Thursday, April 14, 2011

कैसे बताता कि नोएडा में क्या हो रहा है

नोएडा...राजधानी के समीप का वह क्षेत्र जो सबसे तेज विकसित हो रहा है...तरक्की की इस इबारत के साथ ही नोएडा के तीन सेक्टर हाल ही में बहुत चर्चा में रहे। सेक्टर 31 निठारी के मासूमों की निर्मम हत्या के लिए, सेक्टर 25 आरूषि और हेमराज की हत्या के लिए और अब सेक्टर 29 दो बहनों की मौत के लिए जिसकी जवाबेदेही इंसानियत पर है।

यह आप तय करें कि यह सवाल है, आरोप है या सच बयानी कि नेट के जाल में खोया, चैनलों की भीड़ से घिरा इंसान दुनिया भर की ही नहीं, समूचे ब्रह्मांड की बारीक से बारीक और छोटी से छोटी जानकारी पा लेना चाहता है, लेकिन वह अपने पड़ोस से ही अनजान है। क्यों? क्यों ऐसा हो रहा है कि इंसानियत के कलंकित होने की खबर, और ज्यादा सूखने की खबर नोएडा ही आ रही है? उस नोएडा से जो हमारी तरक्की की जगमगाती तस्वीर है।

इन घटनाओं को जिसने भी देखा, जाना, पढ़ा वह दंग रह गया, मानवीयता का ऐसा लोप, इस कदर की गिरावट?  रसातल में?

क्या कहूँ, किससे सवाल करूँ कि ऐसा क्यों हुआ? दो बहनें महिनों अपने घर में कैद रहीं और किसी ने उनकी सुध्ा तक न ली। टीवी पर दिखाई दे रही कामवाली बाई बता रही है कि मुझे काम से हटा दिया गया था क्योंकि उनके पास वेतन देने को पैसे नहीं थे। किराना व्यापारी बता रहा है कि फरवरी में आखिरी बार ब्रेड मँगवाया गई थी। और सवाल हुए तो राज खोला कि पैसे चैक से देती थीं, कभी दरवाजा खोला ही नहीं कि चेहरा देख पाते। हमेशा आधा दरवाजा खोल कर सामान ले लिया जाता था।

वाह रे इंसानों। मुझे तो मेरा गाँव याद आ रहा है। काम वाली बाई परिजन से ज्यादा हमारी देखरेख और चिंता करती थी। कभी घर से दूर चले जाते तो गाँव के कोई भी परिचित काका,मामा डाँट कर सीध्ो घर जाने की हिदायत देते। कोई भी व्यापारी क्यों न हो सामान देने के बाद पैसे और सामान संभाल कर ले जाने की ताकीद करता। और कभी सूची में सामान कम ज्यादा होता तो खुद ही पूछ लेता-मेहमान आए थे क्या, जो ज्यादा सामान की जरूरत पड़ी। हमारा ऐसा समाज खो गया और किसी को दुख भी न हुआ!

अरे भले लोगों, जरा अपने मुनाफे के लिए ही सही, उन बहनों को कस्टमर समझ कर ही सही, थोड़ी सुध्ा ले ली होती तो वे कष्ट से न मरती।

अखबारों में ये खबरें, नोएडा की इस तरक्की की खबरों को पढ़ता हूँ तो एक तरह से सूकुन भी पाता हूँ कि अच्छा हुआ मैं यहाँ भोपाल में आ गया और मेरी नानी वहाँ गाँव में छूट गई। वर्ना उन्हें कैसे अखबार पढ़ कर ऐसी खबरें सुनाता? कैसे बताता कि बच्चों को कोई मार कर खा सकता है, कैसे बताता कि माँ-बाप पर ही अपनी बेटी की हत्या का संदेह है और कैसे बताता कि दो बहनें इसलिए जान गँवा रही हैं कि उनके भाई या पड़ोसी को उनके हालात जान लेने की फुर्सत न मिली?

मेरी नानी तो किसी के बहुत दिनों तक न मिलने पर चिंतित हो जाती और हमें जबरन उनके घर भेज कर उनकी खबर लाने को दौड़ा देती थी...उन्हें कैसे में निठारी के बच्चों का हाल बताता, कैसे आरूषि के हत्यारों की पहचान बताता और कैसे बताता कि अनुराधा चल बसी और पहले माता-पिता, भाई फिर प्यारा डॉगी और अब बहन खो देने वाली सोनाली का जीना कितना कष्टमय है?

कैसे बताता सबकुछ...

1 comment:

  1. मेरा विचार कुछ निराशावादी लग सकता है पर मैं यह मानता हूँ कि आगे आनेवाला समय कष्टों भरा होगा इसलिए या तो कष्ट सहने की शक्ति जुटा लें या ऐसा बन जाएँ कि कष्ट दुखदायक न लगें.

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