Sunday, September 13, 2009

फसल हो गई खरपतवार

हाल ही में हुई बारिश से कई चेहरे खिल उठे हैं। माना जा रहा है कि बूँदें फसलों के लिए अमृत बन बरसी हैं। लेकिन दस साल से सूखा भोग रहे बुंदेलखंड के छोटे किसानों के लिए यह अमृत भी काम नहीं आया। असल में ये किसान आस खो चुके थे और न फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव किया और न निंदाई ही की। जब बारिश हुई तब तक खेत में फसल से ज्यादा ऊँची खरपतवार हो गई। फसल नष्ट होने के बाद इन किसानों के लिए अब बारिश किसी काम की नहीं है। टीकमगढ़ और छतरपुर जिलों में अध्ययन पता चला है कि सूखे का मतलब खाली खेत, दरकती धरती और रीते जलस्त्रोत ही नहीं होता। हरे-भरे खेत भी में किसान के सपनों को पाला मार जाता है। छतरपुर जिले के अकोना गाँव के दलित किसान गुरवा अहिरवार ने पाँच हजार का कर्ज़ ले कर अपनी सवा एकड़ जमीन पर तिल्ली और उड़द बोई थी। बकस्वाहा विकास खंड में जून के आखिरी सप्ताह में बारिश फिर जुलाई में बूँदाबाँदी के अगस्त खत्म होने तक बारिश नहीं हुई। इस दौरान गुरवा ने समझ लिया कि इस बार भी मानसून दगा ही देगा। वह आस छोड़ चुका था कि खेत में फसल भी लहलहाएगी। इस लिए बीज का पैसा बबाoद समझ उसने घास-चारा-खरपतवार निकालने के लिए निंदाई में पैसा खर्च नहीं किया। पैसा बचाने के लिए न उसने कीटनाशक पर पैसा खर्च किया। गुरवा पर पहले से ही 55 हजार का कर्ज़ है। अब बारिश ने फसल को जीवनदान दे भी दिया तो क्या फसल से बड़ी तो खरपतवार हो गई है। मझौरा के बूठा अहिरवार ने दो एकड़ जमीन पर गठुआ और गाडर गूढ़ी उग आई है। पानी जिस समय गिरा उस वक्त फसल के सुधरने और पनपने की संभावना खत्म हो चुकी थी। गाँव के ही हरिनारायण बताते हैं कि अब तो खरपतवार वाले खेत में आग लगा कर ही सफाई करना होगी। रबी की फसल भी तब मिलेगी जब जरूरत के समय बिजली मिले, लेकिन ऐसा होता नहीं है। अब उन्हें अगले मानसून से ही उम्मीद है। गाँव के ही बिरदावन ने अपनी 4 एकड़ जमीन के लिए साढ़े तीन हजार रूपए के बीज, 24 सौ रूपए के कीटनाशक और साढ़े तीन हजार का उर्वरक खरीदा। यह खरीदी उसने कर्ज़ ले कर की। इन तीन माह में फसल तो नहीं मिली, ब्याज के कारण कर्ज़ जरूर बढ़ गया। बुंदेलखंड के अकोना या मझौरा गाँव की जगह किसी भी गाँव में जाएँ छोटे किसानों की यही हालत है। खत्म हो रहे पशु :- हरियाली के पीछे का दूसरा सच यह है कि बुंदेलखंड में पशुधन खत्म हो रहा है। मझौरा के बिरदावन के पास ही आठ साल पहले 10 भैंसें और 25 गायें हुआ करती थी। सूखे के कारण अब उसके पास केवल 2 गाय और 3 भैंस ही रह गई है। आभार महिला समिति ने राजनगर विकासखंड के 10 गाँवों में सर्वे किया तो पाया कि 2003 में इन गाँवों में 95 हजार 100 पालतू पशु थे। जून 2009 में यह संख्या घट कर ५० फीसदी रह गई। अभी इन गाँवों में 45 हजार 400 पशु हैं। किसान दाना पानी न जुटा पाने के कारण पशुओं को खुला छोड़ रहे है। बारिश का सच :- बुंदेलखंड में औसत बारिश 1145.7 मिलीमीटर मानी जाती है। इस बारिश में यदि 40 फीसदी की कमी रह जाए तो ही सरकार राहत राशि प्रदान करती है। सूखे और राहत की घोषणा करते समय यह तथ्य भूला दिया जाता है कि खेती के लिए एक तय समय अंतराल में बारिश की जरूरत होती है। इस साल छतरपुर में 31 अगस्त तक 474.1 मिमी बारिश हुई थी, जबकि इस समय तक औसत बारिश 925 मिमी है। 1 सितंबर के बाद से यहाँ करीब 400 मिमी बारिश हुई है, लेकिन यह किसानों के काम नहीं है। जुलाई में 15 दिन पानी की जरूरत थी,लेकिन एक भी दिन पानी नहीं बरसा।

3 comments:

  1. हिन्‍दी दिवस के दिन आपके इस नए चिट्ठे के साथ आपका स्‍वागत है .. ब्‍लाग जगत में कल से ही हिन्‍दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्‍छा लग रहा है .. हिन्‍दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!

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  2. ब्लोगिंग जगत में आपका स्वागत है. आपको पढ़कर बहुत अच्छा लगा. सार्थक लेखन हेतु शुभकामनाएं. जारी रहें.


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    Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!

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  3. Pankaj ji
    Vastav mein aapne sarthak subject chuna hai aur Glamour se itar kuchh apni bat kahi hai. Apke lekh ko ek kshetra vishesh se jodkar nahi dekha ja sakta. Ye to hanare Bharat ki Jwalant sachchai hai.

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