Tuesday, June 15, 2010

हार गई हरियाली

भोपाल के नाम बरगद की चिठ्ठी


' आज जो मैं एक ठूँठ दिखाई दे रहा हूँ, पिछले साल तक मैं भी हरा-भरा पेड़ था। मेरी पहचान सूखा तना नहीं, जमीन को छूती डालियाँ और घनी छाँव देता विस्तार था। तब सभी मुझे बरगद कहते थे। आज मैं अपना यह परिचय देने में शरमा जाता हूँ। कहाँ भरा-पूरा विस्तार और कहाँ यह सूखे ठूँठ? मुझे बरगद से ठूँठ बना देने के दोषी आप हैं। आप ही ने साल भर पहले मेरी जमीन और मेरा आसमान छीन लिया था। मुझे एक अनजान जगह ला कर रोप दिया, यहाँ न मुझे वैसा खाद-पानी मिला और न परवरिश। आपने मुझे कटने से बचाया लेकिन यहाँ किश्तों में मरने के लिए छोड़ दिया। पहले मेरे पत्ते गए, फिर शाखाएँ काट दी गई। अब तने के अलावा कुछ भी नहीं बचा। मैं हीं नहीं उजड़ा, मेरी गोद में समाया पक्षियों का पूरा संसार उजड़ गया। मेरे जैसे कई वृक्षों के साथ हरियाली हार गई और हार गई आपकी साँसें।'




प्रिय भोपालवासियो,


आप खुश हैं कि मिसरोद से बैरागढ़ तक सिक्स लेन सड़क बन रही है। आपको चौड़ी सड़क मिलेगी तो आवाजाही में कठिनाई नहीं होगी। जाम से मुक्ति मिलेगी। सोचता हूँ इसी लालच में आपने मुझ जैसे हरे पड़ों को काटा जाना मंजूर किया होगा। लेकिन क्या आपने सोचा है कि इतने पेड़ों के कटने से आपकी साँसें जाम हो सकती है, जब भविष्य में ऑक्सीजन नहीं मिलेगी? ऐसी ही चिंता के चलते मुझ जैसे करीब 80 पेड़ों का ठिकाना बदला गया। मुझे पता चला कि आप जैसे कई पर्यावरण प्रेमी उस दिन बड़े प्रसन्ना हुए थे, जब 50 साल पुराने वृक्षों की जगह बदल कर उन्हें नए ठिकाने दिए गए थे। उम्मीद थी कि नई जगह में भी हम खूब हरियाएँगे, लहलहाएँगे, छाँव और फल देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।


आप जानते हैं, नगर निगम ने मिसरोद से बैरागढ़ तक बनने वाले करीब 16.5 किलोमीटर लंबे सिक्स लेन रोड के बीच में आने वाले 2333 पेड़ों में से करीब 602 पेड़ों का ठिकाना बदलने की योजना बनाई थी। इनमें बरगद, पीपल, गूलर, आम, जामुन, शीशम, सप्तपर्णी, करंज, अर्जुन, गुलमोहर सभी शामिल हैं। पहले महीने मिसरोद क्षेत्र से करीब डेढ़ दर्जन पेड़ों को हटाया गया। 13 पेड़ मिसरोद श्मशान घाट में रोपे गए, जबकि 6 पेड़ सुरेन्द्र लैंडमार्क के पास स्थित नटबाबा मंदिर प्रांगण में पहुंचाए गए। कुछ पेड़ बावड़िया कला श्मशान घाट में लगाए गए थे। जब हमारा ठिकाना बदला जा रहा था, तब मेरी जड़ें काफी गहरी जमी थीं। मेरी हर डाल पत्तियों से लदी हुई थी। मेरे साथी गुलमोहर के फूल गर्मी में खिलखिलाते थे। हर डाल लाल-लाल फूलों से भर जाती थी। हमारी ही छांव में लोग सुस्ताते थे, सावन में हमारी ही डालियों पर झूले डाले जाते थे। इन्हीं शाखाओं पर किस्म-किस्म के पंछियों का बसेरा था। इन सबका न मैंने कभी किराया लिया और न कभी घोंसले हटा लेने का नोटिस दिया।


लेकिन एक दिन आपने ही मेरे तने को छील कर उस पर नंबर लिख दिया। तब मैंने किसी को यह कहते हुए सुना था कि मेरी जड़ों को हटाया जाने वाला है। मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा था। कभी सुना भी नहीं था कि बरगद को कोई डिगा भी सकता है। मुझसे तो बड़े व्यक्तित्व वाले इंसानों की तुलना होती है। फिर लगा, तरक्की पसंद इंसान ने कोई नई तकनीक ईजाद की होगी। सच बताऊँ तो उस दिन मेरी गोद में पलने वाले पंछियों ने खूब नाराजी जताई थी। कई ने तो खाना छोड़ चिल्ला-चिल्ला कर अपना गुस्सा दिखाया था, पर आपको वह सब सुनने की फुर्सत कहाँ थी?


मुझे पता चला कि इंदौर के पेड़ शिफ्टिंग विशेषज्ञ प्रेम जोशी हमारा ठिकाना बदलेंगे। उन्होंने कलकत्ता में 12 बीघा क्षेत्रफल में फैला बरगद का पेड़, शुक्रवासा (देवास) में 12 बीघा में फैले करीब तीन हजार साल पुराने बरगद के अलावा गुजरात और नेपाल में भी बरसों पुराने पेड़ों को दूसरी जगह ले जाकर लगाया था। दक्षिण भारत में इमली के पेड़ की अहमियत ज्यादा है, जिसके चलते वहां उन्होंने कई पेड़ शिफ्ट कराने में मदद की है।


इतना पता चलने के बाद हम भी खुश थे। सोचा था, नई जगह होगी तो क्या, परिंदें फिर आशियाना बना लेंगे। राहगीर छाँव तलाश लेंगे। मुझे श्मशान में लगाया जाना था। लगा था वहाँ पहुँचने वाले लोगों के दुख को पनाह दूँगा। लेकिन मेरी किस्मत कलकत्ता के बरगद जैसी नहीं निकली। साल भर बाद भी नई कोंपल फूटना तो दूर तने की छाल भी नहीं रही। यूँ लग रहा है जैसे पैरहन (कपड़े) के साथ मेरी आबरू जाती रही। अब बरगद के नाम पर दो सूखे तने बचे है। मैं ही क्यों आ कर देखो तो मेरे जैसे कई पेड़ तिल-तिल कर मर रहे हैं। पत्तियों और शाखाओं के साथ इनका पेड़ होने का सम्मान जाता रहा। श्मशान में मैं पनप नहीं पाया और अब तो लगता है मेरी शाखाएं पंछियों को घोसला बनाने या इंसानों को छांव देने के बजाय शायद किसी पार्थिव देह को भस्म करने के ही काम आ जाएगी।


फूटी कोंपलें
वो कहते हैं ना कि सभी की किस्मत एक जैसी नहीं होती। पेड़ों के साथ भी यही हुआ। बावड़ियाँ कला श्मशान घाट में लगाए पेड़ों में अंकुरण हो गया है। यह मरणासन्ना बुजुर्ग की साँसें फिर चलने जैसा है। यहाँ आ कर देखिये तो। सूखे तने में फूट रहे नए हरे पात कितने अच्छे लग रहे है। लेकिन इन पीपल और गुलमोहर के पेड़ों को अपने पुराने स्वरूप में आने में बरसों लगेंगे। तब तक शायद इन्हें यहाँ से भी हटाने की बारी आ जाए। हमारी इनके जैसी किस्मत कहाँ? हम बचे रह गए ठूँठ, हरे पत्तों को तरस रहे हैं।


शिफ्टिंग के हालात :


0 काम : मिसरोद से बैरागढ़ तक सिक्स लेन रोड
0 बाधा : 2333 पेड़
0 हटेंगे : 602 पेड़
0 कटेंगे : 1731 पेड़
0 अब तक हटे : करीब 80 पेड़
0 कितना खर्च : प्रति पेड़ ढाई से दस हजार स्र्पए तक
0 यह पेड़ हुए शिफ्ट : बरगद, पीपल, गूलर, आम, जामुन, शीशम, सप्तपर्णी, करंज, अर्जुन, गुलमोहर आदि।
0 यहां पहुंचाए : मिसरोद विश्राम घाट परिसर, नटबाबा मंदिर परिसर, बावड़िया कला श्मशान घाट, नूतन कालेज के सामने ग्रीन बेल्ट की जमीन, दुर्गा पेट्रोल पंप के सामने।

No comments:

Post a Comment