Sunday, May 12, 2013

ऐसा ‘बाहरी’ अंदर न आने पायें जो घर तोड़े


घोटालों, विरोध और अपराध की खबरों को देख-सुन कर आजिज आ गए हम लोग। कहीं से कोई अच्छी खबर नहीं आती। माटिवेशन के लिए भी एकल प्रयास ही नजर आते हैं। डर लगता है कि हमारी सामूहिकता क्यों कुछ ऐसा नहीं रच रही जिस पर नाज किया जा सके। तभी एक खबर आई। ऐसे मुद्दे पर खबर जिसने पिछले ढ़ाई दशकों से देश की राजनीति को गर्मा रखा है और जिसके कारण कई जानें गर्इं, कई परिवार उजड़े। खबर हजारों लोगों की रगों में सांप्रदायिकता का जहर भर देने वाले अयोध्या मसले पर है। समाधान संबंधी समिति की उपसमिति ने तय किया है कि अयोध्या में जहां राम प्रतिमा है वहीं मंदिर बनेगा और अधिग्रहित परिसर के दक्षिण-पश्चिम हिस्से में मस्जिद निर्माण किया जाएगा। सबसे खास बात यह है कि  चार सूत्रीय इस प्रस्ताव के पहले बिंदु में कहा गया है कि इसमें अयोध्या-फैजाबाद के लोग ही शामिल हो सकेंगे। बाहरी व्यक्ति, संस्था आदि की इसमें कोई भागीदारी स्वीकार नहीं की जाएगी।
पिछले ढ़ाई वर्षों की कवायद के बाद इस प्रस्ताव पर सहमति बनना सुखद है। इतना ही सुखद यह है कि वहां के लोगों को समझ में आ  गया कि अयोध्या की शांति क्यों भंग हुई थी। घर के मामलों में जब-जब बाहरी व्यक्ति दखल देगा तो घर टूटेगा ही। इसे थंब रूल ही मानिए। यह सभी जगह लागू होता है। घर ही क्यों बाहरी का दखल परिवार, समाज, कॉलोनियों की समितियां, दफ्तर से लेकर राज्य और देश सभी का तोड़ता है। पराई पीर में शरीक होने वाले लोग अब कहां बचे हैं? लेकिन दूसरों के दर्द में अपना सुख खोजने वाले रायचंद रक्तबीज से बढ़े जा रहे हैं। कुछ पल सोचेंगे तो कई किस्से याद आ जाएंगे जब ‘बाहरी’ के आ जाने से बनता काम बिगड़ गया था। जिस समस्या का समाधान करीब था वह और विकराल हो गई थी।
मंदिर विवाद पर अगर ‘बाहरी’ अपनी रोटियां न सेंकते तो अयोध्या-फैजाबाद के लोग कभी का इसका समाधान निकाल चुके होते। कमोबेश यही हालत हमारे प्रदेश के भोजशाला विवाद या हमारे शहर-कस्बे में विकास कार्यों में बाधा बन रहे धार्मिक स्थलों के बारे में निर्णय करने की है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर समेत सभी जगहों पर किसी न किसी धार्मिक स्थल को लेकर विवाद चल रहा है। ये विवाद उस स्थान विशेष के लोगों ने पैदा नहीं किए। ये विवाद तो ‘बाहरी’ तत्वों की देन हैं जो दूसरी बस्ती, कॉलोनी,गांव या शहर से आते हैं और विवाद की आग जला कर रवाना हो जाते हैं। वे नजर रखते हैं कि किसी सूरत में से आग ठंडी न पड़ जाए। इन लोगों के हथियार फरसे, तलवार, बल्लम या बंदूक-तमंचे नहीं है। ये जाति,धर्म, संप्रदाय के नाम पर अपना हित साधते हैं। परिवार हो या मोहल्ला या शहर, हम तभी बंटते हैं जब कोई ‘बाहरी’ हमारे मामलों में घुस आता है। हम अपनी समस्या को खत्म करने के लिए  कई बार कुछ हित छोड़ने को तैयार भी हो जाते हैं ताकि परेशानी का कांटा निकले। सड़क को चौड़ा किया जाना है। स्थानीय रहवासी जाम से मुक्ति के लिए बाधा बन रहे धार्मिक स्थल को हटा कर दूसरी जगह ले जाने को तैयार हैं लेकिन ये ‘बाहरी’ ही हैं जो ऐसा होने नहीं देते। वे विवाद खड़ा करते हैं और स्थानीय लोग उसका परिणाम भोगते हैं।
हम बड़ी मुश्किल से पंछी की तरह एक-एक तिनका  जुटा कर अपना घरोंदा, कॉलोनी, समाज बुनते हैं और ये ‘बाहरी’ आंधी की तरह आ कर सबकुछ उजाड़ कर चले जाते हैं। क्यों न ऐसे ‘बाहरी’ को बाहर ही रखा जाए। कड़ी नजर रखी जाए कि ये ‘बाहरी’ हमारे मसलों में ‘अंदर’ न आने पाएं। आज अयोध्या-फैजाबाद के कुछ लोगों ने ये बात समझी है। कल पूरा फैजाबाद-अयोध्या  मानेगा और दुआ करें कि समझदारी की ये आग पूरे देश में फैलेगी। ये काम हमें ही करना होगा क्योंकि कोई ‘बाहरी’ तो ये काम नहीं करेगा।

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