे निर्ममता की हद भी पार कर गए। खंडवा के डाबिया गाँव के रमेश ने अपने उस दो साल के बेटे रामनारायण की जान बचाने के लिए मासूम के सीने को पचास पर गर्म सलाखों से दागना मंजूर कर लिया। गरीब माता पिता ने यह तब किया जब बाल शक्ति केन्द्र से छुट्टी के बाद रामनारायण की हालात बिगड़ने लगी। अब उनका (अँधा) विश्वास है कि डाम (चाचुआ) देने से उनके बेटे का जीवन बच जाएगा। खंडवा के खालवा विकासखंड के डाबिया गाँव में 2 साल के रामनारायण के पेट और पीठ पर दागने के पचास निशान है। बाल शक्ति केन्द्र खंडवा से मिली जानकारी के अनुसार रामनारायण पिता रमेश (मुन्ना) को 12 सितंबर 08 को बीमार हालत में बाल शक्ति केन्द्र लाया गया था। तब रामनारायण को चौथी श्रेणी का कुपोषित पाया गया था और इलाज किया गया था। उसे 24 सितंबर 08 को केन्द्र से छुट्टी दी गई थी। तब वह तीसरी श्रेणी में आ गया था। लेकिन इसके बाद अब तक उसके स्वास्थ्य में सुधार नहीं आया। अभी भी उसका वजन मात्र छह किलो है। रामनारायण के पिता रमेश के मुताबिक गर्मी में रामनारायण की तबीयत और बिगड़ने लगी। इस बार वे उसे दिखाने एक बंगाली डॉक्टर के पास ले गए, फिर भी कुछ लाभ नहीं हुआ तो उसे डाम लगवाया। पचास बार गर्म सलाखों से दागने पर रामनारायण को पीड़ा तो बहुत हुई लेकिन रमेश मानता है कि ऐसा करने से उसका बेटा जिंदा रह जाएगा। रमेश से पूछा गया कि वह बाल शक्ति केन्द्र क्यों नहीं गया तो उसका कहना था कि वहाँ जाने से ज्यादा फायदा नहीं हुआ तो दूसरे डॉक्टर को दिखा रहा है।

बहन भी कुपोषित

रमेश के सरकारी अस्पताल पर से भरोसा उठ जाने की एक वजह यह भी है कि उसके दो बच्चे कुपोषित है। रामनारायण की बहन 18 माह की शांता भी कुपोषित है। शांता भी चौथी श्रेणी की कुपोषित है और उसे भी 28 अगस्त 08 से 10 सितंबर 08 तक बाल शक्ति केन्द्र खंडवा में भर्ती रखा गया था। उसकी हालत भी ठीक नहीं है।

स्थाई प्रबंधन नहीं

क्षेत्र में काम करने वाली संस्था स्पंदन की सीमा प्रकाश बताती है कि बाल शक्ति केन्द्र में तो बच्चों की बेहतर देखभाल होती है,लेकिन वहाँ से जाने के बाद पोषण आहार नहीं मिलता। फालोअप न होने, आँगनवाड़ी में पोषण आहार न होने, गरीब किसानों की कमजोर अर्थव्यस्था जैसे सवालों के बीच बड़ी सच्चाई यह है कि सरकार के पास कुपोषण से निपटने के लिए स्थाई व्यवस्था नहीं है।

1 comment:

  1. It is extremely painful to read these real life stories...need is putting all the schemes which govt has into action at ground.Lot of effort also has to go in creating awareness to educate communities as what is malnutrition,it symptoms and how small efforts like breastfeeding and adequate complementary feeding after six months can make a difference

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