Monday, August 30, 2010

माण्डू

~ श्री राजू कुमार के फोटो पर अपनी कविता ~



















माण्डू,

तुम रूपमती के रूप से सुंदर कहलाते हो।

तुम्हारे महल उतने ही ऊँचे हैं

जितना ऊँचा बाज बहादुर का प्यार था।

'रूपमती यहाँ से आती थी हाथी पर सवार हो।

जनाब, ये देखिए, यहीं से करती थी पूजा

देवी नर्मदा की।" जब कहता है गाइड

तो लगता है,

माण्डू के आँगन में धड़क रही है प्रेम गाथा।

बावरी हवा

इस कदर सुहानी लगती है

जैसे अभी-अभी रूपमती को छू कर आई हो।

इतिहास की धुंध तुम्हारा क्या बिगाड़ेगी माण्डू

दिन-महीने-साल गुजरते और जवान हो रही है

तुम्हारी आँगन की प्रेम कहानी।

Friday, August 27, 2010

वह लिखेगी

~ श्री अनिल गुलाटी के खींचे फोटो पर अपनी कविता ~





















वह लिख रही है

'अ" अनार का।

कल वह लिखेगी

'उ" से उजास और

'व" से विकास।

आज उसकी आँखों में सपने हैं

कल हाथों में ताकत होगी

तब वह बदलेगी सूरत

तब दिन भी बहुरेंगे।

Tuesday, August 24, 2010

कथक के आसमान का चाँद

उनका नाम ही मकबूल है। कहने को आसमान में हजारों सितारे हैं लेकिन कथक के संसार की वह इकलौती चाँद हैं!
हो सकता है कि उन्हें देखे बगैर इन पंक्तियों में अतिश्योक्ति नजर आ जाए लेकिन सच तो यह है कि जो भी शख्स सितारा देवी से मिल लेता है, वह बिना झिझक इस बात को स्वीकार कर लेता है कि उनके जैसा कोई नहीं है। वे 90 वर्ष की हैं लेकिन कथक के प्रति उनका जोश किसी युवा से कम नहीं है। 77 वर्ष की उम्र जब अधिकांश लोग मौत की राह तकते हैं, पलंग पर गुजर-बसर करते हैं, वे भोपाल में 4 घंटे तक कथक से दर्शकों को हतप्रभ करती हैं और जब अगली बार 13 साल बाद 21 अगस्त 2010 को भोपाल आती हैं तो भले नृत्य नहीं करती है लेकिन मंच पर गायन के साथ ऐसी भावमुद्रा बनाती हैं कि सभागार में बैठा कला समाज भौंचक देखता रहता है।

यह जिक्र उस कलाकार का है जिसका नाम धनलक्ष्मी रखा गया था। 1920 की दीपावली की पूर्व संध्या पर जन्म लेने के कारण भी संभव है कि यह नाम रखा गया हो। बाद में जब मंच पर इस नन्हीं कलाकार ने अपने हुनर का मुजाहिरा किया तो 'सितारा" नाम मुफीद समझा गया। यही सितारा देवी 21 अगस्त को भोपाल में थी। मुझे कुछ पल उनके संग रहने और उनके आभा मंडल को जानने का मौका मिला। मैंने पाया कि 90 वर्ष की उम्र में उनकी देह थकी है लेकिन नृत्य के प्रति आग्रह और उत्साह जरा कम नहीं हुआ और न ही उनके स्वाभिमान की ठसक कम हुई है। मकबूल नृत्यांगना सितारा देवी से बात करते समय मानो एक स्वर्णिम दौर जीवंत हो उठता है। वे हर व्यक्ति से आत्मीय से बात करती हैं। उनकी इस भोपाल यात्रा मैं भी उन्हें गुनगुनाते, नृत्य की भाव मुद्रा बनाते देख लोगों को 16 साल पहले की वह शाम याद आ गई जब भारत भवन में उन्हें कालिदास सम्मान प्रदान किया गया था। तब 77 वर्षीय सितारा देवी ने तुलसीदासजी की विनय पत्रिका की ख्यात पंक्तियों 'ठुमकत चलत रामचन्द्र बाजत पैजनियाँ" पर चमत्कृत कर देने वाली प्रस्तुति दी थी। उन्हें 1975 में पद्मश्री दिया गया लेकिन बाद में पद्मभूषण लेने से इंकार कर दिया। जब सम्मान की बात चली तो उन्होंने कहा कि भारत रत्न से कम कोई सम्मान मंजूर नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार मेरेे योगदान को नहीं जानती। ऐसे सम्मान का क्या मतलब। भोपाल में मधुवन द्वारा दिए गए सम्मान पर उन्होंने कहा कि यह सुरेश तांतेड़ जैसे साधक के श्रम की संस्था है। ऐसी संस्थाओं से मिला सम्मान स्वीकार हैं क्योंकि यह प्रशंसकों के ोह का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि नए नर्तकों में लगन और साधना की कमी दिखलाई देती है। वो दौर और था जब बरसों ने अभ्यास के बाद भी मंच नहीं मिलता था। अब तो गुरू फटकार दे तो शिष्य अगले दिन आना बंद कर देते हैं। कला के लिए यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है।

उम्र का इजहार आम तौर पर महिलाओं की कमजोरी मानी जाती है। इसलिए भरसक प्रयास किया जाता है कि इसे छुपाया जा सके लेकिन 90 वर्षींय महिला मंच से घोषित उम्र की सत्यता जाँचने का प्रयास करें तो इसे क्या कहेंगे? जी हाँ, रवीन्द्र भवन में जब उनके परिचय के साथ उम्र को उल्लेख किया गया तो उन्होंने उद्घोषक को पास बुला कर स्पष्ट जाना कि क्या उम्र बताई गई है। यह उनके परफेक्शन का एक नमूना है। सोचिए जब वे मंच पर होती होंगी तब नृत्य के साथ कितनी सम्पूर्णता रखती होंगी।

इसीलिए वे सितारा हैं।

Friday, August 13, 2010

इन पर कर सकते हैं भरोसा














पिछले साल गुना जिले के 20 गाँवों में एक दस्तक हुई थी। इसने ग्रामीणों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाया था। इस साल से प्रदेश के 200 गाँवों में स्काउट और गाइड जाकर कहेंगे-'साफ हाथों में दम है।" सफाई का महत्व बताने और प्रेरित करने के लिए ये नाटक, गीत, सभा और हठ तक का सहारा लेंगे। ये गाँव का नक्शा बनाकर बताएँगे कि गंदगी फैलने के क्या नुकसान हैं और इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है।
गुना के रेडक्रास भवन में जारी स्काउट-गाइड शिविर में स्कूली विद्यार्थी सेवा का पाठ नहीं पढ़ रहे बल्कि बदलाव की भूमिका तैयार कर रहे हैं। इन्हीं की तरह प्रशिक्षण लेकर निकले विद्यार्थियों ने साबित कर दिया है कि बदलाव की चाबी युवाओं के हाथों में हैं। यहाँ लगाए गए शिविरों में स्काउट-गाइड ने जीवन शिक्षा से जीवन रक्षा के सूत्र सीखे हैं और गाँवों में जाकर लोगों को सिखाया है कि भोजन से पहले और शौच के बाद साबुन से हाथ धोएँगे। खुले में शौच की प्रवृत्ति छोड़ेंगे। इन बच्चों के पास सफलता की कहानियाँ भी है और चुनौतियों से निपटने की तैयारी भी। आरोन गाँव के नरेश सेन और आयुष जैन ने अपने पूरे कस्बे का नक्शा बना लिया है। वे आरोन में घर-घर जाकर दस्तक देंगे और लोगों को बताएँगे कि डायरिया से बच्चों की मौत और बार-बार बीमार होने की बड़ी वजह गंदगी है। वे इस तैयारी में हैं कि सीएमओ को विकल्प बताएँ और समाधान न होने पर दबाव बनाएँ।

स्कूल में पानी और साबुन जुटाया:
शिविर संचालक रोवर सुखदेव सिंह चौहान बताते हैं कि स्काउट-गाइड शिविर से स्वच्छता, व्यक्तिगत सफाई के पाठ सीख कर जाता है और पहले अपने स्कूल के साथियों को तैयार करता है ताकि उनकी बात घर-घर तक पहुँचे। इसका परिणाम यह हुआ कि बच्चों की जिद के आगे बुजुर्गों को अपनी आदतें बदलना पड़ीं। जीवन शिक्षा से 'जीवन रक्षा अभियान" के 'जीवन मित्र" बने विद्यार्थिंयों ने हर समस्या का समाधान  खोजा है। मसलन, मध्याह्न भोजन के पहले हाथ धोना जरूरी है लेकिन स्कूल साबुन नहीं जुटा सकता तो विद्यार्थी खुद घर से साबुन लेकर आए। जिन स्कूलों में पानी की व्यवस्था नहीं थी, वहाँ बच्चे अपने साथ पानी की बोतल भी लाए।

छात्रवृत्ति से बनाएगा शौचालय:
इन जीवन मित्रों के साथ बैठो तो सफलता की कई कहानियाँ सुनाई पड़ती है। मसलन, पिछले शिविर में शामिल हुआ कक्षा सातवीं का छात्र सुनील कुमार इस कदर प्रभावित हुआ कि उसने अपने घर में अपनी छात्रवृत्ति के पैसे से शौचालय बनवाने का संकल्प ले लिया। वरिष्ठ शिक्षिका प्रभा भावे बताती हैं कि बच्चे बड़ा बदलाव लाने में समर्थ हुए हैं। वे केवल बड़ों को कोरा पाठ नहीं पढ़ाते बल्कि पहले समाधान  देते हैं, इसलिए इनकी सुनी जाती है।

10 जिलों में होगा विस्तार :
गुना में मिली इस सफलता को देखते हुए इस सत्र से प्रदेश के 10 जिलों के 20 स्कूलों के स्काउट-गाइड को जीवन मित्र बनाया जाएगा। ये गाँवों में घर-घर जाकर बदलाव की दस्तक देंगे।

Friday, August 6, 2010

हिन्दी के मास्साब नहीं जानते अंबर का मतलब

* बच्चों के साथ शिक्षक भी फेल * ऐसा कैसा 'स्कूल चले हम अभियान"

मध्यप्रदेश सरकार कह रही है कि सभी बच्चे स्कूल आए लेकिन जो बच्चे स्कूल आ रहे है उनकी हालत अनपढ़ बच्चों जैसी ही है। विभिन्न संगठन और रिपोर्ट जिस बात को बार-बार उठाते हैं, पढ़ाई की वही पोल भोपाल में जिला शिक्षा अधिकारी के निरीक्षण के दौरान फिर खुल गई। अधिकारी ने जब छठी कक्षा के बच्चे अंबर का अर्थ पूछा तो वे नहीं बता पाए। हद तो तब हो गई जब हिन्दी के शिक्षक को भी इसका अर्थ नहीं बता सके।

सरकारी स्कूलों की यह सच्चाई देख जिला शिक्षा अधिकारी सीएम उपाध्याय भी हैरत में पड़ गए। श्री उपाध्याय ने हाल ही में बैरागढ़ क्षेत्र के शासकीय स्कूलों का निरीक्षण किया। वे जब ग्राम बैरागढ़ कलां के स्कूल में पहुंचे तो वहां शिक्षक किताबें लेकर बच्चों को पढ़ा रहे थे। एक यूडीटी शिक्षक करन सिंह मेहरा 6वीं की कक्षा में हिन्दी पढ़ा रहे थे। डीईओ ने जब कक्षा में जाकर बच्चों से हिन्दी के कुछ शब्दों जैसे अंबर, देवेन्द्र आदि अर्थ पूछा तो कोई भी बच्चा नहीं बता पाया। इसके बाद डीईओ ने शिक्षक से इन शब्दों का अर्थ पूछा तो वे भी बगलें झांकते नजर आए।

इसके बाद डीईओ छठी कक्षा के दूसरे वर्ग में पहुंचे वहां शिक्षक अर्जुन सिंह बघेल बच्चों को इतिहास पढ़ा रहे थे। जब डीईओ ने बच्चों से पूछा कि चंद्रगुप्त मौर्य कौन थे तो कोई भी बच्चा जवाब नहीं दे पाया। बाद में शिक्षक ने यह तो बता दिया कि चंद्रगुप्त मौर्य कौन थे लेकिन वे उनका कालक्रम नहीं बता पाए।

पांचवीं के बच्चे नहीं पढ़ पाए हिन्दी

जिला शिक्षा अधिकारी ने जसलोक प्राथमिक स्कूल का भी निरीक्षण किया। वहां वे पांचवीं की कक्षा में पहुंचे। उस समय स्कूल शिक्षिका कृष्णा देवी किताब लेकर बच्चों को हिन्दी पढ़ाती मिली। श्री उपाध्याय ने उनसे किताब लेकर बच्चों को पढ़ने को दी। जिला शिक्षा अधिकारी श्री उपाध्याय उस समय चौंक गए जब कोई भी बच्चा किताब में लिखा एक पैरा भी ठीक से नहीं पढ़ पाया।

हमारी शिक्षा प्रणाली की असलीयत दिखाने के लिए इतना ही काफी है।