Friday, October 11, 2013

खत्म हो जाएगा क्रिकेट का ‘सचिन वाला’ रोमांच

क्रिकेट  के भगवान, महानतम क्रिकेटर, रन मशीन, मास्टर ब्लास्टर, शतकवीर, बल्ले का बाजीगर व दूसरा डॉन ब्रेडमैन। ये वे उपमाएं हैं जो क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर का पर्याय बन चुकी हैं। अब जबकि सचिन ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास का ऐलान
कर दिया है, उनकी पारियां इतिहास और हमारी यादों का हिस्सा होंगी। वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट सीरीज में अपना 200 वां टेस्ट मैच खेलकर सचिन संन्यास लेंगे। यह टेस्ट मैच 14 नवंबर से  मुंबई में खेला जाना है। असल अपने दो दशक से भी  ज्यादा लंबे क्रिकेट कॅरियर के दौरान सचिन क्रिकेट का पर्याय बन गए हैं। 1989 में 16 साल की उम्र में जब सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान के खिलाफ अपने क्रिकेट कॅरियर की शुरूआत की थी तब बहुत कम लोगों को यह अहसास होगा कि जब यह खिलाड़ी अपना बल्ला रखेगा तो रिकार्ड्स की एक पूरी बुक उसके नाम होगी।  इस आरोपों पर बहस हो सकती है कि सचिन केवल 200 मैचों का आंकड़ा पूरा करने के लिए टीम पर भार बने रहे और वे केवल रिकार्ड्स के लिए खेले लेकिन यह निर्विवाद तथ्य है कि सचिन का क्रिकेट देखते हुए एक पीढ़ी जवान हुई है और लाखों लोगों का क्रिकेट प्रेम केवल और केवल सचिन तक सीमित रहा है। सचिन उस दौर में मैदान में उतरे थे जब टीवी घर-घर में पहुंच रहा था और उन्होंने अपने करोड़ों प्रशंसकों को क्रिकेट मैच देखने की वजह दी। उनके लिए सचिन की पारी खत्म होने के बाद क्रिकेट का महत्व घट जाता था। सचिन आउट तो जैसे क्रिकेट उनके दिमाग से आउट। तभी तो सचिन को कई बार अपने प्रशंसकों की नाराजी झेलना पड़ी। उनके लंबे कॅरियर में कई ऐसे पल आए, जब  वे वांछित प्रदर्शन नहीं कर सके लेकिन इस निराशा से उबर कर जब वे मैदान पर आए तो एक नया रिकार्ड बना कर ही पैवेलियन लौटे। यह सचिन के  व्यक्तित्व की विशेषता रही कि उन्होंने अपनी या टीम की आलोचना का जवाब बोल कर नहीं हमेशा बल्ले और अपने
खेल से दिया। सचिन ने जितनी प्रशंसा पाई उतनी ही आलोचना भी झेली लेकिन उन्होंने हर बार अपने खेल से सोच बदलने को मजबूर किया। यह सुखद विरोधाभास है कि सचिन निजी जीवन में जितने अंर्तमुखी है, मैदान पर उनका बल्ला उतना ही जोर से बोलता है। वे जितने नाटे कद के हैं उनका खेल उतना ही ऊंचा है। जितने आसान वे दिखाई देते हैं उतना ही भारी उनका बल्ला है और उन्होंने अपने खेल के जरिए क्रिकेट के मैदान पर जो करिश्मा 24 सालों में रचा है उसे दोबारा रचने में दूसरे क्रिकेटर को पता नहीं ऐसे कितने ही 24 सालों की जरूरत होगी।  अब जबकि सचिन दो मैचों के बाद मैदान से रूखसत हो जाएंगे तो उनकी पारियां ही हमारी यादों में होंगी। जब भी कोई नया खिलाड़ी किसी करिश्मे को रचेगा या किसी रिकार्ड की तरफ बढ़ेगा तो उसकी तुलना सचिन से ही होगी। टीवी पर सचिन की यादगार पारियों के क्लिप्स दिखाए जाएंगे और उनकी पारियां देख कर ही क्रिकेटरों की नई पीढ़ियां तैयार होंगी। एक क्रिकेटर के रूप में ही नहीं बेहतर और सुलझे हुए इंसान के रूप में सचिन मैदान के बाहर भी जीवन प्रबंधन का पाठ पढ़ाएंगे। लेकिन अब उनके जैसा किसी दूसरे को होने में बरसों लगेंगे, उनका स्थान भरना तो नामुमकिन है। सचिन न होंगे तो क्रिकेट तो वही रहेगा लेकिन उसका ‘सचिन वाला’ रोमांच खत्म हो जाएगा।

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